रुदाली (निर्देशिका – कल्पना लाजमी) (1993)
रुदाली महाश्वेता देवी की एक कहानी पर आधारित थी और इस फिल्म में गुलज़ार, राखी और भूपेन हज़ारिका जैसे कुछ बड़े नाम जुड़े हुए थे। शनिचरी की भूमिका डिंपल के लिए गेम चेंजर साबित हुई और इसी फिल्म ने उनको पहला नेशनल अवार्ड दिलवाया।
अंतरीन (निर्देशक – मृणाल सेन) (1993)
अंतरीन को बनाने वाले थे बांग्ला फिल्मों के दिग्गज मृणाल सेन और ये सादत हसन मंटो की एक कहानी पर आधारित थी। ये फिल्म एक नौजवान लेखक के प्रेम कहानी के बारें में थी। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब लेखक टेलीफोन पर एक महिला के साथ एक रिश्ता बना लेता है. उन दोनो की बातचीत लेखक की अगली कहानी का मूल बनती है।
लेकिन (निर्देशक – गुलज़ार) (1990)
लता मंगेशकर इस फिल्म की प्रोड्यूसर थी और रेवा के रोल में वो श्रीदेवी को पहले साइन करना चाहती थी लेकिन श्रीदेवी के व्यस्त शेड्यूल की वजह से ये संभव नहीं हो पाया। आगे चल कर इस रोल को डिंपल कपाडिया ने निभाया।
लीला (निर्देशक – सोमनाथ सेन) (2002)
लीला की कहानी विदेश में रह रहे साउथ एशियन कम्युनिटी के लोगो के बारें में है। डिंपल कपाडिया फिल्म में लीला की भूमिका में नजर आई थी। उदार विचार रखने के बावजूद लीला के दिमाग में इसी बात का द्वन्द है की सही आज़ादी का क्या मतलब है। लेकिन के बाद एक बार फिर से विनोद खन्ना डिंपल के साथ इस फिल्म में नजर आये थे। डिंपल की अदाकारी के अलावा जगजीत सिंह की कुछ ग़ज़लों ने भी फिल्म में चार चाँद लगाए थे।
दृष्टि (निर्देशक – गोविन्द निहलानी) (1990)
दृष्टि की कहानी एक संभ्रात दम्पति के बारे में थी जिनकी शादी में आठ साल के बाद दरारें पड़नी शुरू हो जाती है। संध्या के रोल में डिंपल कपाडिया ने एक बार फिर से जता दिया था की जटिल रोल में उनकी भूमिका ज्यादा निखर कर सामने आती है। पति के रोल में शेखर कपूर के साथ उन्होंने कदम से कदम मिलाया था।