जन्मदिन विशेष – के आसिफ को मुग़ल-ए-आज़म की अनारकली फिल्म की शूटिंग के ५० दिन के बाद भी नहीं मिल पायी थी


शाहकार फिल्म मुग़ल-ए-आज़म की अनारकली की खोज निर्देशक के आसिफ के लिए खासा सरदर्द साबित हुई थी। लेकिन इसके अलावा भी के आसिफ को और कई परेशानियों से मुग़ल-ए-आज़म के सेट पर दो-चार होना पड़ा था।


नागरिक न्यूज admin
मनोरंजन Updated On :

के आसिफ ने फिल्म मुग़ल-ए-आज़म की पचास दिन की शूटिंग ख़त्म कर ली थी लेकिन उसके बावजूद भी वो फिल्म में अनारकली के रोल के लिए किसी अभिनेत्री को तय नहीं कर पाए थे। पचास दिन की शूटिंग के दौरान भी उनके जहन में हमेशा यही बात घूमती रहती थी की अनारकली के रोल के लिए वो किसके पास जाए। भले ही फिल्म के केंद्रबिंदु में सलीम और अकबर का द्वन्द था लेकिन उनको पता था की अनारकली का रोल बेहद ही महत्वपूर्ण है और इसके लिए उनको काफी सोच समझ के किसी को फिल्म में लेना पड़ेगा। इस रोल के लिए उन्हे एक ऐसी अभिनेत्री की तलाश थी जिसके अंदर भरपूर टैलेंट हो और के आसिफ इस बात से भली भांति परिचित थे की अगर ये रोल सही अभिनेत्री के पास चला गया तो वो इस किरदार को यादगार बना सकती है।  

अनारकली की खोज की लिए लखनऊ, भोपाल, दिल्ली और हैदराबाद में एक टैलेंट हंट चलाया गया लेकिन इस टैलेंट हंट से के आसिफ को कुछ ख़ास फायदा नहीं हुआ। इसके पहले नरगिस को के आसिफ ने साइन करने की सोची थी लेकिन नरगिस ने इस फिल्म को करने से साफ़ इंकार कर दिया था। और इसके पीछे की वजह थी दिलीप कुमार और नरगिस की दोस्ती में दरार जो फिल्म हलचल की शूटिंग के दौरान हुई थी। नरगिस, दिलीप कुमार से इतनी खफा हो गयी थी की उन्होंने कसम खा ली थी की आगे चल कर वो उनके साथ कभी काम नहीं करेंगी। इसके बाद के आसिफ ने नूतन की ओर रुख किया और इस बाबत ट्रेड मैगज़ीन स्क्रीन में इस बात की घोषणा भी कर दी गयी की नूतन अनारकली का रोल करने वाली है लेकिन शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। नूतन ने भी ये कह कर मन कर दिया की इस रोल के साथ वो न्याय नहीं कर पाएंगी और इसके लिए मधुबाला या नरगिस की कास्टिंग बेहतर रहेगी। 

हालात के आसिफ को यही कह रहे थे की वो मधुबाला को फिल्म के लिए एप्रोच करें, और अंत में जब के आसिफ मधुबाला से मिलने गए तब उनकी बातचीत उनके पिता से हुई। मधुबाला के फिल्म में काम करने को लेकर उनकी पिता की कई शर्तें थी। उनकी मांग थी की मधुबाला देर रात तक शूटिंग नहीं करेंगी, उनसे मिलने कोई भी व्यक्ति सेट पर नहीं आएगा, उनके हाथ में फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट डायलाग के साथ शूटिंग के पहले होनी चाहिए और फिल्म में काम करने का मेहनताना थोडा ज्यादा होगा। ये सारी बातें सुनकर के आसिफ कुछ समय के लिए परेशान हो गए और अंत में जाने की इजाजत मांगी लेकिन इशारों इशारों में मधुबाला ने उनको जाने से रोक लिया और यह बात उन तक पहुंचा दी की उस समय के लिए वो उनके पिता की सारी शर्तें मान ले, आगे चल कर चीज़ो को देख लिया जायेगा। मधुबाला ने के आसिफ को यही कहा था की आप अपनी अनारकली को लेकर निश्चिंत रहे और अब्बा की किसी भी बात पर परेशान ना हो। वो बिना शर्त अपना सहयोग इस फिल्म को देंगी।  

मधुबाला ने जब इस फिल्म के लिये अपनी हामी दी थी तब वो महज २० साल की थी। शूटिंग के दौरान शुरू में उनको इस बात की बेहद परेशानी हुई की अपने रोल को वो किस नज़रिये से एप्रोच करें। शुरू के पांच दिनों तक मधुबाला को के आसिफ ने महज दूर से निगरानी की और बाद में खुद मिलकर बताया की इस रोल के लिए उन्हें थोड़ा बहुत गंभीर होना पड़ेगा और अपनी उच्छृंखल विचारो को कुछ समय के लिये छोड़ना पड़ेगा।  उसके बाद मधुबाला का व्यवहार अपने रोल को लेकर पूरी तरह से बदल चुका था। 

लेकिन अनारकली की भूमिका का चयन के आसिफ के लिए एकमात्र सरदर्द साबित नहीं हुई। इसके अलावा जब फिल्म का बजट बढ़ने लगा था तब फिल्म के निर्माता शापूरजी के बेटे ने अपने पिता को एक वक़्त यह भी कह दिया था की फिल्म के निर्माण से वो अपने हांथ खींच ले। जब शीश महल के सेट के बजट को लेकर सुगबुगाहट शुरु हो गयी तब एक वक़्त के लिए शापूर जी के मन में ये भी ख्याल आया की फिल्म के निर्देश की कमान सोहराब मोदी को सौप दी जाए। सोहराब मोदी फिल्म के सेट पर एक दिन आ भी गए थे और जब उन्होंने पूछा की ‘प्यार किया तो डरना क्या’ गाने की शूटिंग वो कितने दिन में पूरी कर लेंगे तब आसिफ साहब ने उनको बताया की इसकी शूटिंग में उनको तीस दिन लगेंगे। इसके जवाब में सोहराब मोदी ने उनको बोला की इसकी शूटिंग बड़ी ही आसानी से ६ दिन में पूरी की जा सकती है। तब आसिफ साहब ने उनको बताया की वो उनकी बात से सहमत है और इसकी शूटिंग २ दिन में भी पूरी की जा सकती है अगर नानूभाई वकील (नानूभाई वकील उन दिनों अपने बी ग्रेड फिल्मो के लिए जाने जाते थे) को इसके लिए बुलाया गया तो। जब ये तय कर लिया गया की फिल्म की आगे की शूटिंग सोहराब मोदी के मिनर्वा मूवीटोन में होगी तब ये बात सुनकर मधुबाला ने अपने हाथ खड़े कर दिए और इस बात का एलान कर दिया की वो किसी और के निर्देशन में इस फिल्म की शूटिंग नहीं करेंगी। दिलीप कुमार ने भी शापूरजी को इसके लिए मना किया और यहां तक कह डाला की अगर बात पैसे की है तो वो अपना मेहनताना नहीं लेंगे। शापूरजी ने अपना निर्णय तब बदला जब बातों बातों में सोहराब मोदी ने उनको ये बताने को कोशिश की की के आसिफ फिल्म को जानबुझ की इसलिए खींच रहे है क्यूंकि वो अपना पैसा बना रहे है। इस बात को सुनकर शापूरजी आग बबूला हो गए थे क्यूंकि उनको के आसिफ की ईमानदारी पर पूरी तरह से यकीन था।

फिल्म की रिलीज़ के बाद अगर किसी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ तो वो फिल्म के निर्माता शापूरजी ही थे। लेकिन शापूर जी को के आसिफ की की सालो की मेहनत फिल्म में नज़र आयी और इस एवज में उन्होंने उनको एक मर्सीडीज गाडी और मोहन स्टूडियो देने की बात कही। टैक्सी में सफर करने वाले के आसिफ ने इन दोनों चीज़ो को लेने से मन कर दिया। वो इसी बात से खुश थे की मुग़ल-ए-आज़म जैसा उन्होंने सोचा था बिल्कुल उसी तरह से उन्होंने उसको बनाया।