संस्कार,नैतिकता और टीवी धारावाहिक


सभ्यता के प्रारम्भ से ही
मनुष्य को श्रेष्ठ बनाने वाले गुणों की पहचान की गई है। उन्हीं सद्गुणों को धर्म
का लक्षण बताया गया है। धर्म के दस लक्षणों में ब्रह्मचर्य का स्थान सबसे ऊपर है।
हमारी सभ्यता की पूरी यात्रा यह मान कर चलती है कि धन और मन की चाह की कोई सीमा
नहीं है।



आज युवा वर्ग यौन संबंधी जागरूकता से वंचित है। यह चिंतन गलत धारणाओं पर आधारित है क्योंकि उसे सुबह से शाम तक टेलीविजन, अखबारों, विज्ञापनों एवमं धारावाहिकों पर सेक्स ही परोसे जाते है। पूरा वातावरण सेक्स से व्याप्त है और यही कारण है कि छोटे-छोटे बच्चों में भी सेक्स की कामना जाग्रत हो रही है। कम उम्र के बच्चों द्वारा बलात्कार की घटनाएं अखबारों में प्रकाशित होना आम बात हो गई है। मनुष्य अनुकरणशील प्राणी है। छोटी उम्र में अनुकरण की प्रवृत्ति और ज्यादा होती है इसलिए इस उम्र में यौन संबंधी जानकारी से अधिक संस्कारों का योगदान होता है। संस्कार बच्चों को घर, विद्यालय और समाज से प्राप्त होती है। 

सभ्यता के प्रारम्भ से ही मनुष्य को श्रेष्ठ बनाने वाले गुणों की पहचान की गई है। उन्हीं सद्गुणों को धर्म का लक्षण बताया गया है। धर्म के दस लक्षणों में ब्रह्मचर्य का स्थान सबसे ऊपर है। हमारी सभ्यता की पूरी यात्रा यह मान कर चलती है कि धन और मन की चाह की कोई सीमा नहीं है। अर्थ और काम के इसी असीमित कामना को धर्म और नैतिकता संयमित करता है। ‘आहार, निद्रा, भय, मैथुन,’मनुष्य और पशुओं में समान रूप से मौजूद है। धर्म का अंकुश ही इसे संतुलित करके मनुष्य को पशुओं से अलग करता है। 

मानव सभ्यता में जितने महापुरुष हुए है, वैचारिक मतभेद भले हो संस्कार और नैतिकता के सब हिमायती थे। अर्थ और काम की चाहत मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है आधुनिक सभ्यता मनुष्य की इस प्रवृत्ति को उत्तेजित करने का काम कर रही है। परिणाम सामने है, इसे उत्तेजित न करके संयमित करने का प्रयास करना चाहिए। 

आज की पूरी मानवता सेक्स को ही जीवन का केन्द्र बनाने की कोशिश कर रहा है। पश्चिमी देशों की नकल पर हमारे देश में भी सेक्स एजूकेशन दी जा रही है। अमेरिका और ब्रिटेन के सर्वेक्षणों ने यह सिद्ध कर दिया है कि युवाओं को यौन शिक्षा देने के बावजूद भी वांछित परिणाम नहीं आएं है। यौन शिक्षा के द्वारा दी जाने वाली जानकारियां बच्चों को संयम नहीं सिखाएंगी। इस समस्या का समाधान यदि हम चाहते है, तो जानकारी से ज्यादा संस्कार की जरूरत है। 

आज मीडिया, फिल्म, धारावाहिको में शराब,विवाहेत्तर संबंधों को केन्द्र में रखकर बनाए गए कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई है। आंतरिक गुणों के बजाए शारीरिक सौन्दर्य को ही विज्ञापनों के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा है। गंदे और सस्ती फिल्मों ने रही सही कसर पूरी कर दी,फलस्वरूप आज की पीढ़ी बलात्कार और यौन उत्पीड़न को सहज प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करने लगेगी।

जब तक नैतिक शिक्षा और सामाजिक वातावरण दोनों पर समान रूप से ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक ऐसा होता रहेगा। दुर्भाग्य से यौन संबंधी विकृतियों और भ्रांतियों को दूर करने के जितने कार्यक्रम है वे सब यौन उत्तेजना को और बढ़ा रहे है। एड्स रोकथाम के विज्ञापन, बर्थकंट्रोल, सुरक्षित यौन संबंधों के विज्ञापनों से सेक्स और बढ़ा है। सुरक्षित यौन संबंधों से अमेरिका जैसे देशों में विवाह संस्था टूट कर बिखरने के कगार पर है, क्योंकि लोगों को लगा कि विवाह के बिना भी हम साथ रह सकते है और बच्चों की जिम्मेंदारी से बच सकते है। 

आज शारीरिक संबंध ही सेक्स माना जा रहा है।शारीरिक सौन्दर्य धन और यौन क्रिया को जीवन मान लिया गया है। विश्व के तमाम सांस्कृतिक प्रवाहों में नारी पुरुष संबंधों के बारे में हजारों साल पहले जो निष्कर्ष निकाले हैं उनको जब हम आधुनिक विज्ञान के आलोक में समझने का प्रयास करे,तभी हम समाज में फैल रही यौन उच्श्रृंखलता को संयमित कर सकेगें।