अगर बिहार में विकास हुआ तो मंत्रियों और विधायकों का विरोध क्यों?


आखिर इस बार बिहार की जनता इस बार बदली हुई क्यों दिख रही है ? विकास के मुद्दे पर बिहार की जनता तीखे सवालों से परहेज करती रही है। क्योंकि बिहार में हमेशा चुनावों के दौरान विकास नहीं जाति पर बात होती है। लेकिन इस बार जनता सताधारी दल के विधायकों और मंत्रियों से विकास पर ही सवाल पूछ रही है।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
बिहार चुनाव 2020 Updated On :

बिहार की जनता का गुस्सा सामने आ रहा है। सत्ताधारी दल के विधायकों औऱ मंत्रियों को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। पिछले कुछ समय में ही सत्ताधारी दल से संबंधित दो मंत्रियों और तीन विधायकों को जनता के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। जनता का गुस्सा देख विधायक और मंत्री जी के वापस जाने के सिवाए कोई चारा नहीं था। बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है। इधर जनता के बढ़ते विरोध से एनडीए गठबंधन में खासी घबराहट है। सत्ताधारी दल के विधायक और मंत्री विकास का गुणगाण कर रहे है। लोगों के बीच प्रचार के लिए उतर रहे है। लेकिन जनता जब विकास से संबधित सवाल पूछती है, तो विधायक औऱ मंत्री के पास जवाब नहीं होता है।

बिहार के औरंगाबाद जिले के गोह विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक मनोज शर्मा और बिहार सरकार में भाजपा कोटे के मंत्री प्रेम कुमार का गोह के एक गांव में ग्रामीणों ने जोरदार विरोध किया। मंच पर बैठे विधायक औऱ मंत्री के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई। मुख्यमंत्री के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई। स्थानीय लोगों का आरोप था कि विधायक पांच साल इलाके में नजर नहीं आए, अब वोट मांगने पहुंच गए है। बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री शैलेश कुमार को उनके विधानसभा क्षेत्र जमालपुर में लोगों ने किया। उन्हें जातिवादी तक लोगों ने कह दिया। मंत्री जी वापस लौट गए। लोगों ने साफ कहा कि मंत्री ने विकास के बजाए सिर्फ जातिवाद किया है। इसलिए वोट नहीं मिलेगा। ग्रामीणों का गुस्सा देखकर मंत्री जी धीरे से चलते बने।

वैशाली के महनार विधान सभा क्षेत्र में तो सत्ताधारी दल के समर्थकों की पिटाई हो गई। महनार के जद यू विधायक उमेश सिंह कुशवाहा वोट मांगने गए थे। लोगों ने पांच साल का हिसाब मांगा। उसके बाद विधायक जी के समर्थकों के साथ स्थानीय लोगों की झड़प हो गई। विधायक जी के समर्थक पिट गए। हाजीपुर से भाजपा विधायक अवधेश सिंह से जब जनता ने हिसाब मांगा तो वे आश्वासन देने लगे। लोगों ने सड़क न बनने के मुद्दे पर उन्हें घेर लिया। अवधेश सिंह विरोध को बढ़ते देख वहां से निकल गए। जहानाबाद जिले के कुर्था विधानसभा के जद यू विधायक सत्यदेव कुशवाहा से जब ग्रामीणों ने विकास को लेकर सख्त सवाल करने शुरू किए तो उनकी आवाज बंद हो गई। वे चुपचाप वहां से निकल गए। ग्रामीणों और विधायक जी की नोकझोक का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। औरंगाबाद के भाजपा सांसद को उनके ही संसदीय क्षेत्र में युवाओं ने रोजगार के मुद्दे पर घेर लिया। मुश्किल से सुरक्षाकर्मियों ने युवाओं को समझा-बुझा कर सांसद महोदय को निकाला।

आखिर इस बार बिहार की जनता बदली हुई क्यों दिख रही है ? विकास के मुद्दे पर बिहार की जनता तीखे सवालों से परहेज करती रही है। क्योंकि बिहार में हमेशा चुनावों के दौरान विकास नहीं जाति पर बात होती है। लेकिन इस बार जनता सताधारी दल के विधायकों और मंत्रियों से विकास पर ही सवाल पूछ रही है। सवाल सत्ताधारी दल के प्रतिनिधियों से कर रही है। क्या वाकई में बिहार बदल रहा है ? क्या कोरोना की मार, बढ़ती बेरोजगारी और गरीबी ने जातिवाद के बैरियर को तोड़ दिया है ? यह सच्चाई है कि दूसरे राज्यों में काम कर रहे बिहार में लाखों कामगार केंद्र सरकार दवारा बिना सोचे समझे किए गए लॉकडाउन का शिकार हो गए है। इस लॉकडाउन का खामियाजा अब बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह से भुगत रही है। लाखों लोग बिहार के गांवों में बेरोजगार है। लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों से रोजी-रोटी छोड़कर वापस लौटे बिहार कामगारों की हालत खराब है।

कोरोना और लॉकडाउन ने बिहार के विकास की पोल ही खोल दी। आंकड़ों में सरकार बिहार के ग्रोथ की तारीफ करते नहीं थकती थी। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि बिहार में 56 प्रतिशत श्रम खेती में लगा हुआ है। 8 प्रतिशत श्रम उधोग में लगा हुआ है। वहीं बिहार में आज भी लगभग 50 प्रतिशत युवाओं के पास रोजगार नहीं है। 2005 मे नीतीश कुमार ने दावा किया था कि राज्य में इतना विकास किया जाएगा कि राज्य के लोग दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए नहीं जाएंगे। लेकिन 15 सालों के बाद भी हालात नहीं सुधरे है। 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार और उतर प्रदेश से लगभग 2.9 करोड़ लोग दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए गए। इसके बाद बिहार से दूसरे राज्यों में कामकाज के लिए जाने वालों की संख्या बढ़ी। इसमें वे जातियां ज्यादा थी जिसके विकास का दावा सताधारी दल करता रहा है। दूसरे राज्यों में कामकाजी बिहारियों में ज्यादातर संख्या अनुसूचित जाति, अति पिछड़े और अन्य पिछ़ड़ी जातियों की है। बिहार से दूसरे राज्यों में गए प्रवासियों में 20 प्रतिशत दलित जाति से संबंधित है। 22 प्रतिशत अन्य पिछड़ी जातियों से संबंधित है। जबकि 42 प्रतिशत अति पिछड़ी जातियों से संबंधित है।

अगर एनडीए सरकार मे पिछड़े, अति पिछड़े और दलित जातियों का विकास हुआ तो ये दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में क्यों गए? यही नहीं बिहार का विकास का दावा करने वाली सरकार को ये प्रवासी मजदूर बाहर से भी मदद करते रहे। बिहार के विकास में अपना योगदान देते रहे। ज्यादातर प्रवासी बिहारी प्रति माह अपने राज्य में 3 से 4 हजार रूपया अपने घर भेजता है। घर के सदस्य इस पैसे को बाजार में खर्च करता है, इससे राज्य के विकास में गति आती है। एक अनुमान के अनुसार दूसरे राज्यों में कामकाजी बिहारी अपने राज्य में सलाना 30 हजार करोड़ रुपया भेजते है। यही नहीं बिहार के बहुत सारे लोग खाडी के देशों में भी श्रम कर रहे है। बाहरी मुल्कों में काम करने वाले बिहारी सलाना अपने राज्य में लगभग 7 हजार करोड़ रुपये भेज रहे है। लेकिन कोरोना और लॉकडाउन की मार इसपर भी पड़ी है।