बिहार में वामपंथी दलों को क्यों महत्व दे रही है कांग्रेस

कन्हैया कुमार और राहुल गांधी के संवाद के बाद शक्ति सिंह गोहिल और मदनमोहन झा पटना स्थित सीपीआई कार्यालय में गए थे। बैठक में गठबंधन की पूरी संभावनाओं पर विचार किया गया है। हालांकि अभी भी कारपोरेट की कोशिश होगी कि कन्हैया कुमार और लेफ्ट पार्टियों को महागठबंधन में शामिल नहीं किया जाए। क्योंकि कारपोरेट ने बिहार के लिए जो डिजाइन बनाया है, उसमें कन्हैया जैसे लोग फिट नहीं हो सकते है।

बिहार में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई है। एनडीए गठबंधन, महागठबंधन, तीसरा मोर्चा की सक्रियता बिहार में इस समय बढ़ी हुई है। इस बीच एक राजनीतिक खबर बिहार में सतारूढ़ एनडीए गठबंधन की परेशानी बढ़ा रही है। खबर यह है कि एनएडी के खिलाफ मजबूत मोर्चेबंदी के लिए महागठबंधन लेफ्ट पार्टियों को भी अपने साथ शामिल करने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
हालांकि बिहार में वामदलों का आधार काफी कम हो चुका है। लेकिन कुछ इलाकों में सीपीआई और सीपाआई-एमएल का अपना एक कैडर है। वहीं बेरोजगार, भूखमरी, बदहाली और भ्रष्टाचार के मुद्दों को गरमाने का तरीका और नजरिया जो लेफ्ट पार्टियों के पास है, उसे कांग्रेस इस बार भुनाना चाहती है। कोविड-19 ने बिहार के सारे विकास की पोल खोल दी है। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली लोगों के सामने आ गई है। गांवों से लेकर शहरों में बेरोजगारों की भीड़ इस समय बिहार में है। इस मौके का फायदा महागठबंधन उठाना चाहता है।

बीते दिनों पटना स्थित सीपीआई कार्यालय में कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल, बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदनमोहन झा पहुंचे थे। उनकी मुलाकात बिहार सीपीआई के सेक्रेटरी  से हुई। दोनों पक्षों की बैठक में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बातचीत हुई। मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस ने सीपीआई को गठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव रखा है। हालांकि इस प्रस्ताव में महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राष्ट्रीय जनता दल की सहमति है या नहीं अभी तक स्पष्ट नहीं है। 

उधर बैठक में सीपीआई के सेक्रेटी ने कांग्रेस नेताओं को कहा कि उनकी पार्टी गठबंधन में आने को लेकर तैयार है। बैठक में सीपीएम और सीपीआई-एमएल को भी गठबंधन में शामिल करने पर चर्चा हुई। लेकिन अभी भी मामला राजद के पेंच से संबंधित है। दरअसल राजद जहां सीपीआई-एमल को लेकर नरम रवैया अपना रहा है, वहीं सीपीआई को लेकर तल्ख हो गया है। हालांकि कांग्रेस के नेताओं ने सीपीआई को जानकारी दी कि लालू यादव सारे लेफ्ट ग्रुप को गठबंधन में शामिल करने पर सहमत है।

लोकसभा चुनाव में सीपीआई ने राजद से सिर्फ एक सीट बेगूसराय की मांगी थी। लेकिन राजद ने ये सीट सीपीआई को नहीं दी। राजद ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया था। दरअसल बेगूसराय से कन्हैया कुमार सीपीआई के उम्मीदवार थे। कन्हैया भविष्य में तेजस्वी के लिए बिहार में चुनौती बन सकते है, यह अंदेशा लालू यादव के सहयोगी जताते रहे है। इसलिए राजद ने कन्हैया कुमार की हार सुनिश्चित करने के लिए उम्मीदवार खड़ा कर दिया। दरअसल कन्हैया का भय तेजस्वी यादव में अभी भी खत्म नहीं हुआ है। राजद के इंटैलेक्चुएल विंग में कन्हैया का विरोध आज भी है। वे आज भी तेजस्वी को समझा रहे है कि कन्हैया बिहार में उनके लिए खतरा है। इसलिए कन्हैया को हाशिए पर ऱखा जाए। क्योंकि कन्हैया युवा है। अच्छे वक्ता है। बिहार में उनकी हुई कई सभाओं में युवाओं की अच्छी भीड़ भी आयी है। इन परिस्थितियों में तेजस्वी की परेशानी स्वभाविक है।

लेकिन अगले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की कोशिश है कि लेफ्ट ग्रुप को बिहार में महागठबंधन  में शामिल किया जाए। वैसे इस बार लेफ्ट पार्टियों को महागठबंधन में शामिल करना मुश्किल नहीं है। 2015 में नीतीश कुमार और राजद के बीच गठबंधन हुआ था। राजद ने नीतीश कुमार के लिए 101 सीटें छोड़ी थी। नीतीश अपने बीच के कार्यकाल में ही राजद के साथ गठबंधन को तोड़ भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए चले गए। कांग्रेस का तर्क है कि जद यू कोटे की 101 सीटें जो राजद ने पिछले चुनाव में छोड़ी थी, वहां लेफ्ट पार्टियों को हिस्सेदारी दी जा सकती है।
  
बताया जाता है कि कन्हैया कुमार और राहुल गांधी के बीच हुए संवाद के बाद शक्ति सिंह गोहिल और मदनमोहन झा पटना स्थित सीपीआई कार्यालय में गए थे। बैठक में गठबंधन की पूरी संभावनाओं पर विचार किया गया है। हालांकि अभी भी कारपोरेट की कोशिश होगी कि कन्हैया कुमार और लेफ्ट पार्टियों को महागठबंधन में शामिल नहीं किया जाए। क्योंकि कारपोरेट ने बिहार के लिए जो डिजाइन बनाया है, उसमे कन्हैया जैसे लोग फिट नहीं हो सकते है। बिहार में लेफ्ट पार्टियों की हल्की वापसी भी कारपोरेट के झारखंड और पश्चिम बंगाल में बनाए गए डिजाइन को नुकसान पहुंचाएगा।

राहुल गांधी की रणनीति फिलहाल थोड़ी स्पष्ट नजर आ रही है। राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का मुखर विरोध कर रहे है। जबकि भाजपा विरोधी कई क्षेत्रीय दल चुप्पी साधे हुए है। हालांकि राहुल की आक्रमकता का परिणाम क्या होगा, इसके बारे में कहना मुश्किल है? राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोर विरोधियों को फ्रंटफुट पर खेलने का मौका देने की कोशिश कर रहे है। इसमें हार्दिक पटेल और कन्हैया कुमार शामिल है। हार्दिक पटेल की उपयोगिता गुजरात में है। कन्हैया कुमार की उपयोगिता बिहार विधानसभा चुनाव में है।

हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष राहुल ने बनाया है। राहुल गांधी ने संकेत दिए है कि मोदी के गृह राज्य गुजरात में कांग्रेस और तीखा संघर्ष करने वाली है। हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल होने से पहले से भाजपा के साथ टकराव लेते रहे है। हार्दिक पटेल और भाजपा के बीच तल्खी काफी आगे पहुंच चुकी है। पटेल भाजपा के दवारा फेंके गए किसी लोभ मे नहीं आएंगे। दरअसल इससे पहले गुजरात में राहुल का अल्पेश ठाकोर वाला दाव फेल हो गया था। इधर कन्हैया कुमार भी राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी विरोध का चेहरा बन चुके है। कन्हैया कुमार की उपयोगिता बिहार में है। क्योंकि इस समय बिहार बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहा है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भूखमरी बिहार में इस समय प्रमुख मुद्दा है।

बिहार में महागठबंधन की विस्तार की संभावना से सत्ताधारी एनडीए सतर्क है। एनडीए को पता है कि कोविड-19 के कारण बिहार में लोगों की नाराजगी सरकार से काफी बढ़ी है। सता पक्ष को डर है कि ये नाराजगी वोट में तब्दील हो गई तो एनडीए के हाथ से सत्ता जा सकती है। वैसे में एनडीए गठबंधन चाहता है कि महागठबंधन का चेहरा लालू यादव ही हो। ताकि बेरोजगारी, भूखमरी, भ्रष्टाचार से परेशान गैर यादव मतदाता सरकार से नाराज होने के बजाए लालू यादव के चेहरे से डरकर वोट करे। अगर लालू यादव का चेहरा सामने आएगा तो लोगों को जंगलराज याद आएगा। ऐसे में एनडीए से नाराज मतदाता मतदान केंद्र पर जाते-जाते अपनी राय बदल लेगा और एनडीए को वोट कर देगा। 

कांग्रेस भी इस स्थिति को समझ रही है। यही काऱण है कि कांग्रेस महागठबंधन का और विस्तार चाहती है। ताकि लालू यादव और जंगलराज चुनाव में मुद्दा ही न बने। बेरोजगारी, भूखमरी, बदहाली और भ्रष्टाचार बिहार में चुनावी मुद्दा बन जाए। वैसे तो कांग्रेस यह भी नहीं चाहती है कि तेजस्वी यादव का चेहरा बतौर मुख्यमंत्री पेश किया जाए। लेकिन फिलहाल महागठबंधन के अंदर सबसे मजबूत दल तेजस्वी की पार्टी राजद ही है। उधर तेजस्वी यादव और लालू यादव भी इस बात को समझ रहा है कि अगर इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की स्थिति खराब हुई तो भाजपा के सामने सरेंडर करने के सिवाए उनके पास कोई चारा नहीं होगा। 

First Published on: July 17, 2020 9:57 AM
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