जन्मदिन विशेष – इस ताकतवर प्रधानमंत्री की वजह से राजनीति में नरगिस दत्त की एंट्री हुई थी


1958 में जब नरगिस दत्त को पदमश्री से नवाजा गया था तब वही से राजनीति में उनके प्रवेश की भूमिका बंधनी शुरू हो गयी थी। श्रीमती इंदिरा गांधी की वजह से ही उनको 1980 में राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया था।


नागरिक न्यूज admin
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शादी के बाद नरगिस दत्त की जिंदगी पूरी तरह से बदल गयी थी। निजी जीवन मे पत्नी और मां की भूमिका उनको बेहद पसंद आने लगी थी। मां बनने के बाद वो फिल्मों के ऑफर को मना करने लगी थी। साउथ के मशहूर फिल्म मेकर एस एस वासन कभी भी अपनी फिल्मों के लिए किसी भी सितारे को सीधे अप्रोच नहीं करते थे लेकिन जब उन्होंने अपनी फिल्म में नरगिस को लेने की सोची तब वो एक अपवाद था। ऐसा कहा जाता है की मीटिंग के दौरान वासन ने नरगिस के सामने एक खाली चेक रख दिया और गुज़ारिश की की वो उसमें अपनी फ़िल्मी फीस की रकम भर ले। इसके बाद नरगिस ने उनकी यही कहा की मैं फिलहाल तीन फिल्मो में व्यस्त हूँ और वो फिल्में है संजू, नम्रता और प्रिया, इसके अलावा मैं और कोई फिल्म नहीं कर सकती हूँ। 

जब 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ तब जवानो के मनोरंजन के लिए सीमा पर नरगिस और सुनील दत्त ने कई सांस्कृतिक जलसो का आयोजन करवाया था। ऐसा कहा जाता है की जब नरगिस और सुनील दत्त 1962 में युद्ध के दौरान पंडित नेहरू से मिले थे तब वो बेहद ही दुखी थे और उसके बाद ही सैनिको के लिए कुछ करने का जिम्मा दोनों ने अपने सर पर लिया था। उसी मौके पर नरगिस दत्त ने सेना के लिए एक लाख रुपये का चेक भी दिया था। 1962 के अलावा 1965 और 1971 के युद्ध में भी सुनील दत्त की संस्था अजंता आर्ट्स वेलफेयर ट्रुप ने सैनिकों के मनोरंजन के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया था।

ऐसा कहा जाता है की आगे चलकर इंदिरा गांधी नरगिस के इस कृत्य से खुश हो कर उनके नाम को राज्य सभा के लिए 1980 में नॉमिनेट किया था। लेखक रशीद किदवई ने अपनी किताब नेता-अभिनेता में इसके बारे में उल्लेख किया है और ये भी बताया है की इसके बाद अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन काफी नाराज़ हो गयी थी। उनको इसी बात की उम्मीद थी की इंदिरा गांधी उनको राज्य सभा के लिए नॉमिनेट करेंगी। फिल्म जगत से नरगिस दत्त ऐसी दूसरी शख्शियत थी जिनको राज्य सभा में बैठने का मौका मिला था। भले ही राज्य सभा में उनकी मौजूदगी बेहद कम वक़्त के लिए रही हो (उनका देहांत अगले साल हो गया था) लेकिन अपने काम को उन्होंने बेहद ही गंभीरता से लिया।  

राजनीति में नरगिस दत्त के आने की भूमिका तभी से बंधने लगी थी जब 1958 में उनको पद्ममश्री से नवाजा गया। इंदिरा गाँधी के संपर्क में वो उसके बाद निरंतर रहने लगी और जब बॉम्बे में स्पास्टिक्स सोसाइटी बनाने की बात आयी तो श्रीमती गांधी ने नरगिस को याद किया जिसकी वजह से आगे चल कर उनकी पहचान एक एक्टिविस्ट के रूप में बनी। 1961 में बनी फिल्म रात और दिन उनकी आखरी फिल्म बनी और इसके बाद उन्होंने ग्लैमर का लबादा हमेशा के लिए छोड़ दिया। सफ़ेद कॉटन की साड़ी उनकी पहचान बन गयी।

मां की घर में गैरमौजूदगी की वजह से उनकी बेटियों में रोष पनपने लगा था। दिल्ली में कुसुम सेठी, योग शर्मा जैसे लोगो से उनकी पहचान हुई। ज्यादा काम और हमेशा दिल्ली और बॉम्बे के बीच सफर की वजह से उनके स्वस्थ्य पर बुरा असर पड़ने लगा। 1979 से लेकर अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले तक उनका काफी वक़्त दिल्ली में अपने राजनीतिक प्रतिबद्धता की वजह से बीता था। इंदिरा गांधी से नजदीकी की वजह से उन्होंने 1975 के आपातकाल के दौरान उनका साथ दिया था।