सारिका के फोटोग्राफर पिता ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक कम्पटीशन में अपनी बच्ची का फोटो ऐसे ही बिना सोचे समझे भेज दिया था। फोटो अस्वीकार हो जायेगा इस बात के लिए पिता पहले से ही तैयार थे लेकिन उनकी बच्ची की फोटो पर एक फोटोग्राफर की नज़र पड़ेगी और बाद में वही फोटोग्राफर मशहूर डायरेक्टर बी आर चोपड़ा को फ़ोन करके के ये बताएगा की उनकी अगली फिल्म के लिए एक बच्ची मिल गयी है, ये बात पिता ने सपने में भी नहीं सोची था।
जल्द ही सारिका को बी आर चोपड़ा की फिल्म हमराज़ मिल गई और उसके बाद बतौर चाइल्ड एक्टर फ़िल्मी दुनिया से रूबरू हुई। जब फिल्म की शूटिंग चल ही रही थी तब ही उनके माता पिता एक दूसरे से अलग हो गए। जिंदगी माँ और बच्ची के लिए कठिन जरूर हो गयी थी लेकिन दोनों ने साहस नहीं छोड़ा। फिल्म के हिट होने के बाद और बच्ची के लिये फिल्मों मे और काम ढूंढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ। पैसे की तंगी की वजह से खाने के लिए ईरानी रेस्टोरेंट का सहारा लेना पड़ता था और रिक्शा के पैसे बचाने के लिए ये दोनों चलना ज्यादा पसंद करते थे। बाल कलाकार के रूप में सारिका को आगे चल कर हृषिकेश मुखर्जी की दो फिल्में आशीर्वाद और मझली दीदी मिली और दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई। इसके बाद नन्ही सारिका संजीव कुमार, बी आर चोपड़ा और मीना कुमारी जैसे मशहूर फ़िल्मी हस्तियों की दोस्त बन चुकी थी।
लेकिन बेटी के माध्यम से पैसे कमाने की लालच ने माँ को कई मामलो में अँधा बना दिया और इसका सीधा परिणाम सारिका के स्कूलिंग पर पड़ा। 11 साल की उम्र तक सारिका ना पढ़ सकती थी और ना ही लिख सकती थी। फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त होने की वजह से माँ ने यही सोचा की सारिका की पढाई लिखाई के लिए होम ट्यूशन का सहारा लिया जाए और इस बाबत एक होम ट्यूटर की व्यवस्था आनन् फानन में कर दी गयी। वक़्त ने करवट बदली और जवानी की दहलीज पर जैसे ही सारिका ने कदम रखा उनको राजश्री फिल्म्स की गीत गाता चल फिल्म मिल गई। इस फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़े लेकिन साथ ही साथ इसकी सफलता सारिका के लिए परेशानी का सबब भी बन गई। माँ की पैसे की भूख और बढ़ती गयी और बेटी के साथ रिश्तो में दरार भी। असहाय होने की वजह से सारिका वो सभी काम चुपचाप करती गयी जो उनकी माँ ने उनको करने के लिये बोला। ना बोलने की सज़ा माँ की ओर से गुस्सैल निगाहों के रूप में मिलती थी।
बाद में ये सब कुछ इतना बढ़ गया की जनता के बीच में बेटी के ऊपर चिल्लाना, लोगो के बीच अपनी बेटी को थप्पड़ जड़ देना – ये सभी आम बातें हो गयी थी। मशहुर काल्मनिस्ट वीर सांघवी ने अपने एक कॉलम में इसके बारे में जिक्र करते हुए बताया है की मुंबई के षणमुखनन्द हॉल में एक चैरिटी फंक्शन का आयोजन सारिका की माँ ने किया था और उस जलसे की होस्ट सारिका थी लेकिन जब वो इवेंट के लिए देरी से पहुंची तब थप्पड़ के अलावा उनको अपनी माँ की गालिया भी सुननी पड़ी थी। लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद सारिका ने होस्ट की भूमिका ऐसे निभाई मानो कुछ हुआ ही ना हो। जब निर्देशक बासु भट्टाचार्य फिल्म गृहप्रवेश के नरेशन के लिए सारिका के घर गए थे तब उनकी माँ ने उनको यही कहा था की सारिका के बदले वो फिल्म की कहानी सुनेंगी। जब बासु भट्टाचार्य ने ये कहा की मैं कहानी सिर्फ सारिका को सुनाऊंगा क्योंकि फिल्म में वो काम करेगी तब उनकी माँ ने यही जवाब दिया था की बात तो उनको उनसे ही बात करनी पड़ेगी।
अति तब हो गयी जब एक प्रोड्यूसर ने सारिका के हाथ में फिल्म के मेहनताना के पैसे थमा दिए। फिल्मों के सारिका के काम के पैसे का लेनदेन उनकी माँ ही किया करती थी। जब उन पैसो से सारिका ने पढ़ने के लिए कुछ किताबें खरीद ली और ये बात जब माँ को पता चली तब उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। गुस्सैल निगाहों से एक बार फिर यही बोला गया की जब तक इजाजत ना मिले वो पैसो को छू भी नहीं सकती है। इस घटना के तुरंत बाद बिना कुछ सोचे समझे सारिका ने घर छोड़ दिया था और आने वाले सात दिन अपनी गाडी में बिताये थे।
इसके बाद सारिका ने खुद के लिए घर की तलाश शुरु कर दी लेकिन जब एक रियल एस्टेट एजेंट ने उनको ये बताया की उनके नाम से अंधेरी इलाके में 6 घर है तब उन बातों को सुनकर सारिका के होश उड़ गए। जब इस बात को लेकर सारिका ने अपने माँ को फ़ोन किया तब उनको यही सुनने को मिला की उनको अगर जाना है तो चली जाए लेकिन बेहतर ये होगा की गैस कनेक्शन उनके नाम करती जाए। सारिका के नाम से जो फ्लैट्स ख़रीदे गए थे उनका कोई जिक्र माँ ने बातचीत के दौरान नहीं किया।