बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और एनडीए गठबंधन के साथी रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के बीच तनाव खासा बढ़ गया है। दोनों दलों के बीच राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। नीतीश कुमार चिराग पासवान की पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी को चुनावी गठबंधन में 2015 के विधानसभा चुनावों के तर्ज पर सीट दिए जाने के पक्ष में नहीं है। उन्होंने चिराग पासवान को बैलेंस करने के लिए जीतनराम मांझी को एनडीए के खेमे में लाने का फैसला लिया है। नाराज चिराग पासवान पूरी तरह से नीतीश से दो-दो हाथ करने को तैयार है। चिराग नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। आखिर दोनों के बीच इस संघर्ष के कारण क्या है? क्या सत्ता में हिस्सेदारी ही दोनों के बीच संघर्ष का काऱण है? या कारण कुछ और भी है? इसकी पडताल जरूरी है।
नीतीश कुमार और रामविलास पासवान के बीच राजनीति तनाव एक सामान्य राजनीतिक तनाव नहीं है। इसके पीछे बिहार का जातीय ताना-बाना भी जिम्मेवार है। नीतीश कुमार कुर्मी जाति तो रामविलास पासवान दुसाध जाति से संबंधित है। ये दोनों जातियों के बीच बिहार के मगध इलाके में लंबे समय से तनाव रहा है। ब्रिटिश राज में पासवान जाति जमींदारों के लिए राजस्व वसूली का काम करती थी। गांवो में चौकीदारी का काम भी पासवानों के पास था। मगध के इलाके में भी जमींदारों के राजस्व वसूली का काम पासवान ही करते थे।
जमींदारों के नजदीक होने के कारण पासवान जाति का तनाव काश्तकारों से हो जाता था। बिहार के मगध इलाके में कुर्मी काश्तकारों की संख्या अच्छी है। हालांकि ग्रामीण इलाकों में पासवानों का टकराव यादव जाति से भी रहा है। मगध के कई जिलों में पासवान और यादवों के बीच टकराव होता रहा है। यही नहीं नक्सली संगठनों में भी पासवान और यादव कैडरों के बीच तनाव रहा है। कई नेताओं की हत्या इन जातियों के तनाव कारण हुई है। 2005 में गया के पूर्व सांसद राजेश कुमार की हत्या भी जातीय तनाव का परिणाम था।
नीतीश कुमार का गृह नगर नालंदा है। नालंदा जिलें में पासवान और कुर्मी जाति के बीच लंबे समय से तनाव रहा है। नालंदा जिले के हरनौत विधानसभा इलाके में बिहार का मशहूर नरसंहार बेलछी कांड हुआ था। इस कांड में अभियुक्त कुर्मी जाति से थे। जबकि नरसंहार के शिकार पासवान जाति के लोग हुए थे। इस हत्याकांड ने बिहार में मजबूत होती पिछड़ी जातियां और दलित जातियों के बीच उभरते तनाव के साफ संकेत दिए थे।
बेलछी कांड के दो-तीन साल पहले ही नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और लालू यादव की राजनीति शुरू हो चुकी थी। तीनों की राजनीतिक धारा एक थी। तीनों समाजवादी विचारधारा से निकले हुए युवा नेता थे। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन ने इनकी पहचान बनायी थी। हालांकि बिहार की राजनीति के तासीर के मुताबिक तीनों की समाजवादी विचारधारा में जातीय प्रभाव हावी रहा। दिलचस्प स्थिति यह भी है कि तीनों नेताओं की जातियों में आपसी संबंध काफी खराब है।
बिहार में यादव, कुर्मी और पासवान तीनों जातियों के बीच ग्रामीण इलाकों में लंबे समय से संघर्ष है। 1990 के बाद गैर कांग्रेसवाद के दौर में इन तीनों जातियों का संघर्ष सत्ता के गलियारों में जमकर बढ़ा। संसाधनों पर कब्जे के लिए तीनों जातियों के बीच संघर्ष हुआ। नीचले स्तर पर ग्राम पंचायत से लेकर ब्लॉक प्रमुख तक के चुनावों में इन जातियों के बीच संघर्ष देखा गया। इस सत्ता संघर्ष का एक मुख्य कारण तीनों जातियों का अपने-अपने वर्ग में खासा मजबूत होना है। ये मजबूती सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से नजर आती है।
पासवान दलितों मे सबसे ज्यादा राजनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूत है। कुर्मी पिछड़ों में सबसे ज्यादा आर्थिक रूप से संपन्न है। वहीं यादव पिछड़ों में संख्या बल होने के कारण राजनीतिक रूप से खासे मजबूत है। बिहार में कुर्मी जाति को हमेशा यादवों के आगे निकलने का डर रहा है। कुर्मी जाति को यादवों से यह भय रहा है कि यादव कहीं नौकरियों समेत तमाम दूसरे आर्थिक संसाधनों पर कब्जे के मामले में कहीं उनसे आगे न निकल जाए।
यादवों को सत्ता के शीर्ष से हटाने के लिए कुर्मी जाति ने बिहार में राजनीतिक मोर्चे पर अगड़ों से गठबंधन किया। नीतीश कुमार का भाजपा से गठबंधन इसी रणनीति का परिणाम था। उधर पासवान जाति के बढ़ते राजनीतिक हैसियत से कुर्मी और यादव दोनों पिछड़ी जातियां शुरू से ही भयभीत रही है। दरअसल बिहार में सामाजिक न्याय के नाम पर हुए सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ता की मलाई खाने के लिए तीनों जातियों में खासा संघर्ष रहा है। गौरतलब है कि बिहार में सामाजिक न्याय के नारे पर 1990 में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद बिहार मुख्यमंत्री पद पर यादव और कुर्मी जाति के नेता ही विराजमान रहे है। इन दोनों जातियों के मुख्यमंत्री बनने के बाद पासवान जाति की लालसा है कि एक बार सत्ता के शीर्ष पर उनकी जाति के नेता भी पहुंचे।
नीतीश कुमार पर गंभीर आरोप है कि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद राजनीतिक रूप से मजबूत दो जातियां यादव और पासवान का खासा उत्पीड़न किया गया। लालू यादव की पार्टी राजद ने नीतीश कुमार पर यादव जाति का उत्पीड़न का आऱोप कई बार लगाया। रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा ने भी नीतीश कुमार पर पासवान जाति से भेदभाव करने का आऱोप लगाया।
2010 के विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान और लालू यादव के बीच चुनावी समझौता हुआ था। यह बिहार में यादव-पासवान का गठजोड़ बनाने का एक प्रयास था, जो सफल नहीं हो पाया। लेकिन गठजोड़ का एक कारण यह भी था कि दोनों जातियों को नीतीश राज में अपना उत्पीड़न नजर आ रहा था। नीतीश कुमार के खिलाफ लगाए गए आरोपों मे दम नजर आता है। नीतीश कुमार ने यादवों को राजनीतिक रूप से हाशिए पर लाने के लिए अति पिछड़ा कार्ड खेला। नीतीश कुमार ने पासवानों को राजनीतिक रूप से हाशिए पर लाने के लिए महादलित कार्ड खेल दिया। आरोप तो यह भी लगाया जाता है कि बतौर रेल मंत्री नीतीश कुमार पूर्व रेल मंत्री रामविलास पासवान के खिलाफ कुछ मामलों की जांच चाहते थे। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने नीतीश कुमार को इस तरह के कार्य करने से मना कर दिया था।