आखिर, पान सिंह तुम सरेंडर कर ही दिओ…


अभिनय की भाव-भंगिमा ऐसी की हर दर्शक उस किरदार को अपने अंदर जज्ब करने को आतुर हो उठे। संवाद ऐसा की हर किरदार जीवंत हो उठे और नहीं देख सकने वाला सुनकर और नहीं सुन सकने वाला देखकर भाषा को समझ जाए, लेकिन हमें क्या मालूम कि बॉलीवुड का यह चमकता सितारा एक दिन अचानक यूं ही ढल जाएगा, उसकी किस्मत के सितारे जल चुके हैं और हजारों आंखों को अद्वितिय अभिनय देखने के ख्वाब अधूरे रहने वाले हैं।



मंज़ूर अहमद 
मुंबई।“ हमारी मंजिल तो जे है, हमारी कहानी
सुनईओ, खेल के मैदान में दौड़ने वाला पान सिंह अपनी रेस पूरी की है, सरेंडर नहीं
किओ, चलो फिर मिलेंगे रामचरण…।”

यह संवाद है इरफान खान
द्वारा अभिनीत फिल्म पान सिंह तोमर का। फिल्म सलाम बाम्बे में छोटे से किरदार से बॉलीबुड
में कदम रखने वाले इस अभिनेता को जो पहचान नहीं सका था, उसने इस किरदार से बॉलीबुड और बाहर की दुनिया को अपना परिचय कराया था।
अभिनय की भाव-भंगिमा ऐसी की हर दर्शक उस किरदार को अपने
अंदर जज्ब करने को आतुर हो उठे। संवाद ऐसा की हर किरदार जीवंत हो उठे और नहीं देख
सकने वाला सुनकर और नहीं सुन सकने वाला देखकर भाषा को समझ जाए। मकबूल, पान सिंह
तोमर, हासिल, लाईफ ऑफ पाई, स्लमडॉग मिलिनियर, द नेमसेक, अमेजिंग स्पाइडर मैन और
जुरासिक वर्ल्ड जैसी यादगार फिल्मों को देने वाले इरफान खान से कौन नहीं चाहता था कि हम
इस अभिनेता को और देखे और जिएं, लेकिन हमें क्या मालूम कि बॉलीवुड का यह चमकता
सितारा एक दिन अचानक यूं ही ढल जाएगा, उसकी किस्मत के सितारे जल चुके हैं और
हजारों आंखों को अद्वितिय अभिनय देखने के ख्वाब अधूरे रहने वाले हैं।

इरफान खान, एक परिचय

अभिनेता इरफान खान का जन्म राजस्थान के
जयपुर में 7 जनवरी 1967 को हुआ था। इनका पूरा नाम शाहबजादे इरफान अली खान था। इरफान खान का नाता राजस्थान राज्य के एक पठान परिवार से है। इनकी मां
का नाम सईदा बेगम और इनके पिता का नाम यासीन था। पिता टायर के व्यापारी थे।
इरफान  कुल तीन भाई बहन हैं, जिनमें से दो
भाई हैं और एक बहन है। इरफान खान ने साल 1995 में अपनी
प्रेमिका

नेशलन स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में
उनके साथ पढ़ने वाली और प्रसिद्ध लेखिका सुतापा सिकदर को अपना जीवन संगीनी बनाया और
इनसे बाबिल और आर्यन दो बेटे हुए।
इरफान खान ने एमए के पढ़ाई की थी और बाद में एनएसडी
से अभिनय की बारीकियों को सीखा था। इरफान का बचपन से ही पढ़ाई में मन नहीं लगता था
और स्कूल जाना अपने लिए बोझ समझते थे।
पैसे की कमी के कारण नहीं बन सके क्रिकेटर

बाद में उन्होंने क्रिकेट में अपना कैरियर
बनाने की ठानी और एक अच्छे खिलाड़ी भी बने, आर्थिक तंगी के कारण प्रथम श्रेणी के
क्रिकेट में चयन होने के बाद भी उन्हें यह छोड़ना पड़ा। इरफान खान बताते थे कि
पढ़ाई के दौरान ही उन्हें एनएसडी के एक कलाकार से मुलाकात हुई जो उस समय
स्कूल-कॉलेजों में जाकर सरकार के जागरुकता कार्यक्रमों से जुड़े छोटे-बड़े नाटक
किया करते थे। इन्हीं के सानिध्य में आकर इरफान खान ने अभिनय की शुरूआत की और कुछ बनने
की जिद ने उन्हें अभिनय के इस मुकाम पर पहुंचाया दिया। हालांकि अभिनय को लेकर इरफान
के घर के लोग बहुत खुश नहीं थे, लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं देख वे इसके लिए राजी हो गए।
मुंबई में किया संघर्ष 

इरफान खान अपनी एक्टिंग की पढ़ाई पूरी करने के
बाद मुंबई चले गए और यहां आकर इन्होंने फिल्मों में काम खोजना शुरू कर दिया। इरफान
के करियर के शुरुआती दिन काफी संघर्ष भरे थे। इन्हें फिल्मों की जगह टी.वी सीरियल
में छोटे मोटे रोल मिलने लगे और इस तरह से इरफान के करियर की शुरुआत बतौर एक
जूनियर कलाकार से हुई थी।
इरफान ने इन धारावाहिकों में किया काम  
इरफान कई हिंदी धारावाहिकों का हिस्सा रह चुके हैं और
इनके द्वारा किए गए कुछ धारावाहिकों में चाणक्य, भारत एक खोज, सारा जहां हमारा,
बनेगी अपनी बात, चंद्रकांत, श्रीकांत, स्टार बेस्टसेलर्स, मानो या ना मानो प्रमुख
हैं।

इरफान खान को बॉलीवुड में पहला ब्रेकअप
उन्हें तब मिला जब फिल्म निर्देशक मीरा नायर ने अपनी चर्चित फिल्म सलाम बाम्बे में
उनको डाकिए का छोटा सा किरदार दिया। बाद में इरफान खान अपनी मेहनत और लगन से अभिनय
की बुलंदियां छूते गए, लेकिन फिल्म पान सिंह तोमर के किरदार ने इरफान को शोहरत की बुलंदियों
पर पहुंचाया दिया और इस फिल्म के बाद इस अभिनेता का नाम फिल्मी जगत के हर एक्टर और
डायरेक्टर के साथ-साथ सभी सिने प्रेमियों की जुबान पर ला दिया। इस फिल्म में अभियन
के लिए इरफान खान को बेस्ट अभिनेता का 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित
भी किया गया।

साल-2008 में मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान

इरफान खान को आठ आस्कर ऑवार्डेड फिल्म स्लमडॉग मिलिनियर (2008) से अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। इरफान खान ने हॉलीवुड के मशहूर व मारुफ अभिनेताओं पर निर्देशकों के साथ भी काम किया था। उन्होंने हॉलिवुड की सच अ लांग जर्नी (1988), द नेमसेक (2006), द दार्जिलिंग लिमिटेड (2007), ए माइटी हॉर्ट (2007), द वारियर, द लाइफ ऑफ पाई(2012), द अमेजिंग स्पाइडर मैन (2012) जुरासिक वर्ल्ड(2015), इनफर्नों (2016) जैसी हॉलीवुड की फिल्मों में काम करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई। इसके अलावा इरफान खान ने बॉलीवुड में मकबूल, हासिल, रोग, पीकू, तलवार, बिल्लू, द इंगलिश मीडियम, साहेब बीबी और गैंगेस्टर, द लंच बाक्स सहित 30 से अधिक फिल्मों में शानदार अभियन का परिचय दिया। फिल्म अभिनेता इरफान खान को उनके हिन्दी सिनेमा में शानदार काम के लिए वर्ष-2011 में भारत सरकार ने पद्मश्री आवार्ड से सम्मानित भी किया था।
 
इरफान खान को  मिले आवार्ड

इरफान खान को अपने फिल्मी कैरियर में मिले पुरस्कारों में भारत सरकार द्वारी  दिया गया पद्मश्री अवार्ड के अलावा साल 2003 में ‘हासिल’ मूवी के लिए मिला फिल्म फेयर अवार्ड, साल 2007 में ‘लाइफ इन मेट्रो’ फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवार्ड, 2008 में IIFA आवार्ड शामिल है। साल 2012 में इरफान ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए मिला पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार इनकी फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए दिया गया था, इस फिल्म के लिए इरफान को फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड भी मिल चुका है। साल 2013 में इरफान खान को उनकी मूवी लंच बॉक्स के लिए दुबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह, एशिया प्रशांत फिल्म समारोह और एशियाई फिल्म समारोह में अवार्ड दिए गए थे। स्लमडॉग मिलियनेयर के लिए इरफान को सेंट्रल ओहियो फिल्म क्रिटिक्स एसोसिएशन की और से सर्वश्रेष्ठ एन्सेबल अवार्ड, फिल्म पीकू के लिए मेलबर्न के भारतीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवार्ड, फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ फिल्मफेयर में बेस्ट ऐक्टर का खिताब आदि पुरस्कारों से नवाजा गया। 
इरफान खान से जुड़े विवाद  
साल 2016 में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद को लेकर इन्होंने एक बयान दिया था। जिसमें उन्होंने कहा था कहा था कि ‘बकरों की कुर्बानी देना सही नहीं है। पहले बकरों की कुर्बानी इसलिए दी जाती थी, क्योंकि हम पहले जानवरों पर निर्भर रहते थे और ये हमारा भोजन हुआ करते थे। उस वक्त इनकी कुर्बानी देने का मतलब होता था कि लोग अपने खाने की कुर्बानी दे रहे है, लेकिन अब लोग दुकानों से इन्हें खरीदते हैं, इनकी हत्या कर देते हैं और इस हत्या को कुर्बानी कहा जाता है। ऐसे स्थिति में हम इसको सच्ची कुर्बानी कैसे कह सकते हैं?’. इरफान के इस बयान पर कई मुस्लिम संगठनों ने आपत्ति जताई थी और कहा था कि इन्हें अपने कार्य पर ध्यान देना चाहिए ना की धार्मिक रिवाजों पर बयान देना चाहिए। जिसके बाद अपनी आलोचना पर इरफान ने एक ट्विट करके कहा था कि ईश्वर का शुक्रिया है कि मैं धार्मिक ठेकेदारों द्वारा संचालित देश में नहीं रहता हूं।
जब नाम के कारण कई बार आई मुश्किलें

इरफान खान को उनके नाम के पीछे खान लगे होने के कारण भी परेशानियों का सामना करना पड़ा और उन्हें दो बार अमेरिकी एय़रपोर्ट पर देर तक पूछताछ से गुजरना पड़ा। खबरों के अनुसार  इरफान खान एक फिल्म करने के लिए 12 से 14 करोड़ रुपए लेते थे। इरफान खान का मुंबई में अपना एक फ्लैट है जिसमें ये अपने परिवार के साथ रहते हैं। इस फ्लैट की कीमत 2.5 करोड़ रुपए है। इरफान के पास कुल चार गाड़ियां भी है। इरफान किसी भी ब्रांड का हिस्सा बनने के लिए कम से कम 3 करोड़ रुपए लिया करते थे। इरफान खान अपने पीछे लगभग 80 करोड़ रुपए की संपत्ति छोड़ कर गए हैं।
 
कैंसर से थे ग्रसित 
अभिनेता इरफान खान न्यूरो एंड्रॉन ट्यूमर (NeuroEndocrine Tumour) नामक बीमारी से ग्रसित थे जो एक बहुत ही रेयर बीमारी थी और यह एक प्रकार का कैंसर था। इरफान खान गत साल 2018 में ही इस बीमारी का ब्रिटेन में साल भर चले इलाज के बाद लौटे थे और मुंबई के कोकिलाबेन अस्पातल में नियमित इलाज और जांच करवा रहे थे, लेकिन आखिरकार अभिनेता इस बीमारी के आगे हार गया और मुंबई की मायानगरी को छोड़कर सितारों की दुनिया में जा बसा। अभिनेता हमारे बीच भले नहीं रहे, लेकिन उनके किरदार की देश-दुनिया सदा याद रखेगा।