हिंदी साहित्य जगत में मनोहर श्याम जोशी का नाम एक क्द्दावर नाम माना जाता है। मनोहर श्याम जोशी अपने लघु कथा और ट्रवेलाॅग के लिए जाने जाते थे और आगे चल कर उनको अपने नावेल क्याप के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। लेकिन हिंदी साहित्य से ही उनके विशाल टैलेंट को मापा नहीं जा सकता है। पत्रकारिता और लेखन को वो दो कदम आगे ले गये थे जब उन्होनो फिल्मों मे और टीवी मे काम करना शुरु किया। भारतीय टेलीविज़न के पहले सोप ओपेरा को लिखने के सेहरा उनके सर ही जाता है। आइये एक नज़र डालते है उन टीवी सीरियल्स और फिल्मों पर जिनके लेखन में उनका हाथ था।
मंज़िल
1979 में रिलीज़ हुई फिल्म मंज़िल से मनोहर श्याम जोशी ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी। आशीष बर्मन के साथ मिलकर मनोहर श्याम जोशी ने मंज़िल की कहानी लिखी थी। मंज़िल की कहानी अपने आप में निर्देशक बासु चटर्जी के लिए एक बहुत बड़ा जोखिम था क्योंकि इस फिल्म में अमिताभ बच्चन की इमेज उनके एंग्री यंग मैन के इमेज से बिलकुल उलट थी। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म से किसी को उम्मीद नहीं थी और हुआ भी वही, रिलीज के तुरंत बाद ये फिल्म फ्लॉप हो गयी। लेकिन अपने रिलीज़ के 41 साल बाद भी अगर अमिताभ बच्चन की शानदार ऑफ बीट फिल्मों का जब भी जिक्र होता है तो उसमे मंज़िल को भी शुमार किया जाता है।
हम लोग भारतीय टेलीविज़न इतिहास का पहला सोप ओपेरा था और इसकी शानदार कामयाबी ने इससे जुड़े सभी कलाकारों की पहचान हिंदुस्तान के उन सभी घरो में करवा दी थी जहा पर 80 के मध्य में टीवी हुआ करता था। 7 जुलाई 1984 से लेकर 17 दिसंबर 1985 तक चलने वाले हम लोग के कुल जमा 154 एपिसोड्स थे जो मनोहर श्याम जोशी की कलम से निकले थे। हम लोग के बारे में ऐसा कहा जाता है की इसका आईडिया उस वक्त के सूचना और प्रसारण मंत्रालय मंत्री वसंत साठे को तब आया था जब वो 1982 में मेक्सिको गए थे। वेन कमिगो सीरीज देखने के बाद उन्होंने भारत आकर इसकी चर्चा दूरदर्शन के अधिकारियो के साथ की। जब लिखने की बारी आयी तो सबसे पहला नाम आया मनोहर श्याम जोशी का।
बुनियाद
बुनियाद की पृष्ठभूमि भारत पाकिस्तान विभाजन का था और इसको बनाने वाले थे शोले के निर्देशक रमेश सिप्पी। हम लोग की तरह बुनियाद को भी भारत की अावाम ने सर आंखों पर बिठाया। विभाजन की शानदार दास्तान इसके पहले टेलीविज़न पर देखने को नहीं मिली थी। यहां भी मनोहर श्याम जोशी ने सीरियल के लगभग 100 एपिसोड अपनी कलम से निकाले।
कक्का जी कहिन एक भारतीय राजनीतिक व्यंग्य है जो 1988 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। भारतीय टेलीविजन के लिए बनी इस सीरियल के लिए बासु चटर्जी ने एक बार फिर से लेखक मनोहर श्याम जोशी को याद किया। कक्का जी कहिन उन्ही एक पुस्तक नेताजी कहिन पर आधारित है। ओम पुरी और शौल चतुर्वेदी का शानदार अभिनय अभी तक दर्शको के जहां में बसा हुआ है।
हे राम