
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान शुरू हो गया है। मतदान से पहले की बदजुबानी चुनाव परिणामों के संकेत दे रही है। निश्चित तौर पर एनडीए के नेताओं का आत्मविश्वास गिरा है। संयम के लिए मशहूर नीतीश कुमार की भी जुबान फिसल रही है। जुबान का फिसलना बताता है कि नीतीश कुमार को अच्छी रिपोर्ट नहीं आ रही है। जमीन पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने नीतीश से दूरी बनायी हुई है। उधऱ नीतीश के कार्यकर्ता भी अब भाजपा से दूरी बना चुके है।
पहले चरण में नीतीश की परेशानी वही अगड़ी जातियां बन गई है, जो 2005 से इन्हें सत्ता में लाने के लिए जिम्मेवार रही है। अगड़ी जातियों की आक्रमकता नीतीश के खिलाफ बढ़ी हुई है। वहीं अगड़ी जातियां भाजपा के प्रति उदासीन हो गई है। भाजपा की चिंता अगड़े मतदाताओ के विरोध की नहीं है। भाजपा की चिंता यह है कि अगड़े मतदाता अगर उनके उम्मीदवारों के लिए बूथ तक नहीं पहुचे तो क्या होगा?
चुनाव शुरू होने से पहले एनडीए कैंप का वाट्सएप और फेसबुक ग्रुप जंगलराज को लेकर सक्रिय हो गया है। पुरानी बातों को याद दिलाया जा रहा है। कैसे कार छीनी जाती थी, कैसे अगड़ी जातियों की संपत्तियों पर कब्जा किया जाता था, कैसे छह बजे के शाम के बाद लोग घरों में बंद हो जाते थे, सारा कुछ फेसबुक और वाट्सएप पर याद दिलाया जा रहा है। उम्रदराज अगड़े लोग और यादव वर्चस्व से डरने वाली अति पिछड़ी जातियों पर ये मैसेज कुछ प्रभाव भी डाल रहे है। पर लालू यादव विरोधी युवा भी नीतीश के विकास को स्वीकार करते हुए सवाल पूछ रहे है, ‘सड़क और बिजली खाएंगे क्या, रोजगार तो है नहीं’।
कोरोना लॉकडाउन अफेक्ट दिख रहा है। इसके कारण गए रोजगार का अफेक्ट दिख रहा है। इसकी जानकारी भाजपा को भी है। जातीय समीकऱण बिहार में निश्चित तौर पर चुनाव परिणाम तय करते है। लेकिन जातीय समीकऱण पर बेरोजगारी, भूखमरी, हावी हो गई है। चुनाव प्रचार के दौरान यह संकेत साफ मिल रहा है बेरोजगारी के कारण अगड़ी जातियों के युवा मतदाताओं का सिर्फ नीतीश कुमार ही नहीं भाजपा से भी मोहभंग हुआ है।
अति पिछड़ी जातियों के युवा भी नीतीश कुमार और भाजपा से बेरोजगारी को लेकर नाराज है। नरेंद्र मोदी का प्रभाव साफ घटता नजर आ रहा है। युवा बेरोजगारी औऱ महंगाई के लिए सीधे मोदी को जिम्मेवार ठहरा रहे है। यही काऱण है कि सासाराम और गया में नरेंद्र मोदी की रैली खास असर नहीं छोड़ पायी है।
हालांकि अगड़ी जातियों में उम्रदराज लोग आज भी लालू यादव से नफरत करते है। वे जंगलराज को याद करते हुए एनडीए को छोड़ने को बिल्कुल तैयार नहीं है। जबकि अगड़े युवा और गैर यादव पिछड़ी जातियों से संबंधित युवा अब रोजगार की भी बात करने लगे है। इन अगड़े युवाओं पर चिराग पासवान की नजर है। दरअसल चिराग पासवान के इर्द-गिर्द भी अगड़ो की जमात सक्रिय है। इसमें पूर्व सांसद सूरजभान सिंह शामिल है। विधानसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में सूरजभान सिंह की अहम भूमिका रही है।
सूरजभान बिहार की राजनीति में चिराग पासवान को मजबूत करने के लिए बनाई गई रणनीति में भूमिहार जाति को भाजपा और जद यू के पाले से खींच लोजपा की तरफ लाना चाहते है। टिकट बंटवारे में ये रणनीति साफ दिख रही है। दूसरी अगड़ी जातियों को भी लोजपा के पाले में लाने की रणनीति के तहत चिराग ने टिकट में अच्छी हिस्सेदारी दी है।
विधानसभा चुनावों के बाद बिहार में राजनीतिक समीकरण में बदलाव की संभावना है। नए गठबंधन का निर्माण भी हो सकता है। लेकिन ये सारा कुछ चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा। अगर नीतीश कुमार सत्ता से वंचित हो गए तो बिहार में अगड़ी जातियों का झुकाव चिराग पासवान की तरफ बढ़ सकता है। अगर कांग्रेस की सीटें पहले के मुकाबले बढती है तो अगड़ी जातियों का झुकाव कांग्रेस की तरफ भी बढ़ेगा।
2005 में नीतीश कुमार ने भाजपा के सहयोग से बिहार में लालू यादव के खिलाफ एक जातीय समीकरण बनाया था। इस जातीए समीकऱण में गैर यादव पिछड़ी जातियां और अगड़ी जातियां शामिल हुई थी। नीतीश के इस समीकरण ने मुस्लिम-यादव एलांयस को पराजित कर दिया था। हालांकि अगड़ी जातियों के एकमुश्त वोट लेने के बावजूद नीतीश कुमार अतिपिछड़ा और महादलित की राजनीति करते रहे। पिछड़े और दलित वर्ग की सबसे मजबूत जाति के खिलाफ उसी वर्ग की कमजोर जाति को खड़ा किया गया।
इस राजनीतिक खेल के काऱण नीतीश मजबूत भी हुए। इसका लाभ भी उन्हें मिला। उन्होंने पासवान जाति के खिलाफ अन्य दलितों को खड़ा किया। यादव जाति के खिलाफ अन्य पिछड़ी जातियों को खड़ा कर दिया। अगड़ी जातियां नीतीश की अति पिछड़ा और महादलित की राजनीति से बहुत ज्यादा परेशान नहीं थी। क्योंकि उन्हें लगता था कि नीतीश ने बिहार में बिजली, सड़क दी। नीतीश ने कानून का शासन दिया।
लेकिन अगड़ी जातियों की परेशानी तब बढ़ी जब नीतीश ने ऊंची जातियों की प्रभुत्व वाली विधानसभा और लोकसभा सीटों पर पिछ़ड़ी जाति के उम्मीदवार उतारने शुरू कर दिए। नीतीश के साथ-साथ यही काण भाजपा ने भी शुरू कर दिया। अगड़ी जातियों को लगने लगा कि नीतीश कुमार सिर्फ रोजगार में ही उनके अवसर खत्म नहीं कर रहे है, बल्कि उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी भी चालाकी से खत्म कर रहे है। हालांकि अगड़ों का शत-प्रतिशत समर्थन नीतीश कुमार को मिला।
भाजपा ने भी चालाकी से ऊंची जाति वाली कुछ लोकसभा सीटें पिछड़ी जातियों के हवाले कर दी। पाटलीपुत्र सीट पर अगड़ी जातियों का दावा रहा है। लेकिन भाजपा ने इस लोकसभा सीट पर राजद से आयातीत उम्मीदवार रामकृपाल यादव को चुनाव लड़ाया। यही कुछ हाल मुजफ्फऱपुर लोकसभा सीट का भाजपा ने किया। इस सीट पर अगड़ी जातियों का दावा रहा है। लेकिन भाजपा ने यह सीट पहले जद यू से आए स्वर्गीय कैप्टन जयनारायण निषाद को दे दी। अब उनके बेटे अजय निषाद यहां से सांसद है।
भाजपा और जद यू की जातीए समीकरण को लोक जनशक्ति पार्टी ने काफी गहराई से अध्धयन किया। यही कारण है कि भाजपा और जद यू के अगड़े वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए इस विधानसभा चुनाव में चिराग ने अगड़ी जातियो को जमकर टिकट बांटा है। चिराग पासवान की नजर भविष्य की राजनीति पर है। उन्होंने अगड़ी जातियों को संदेश दिया है कि वे नीतीश और भाजपा से ज्यादा सम्मान अगड़ी जातियों को देंगे।
चिराग पासवान के आसपास सक्रिय लोगों का कहना है कि अगर 3 प्रतिशत आबादी वाली कुर्मी जाति के नेता नीतीश कुमार अगड़ी जातियों और गैर यादव पिछड़ी जातियों का समीकरण बना बिहार में मुख्यमंत्री बन सकते है, तो 5 प्रतिशत की आबादी वाली पासवान जाति के चिराग पासवान अगड़ी जाति और दलित जातियों का समीकरण बनाकर मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकते है?