
बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियां दलित आबादी को लुभाने के प्रयास में हैं। इसमें जदयू जी-जान से लगी है क्योंकि चिराग पासवान नीतीश कुमार के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के साथ गठबंधन करने का यही कारण है। पार्टी इतने पर ही नहीं रुकी है, बल्कि वह बकायदा दलित मिशन शुरू करने वाली है।
इस दलित मिशन के अंतर्गत जदयू ने दलितों के कल्याण के लिए नीतीश सरकार के पिछले 15 वर्षों के कामकाज को प्रचारित किया जाना है। यह अभियान अक्टूबर के पहले सप्ताह से राज्य के सभी जिलों में एक साथ शुरू होने वाला है। इसमें दलित-महादलित समुदायों के हित में हुए कार्यों और योजनाओं को प्रचार-पुस्तिकाओं और भाषणों से प्रचारित किया जाएगा जिसमें युवा मतदाताओं को आकर्षित करने पर विशेष जोर रहेगा। मिशन का कार्यक्रम नीतीश सरकार के दलित मंत्रियों की बैठक में बनाया गया।
जदयू कोटे से मंत्री महेश्वर हजारी के अनुसार इस मिशन का पहला चरण बूथ स्तर पर पूरा हो गया है। अक्टूबर से अगला चरण आरंभ किया जाएगा। इसमें पिछले 15 वर्षों के कार्यों का उल्लेख किया जाएगा। चुनाव आचार संहिता लागू होने से अब अगली योजनाओं का जिक्र तो नहीं किया जा सकेगा, पर पहले यह भी किया जाना था। इस चरण में हर जिले में दलित-महादलित सम्मेलन किया जाना है।
दलित आबादी में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए नीतीश सरकार ने पिछले महीनों में कई काम किए हैं। पहला तो कभी घोर विरोधी रहे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से गठबंधन करके उन्हें एनडीए में लाना है। ऐसा करके वे श्याम रजक के जदयू छोड़कर राजद में जाने के नुकसान की भरपाई होने की उम्मीद उन्हें है। उनके साथ ही राजद विधायक प्रेमा चौधरी को भी जदयू में शामिल किया गया है। इसका मकसद चिराग पासवान की बयानबाजी का मुकाबला करना लगता है।
जीतन राम मांझी ने जदयू से गठबंधन के फौरन बाद कहा कि चिराग अगर मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ बोलेंगे तो उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। यह जरूर है कि चालाक राजनेता के तौर पर नीतीश ने भांप लिया है कि दलितों में कोरोना बंदी की वजह से गहरी नाराजगी है क्योंकि प्रवासी मजदूरों में अधिकांश दलित ही हैं जिन्हें अपनी आजीविका गंवानी पड़ी है। कोरोना के बाद बाढ़ से भी काफी विनाश हुआ है। इसे भी सबसे अधिक दलियों को ही झेलना पड़ा है।
इस महीने के आरंभ में नीतीश सरकार ने किसी दलित की हत्या होने पर परिवार के एक व्यक्ति को फौरन सरकारी नौकरी देने की घोषणा की। इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई। चिराग पासवान ने मांग कर दी कि पहले पिछले 15 साल में मारे गए दलितों के परिजनों को नौकरी दें, फिर इसकी घोषणा करें। साथ ही दलितों से संबंधित मुकदमों के फार्स्ट कोर्ट को तत्काल सौंपा जाए ताकि मामलों की जल्दी निपटारा हो सके। उन्होंने दलित समुदाय के हर परिवार को तीन डिसमिल वासभूमि देने की सरकार की पुरानी घोषणा की याद दिलाते हुए कहा कि इसे पुराने अश्वासन को पूरा करने का साहस सरकार को दिखाना चाहिए।
हालांकि जीतन राम मांझी ने कहा है कि चिराग को अपने पिता राम विलास पासवान के माध्यम से इसका प्रयास करना चाहिए कि दलितों को मिलने वाले आरक्षण को सविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए जिससे अदालतों के हस्तक्षेप से बचाव हो सके।
बिहार की आबादी में दलियों की हिस्सेदारी करीब 16 प्रतिशत है। जिसमें सबसे अधिक करीब 5 प्रतिशत पासवान हैं। नीतीश की जाति कूर्मी की आबादी करीब 4 प्रतिशत है और कोयरी करीब 6 प्रतिशत जो नीतीश को वोट देते हैं। इस दस प्रतिशत आबादी के वोट बैंक के बदौलत भाजपा या राजद की सहायता से नीतीश पिछले 15 साल से लगातार मुख्यमंत्री बने हुए हैं। 2005 में जब वे पहली बार सत्ता में आए तो उन्होंने पंचायतों और स्थानीय निकायों में आरक्षण देने के अलावा महादलित नामक एक वर्ग बनाया जिसमें 22 दलित जातियों में से 21 शामिल की गई, केवल पासवान को बाहर छोड़ दिया गया। हालांकि 2018 में दोबारा एनडीए में आने के बाद उसे भी महादलित वर्ग में शामिल कर लिया गया। पर चिराग पासवान के मन में पासवान समुदाय के साथ भेदभाव का मलाल बना हुआ है।