फिल्म दायरा की असफलता के बाद से ही कमाल अमरोही के दिमाग में पाकीज़ा का आईडिया पनपना शुरू हो गया था। वो एक ऐसी फिल्म मीना कुमारी के साथ बनाना चाहते थे जिसमे उनका अभिनय कौशल पूरी तरह से निखर कर सामने आये और बाकी सभी किरदार हाशिये पर रहे। फिल्म के जो भी डायलाग उन्होंने लिखे वो सभी कुछ उन्होंने मीना कुमारी को जहन में रख कर ही लिखा। जैसे शाहजहां ने मुमताज़ महल के लिए ताज महल बनवाया था कुछ वैसा ही कारनामा कमाल अमरोही अपनी पत्नी के लिए करना चाहते थे।
1960 तक पूरी फिल्म को कागज़ पर लिख लिया गया था। पाकीज़ा बना कर कमाल अमरोही एक तरह से मुग़ल-ए-आज़म के करिश्मे को पार करना चाहते थे। गौरतलब है की के आसिफ की इस शाहकार फिल्म के डायलाग कमाल अमरोही ने ही लिखे थे. दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वंदी थे और स्पर्धा की शुरुआत फिल्म अनारकली के निर्माण के वक़्त शुरू हुआ था। उस समय मीना अपने फिल्मो की शूटिंग में बेहद व्यस्त थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पाकीज़ा के लिए हर महीने कुछ दिन अलग से निकाले। लेकिन कमल अमरोही के परफ़ेक्शनिज़्म की वजह से सेट पर ही बहुत ज्यादा समय चीज़ो को ठीक करने में लग जाता था और शुटिंग के लिये कम समय मिल पाता था। पाकीज़ा पूरी तरह से मीना कुमारी और कमाल अमरोही के बीच के रिश्ते पर निर्भर थी और ये फिल्म के लिये बेहद जरुरी था की उन दोनों के बीच के रिश्ते फिल्म के निर्माण के दौरान अच्छे रहे।
ये बड़ा ही अजीबोगरीब इत्तेफ़ाक़ था की फिल्म की शूटिंग उस वक़्त शुरू हुई जब दोनों के रिश्ते आखिरी सांस ले रहे थे। मीना को पता था की कमाल अमरोही के लिए ये बहुत बड़ा जुआ था क्योंकि तब तक उन्होंने सभी को कह दिया था की मीना कुमारी ही पाकीज़ा है। जब कमाल अमरोही को इस बात की भनक मिल गयी थी की मीणा कुमारी उनकी छोड़ सकती है और उसका असर पाकीज़ा के काम पर हो सकता है तब उन्होंने मीना कुमारी को एक प्रस्ताव दिया और कहा की उनको पता है की वो उनसे खुश नहीं है और उनको जल्द छोड़ना चाहती है। वो उनकी इस हसरत को पुरी करने में उनकी मदद करेंगे और साथ ही साथ एक घर भी उनको देंगे लेकिन बदले में उनको ये वादा करना पड़ेगा की वो पाकीज़ा पूरा करेंगी।
लेकिन जब आखिरकार तंग आकर मीना कुमारी ने कमाल को छोड दिया तब तक दोनों के रिश्तो में इतनी ज्यादा खटास आ चुकी थी की फिल्म की शूटिंग कुछ दिनों के बाद रुक गयी। एक वक्त ऐसा भी आया जब कमाल अमरोही ने फिल्म को बंद करने की भी बात सोची। उनका यही मानना था की वो ये फिल्म अपनी पत्नी के सम्मान में बना रहे थे और जब वही उनके साथ नहीं है तो पूरी फिल्म का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाता है। हौसला जुटाने में कमाल अमरोही को एक साल लग गए और 1964 में उन्होंने फिल्म की शूटिंग दोबारा शुरू की लेकिन फिर भी उनकी परेशानी बदस्तूर बनी रही. मीना कुमारी ने उसके बाद भी फिल्म की शुटिंग मे शिरकत नही की। 1968 में थक हार कर उन्होंने मीना कुमारी को एक चिट्ठी लिखी जिसमे उन्होंने अपना पत्नी को ये बताया की वो शादी के रिश्ते से उनको आज़ाद कर देंगे लेकिन उनको पाकीज़ा पूरी करनी पड़ेगी। उन्होंने अपने चिट्ठी में ये भी लिखा की उनकी पत्नी के पास बॉक्स ऑफिस की शक्ति है और वो इस मकाम पर है कि हर चीज़ कर सकती है, लेकिन पाकीज़ा को उनकी जरुरत है। पाकीज़ा एक डूबती हुई नाव है जो मीना कुमारी के बिना किनारे तक नहीं पहुंच सकती है।
लेकिन जब फिल्म की शूटिंग 1969 में शुरू हुई तब तक मीना कुमारी और अशोक कुमार दोनों का ही फ़िल्मी करियर अब उतने उफान पर नहीं था. मीना कुमारी की तबियत भी दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी तब ऐसे मौके पर नरगिस और सुनील दत्त ने मीना कुमारी को फिल्म की शूटिंग शुरू करने की गुजारिश की। मीना कुमारी जिस दिन सेट पर आयी तब तक उनको अपने पति की छोड़े पांच साल हो चुके थे। मीना कुमारी के स्वागत मे उस दिन सेट पर एक शानदार जलसे का आयोजन किया गया और यूनिट के लोगो मे मिठाई बांटी गई। कमाल अमरोही ने उस दिन को अलग से अपने कैमरे में क़ैद किया था।