अमिताभ, रेखा, संजीव कुमार और शशि कुमार स्टारर ये फिल्म ७० के दशक में बॉक्स ऑफिस पर हफ्ते भर भी नहीं चल पायी थी


जरा सोचिये सलीम-जावेद की कलम से निकली शोले के तुरंत बाद एक ऐसी कहानी जिसके ऊपर बनी फिल्म में अमिताभ बच्चन, रेखा, संजीव कुमार, शशि कपूर जैसे सितारे शामिल हो। अगर ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर रिलीज़ होती है तो उसको लेकर लोगो की उम्मीदें कितनी ज्यादा होंगी इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। लेकिन फिल्म ईमान धरम हिंदी फिल्म इतिहास में उन फिल्मो की श्रेणी में शामिल है जिसे देखने गिने चुने लोग ही गए थे।


नागरिक न्यूज admin
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सलीम-जावेद के करियर में शायद ईमान धरम उनकी सबसे बहुप्रतीक्षित फिल्म रही है और उसके पीछे की वजह यही है की उनकी पिछली फिल्म शोले थी। कुछ यही हाल अमिताभ बच्चन का भी था। साल १९७६ में अदालत, कभी कभी और हेरा फेरी के रूप में उन्होंने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई थी। संजीव कुमार, रेखा और संजीव कुमार उस दौर के चोटी के सितारे थे। लेकिन देश मुखर्जी निर्देशित ईमान धरम जब बॉक्स ऑफिस पर रिलीज़ हुई तब ये बाॅक्स आॅफिस औधे मुँह गिर गई थी।  

फिल्म की कहानी दो पेशेवर गवाहो के बारे में है जिसकी भूमिका में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर थे। पैसे कमाने के लिए ये दोनों अदालत में अक्सर झूठी गवाही देते है। उनकी बस्ती में श्यामली (फिल्म में श्यामली का किरदार अपर्णा सेन ने निभाया था) नाम की अंधी औरत रहती है जिसे ये बहन सामान प्यार करते है। श्यामली को संजीव कुमार से प्रेम हो जाता है जो एक बिज़नेस टाइकून के बेटे है। संजीव कुमार के अपने ही उसूल है लिहाजा हर मोड़ पर उनका अपने पिता के साथ टकराव होता है। एक घटना में संजीव कुमार के पिता की मौत उनके पार्टनर के हाथों हो जाती है और इसका ठीकरा संजीव कुमार के सर पर फोड़ा जाता है। अमिताभ और शशि कपूर की झूटी गवाही की वजह से अदालत संजीव कुमार को मौत की सज़ा सुनती है लेकिन जब असली बात की जानकारी अमिताभ और शशि कपूर को होती है तब ये असली अपराधी को पकड़ने में जुट जाते है। 

इस फिल्म से निर्देशक देश मुखर्जी ने अपने निर्देशन की पारी की शुरुआत की थी। देश इसके पहले यश चोपड़ा और मनोज कुमार की फिल्मों का आर्ट डायरेक्शन संभालते थे। दीवार में उन्होंने इतना सधा हुआ काम किया था की जिसके लिए उनको सत्यजीत रे से शाबाशी मिली थी। अपनी पिछली फिल्म मजबूर की कामयाबी के बाद निर्माता प्रेमजी कुछ और बड़ा करना चाहते थे और शोले की मेगा स्टारकास्ट से प्रेरित होकर उन्होंने ईमान धरम बनाने की सोची। ७० का दशक में सलीम-जावेद इतना बड़ा नाम हुआ करता था की जब फिल्म का पहला प्रमोशन ट्रेड मैगज़ीन में छपा तब फिल्म के टाइटल के अलावा किसी और का नाम प्रमोशन में था तो वो सलीम-जावेद ही थे। 

लेकिन जब फिल्म रिलीज़ हुई तब इसमें सलीम जावेद वाली बात नहीं थी। हिंदुस्तान के विभिन्न धर्मो के इतने ज्यादा प्रतीक इस फिल्म में डाले गए थे की एक समय के बाद लोग इसे पचा नहीं पाये। ज़रा गौर फरमाइए – अमिताभ बच्चन अगर एक मुस्लिम किरदार में थे तो वही दूसरी तरफ शशि कपूर का किरदार एक हिन्दू का था। उत्पल दत्त एक रिटायर्ड सैनिक की भूमिका में सिख बने थे। धर्म निरपेक्षता के अंश को फिल्म में दिखाने के लिए संजीव कुमार के किरदार का नाम फिल्म में कबीर रखा गया था जो कभी कभी ईसाई धर्म की बातें करता है। सिंबालिज्म इतना ज्यादा की फिल्म के क्लाइमेक्स में जिस तरह से संजीव कुमार को विलेन के अड्डे पर बंधे दिखाया गया है वो निश्चित तौर पर आपको प्रभु येशु और क्रॉस की याद दिलायेगा। इन सभी के अलावा फिल्म में कहानियों के इतने ज्यादा ट्रैक थे की वो कभी एक दूसरे से मिल नहीं पाए। 

ईमान धरम १९७७ के जनवरी के महीने में रिलीज़ हुई थी और अपने स्टारकास्ट और सलीम-जावेद की जोड़ी की वजह से सुर्खियों में बनी रही। कुछ दिनों तक इसके शोज हाउसफुल भी रहे लेकिन अचानक इसका भूत सभी के सर से उतर गया और फिल्म औंधे मुंह बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हो गयी। उस ज़माने की जबरदस्त जोड़ी रेखा और अमिताभ को फिल्म में एक दूसरे के अपोजिट नही रखा गया था।अभिनेत्री हेलेन को अमिताभ बच्चन के अपोजिट रोल में रखा गया था। वैसे हेलेन के पहले इस फिल्म के लिए परवीन बॉबी के नाम पर विचार किया जा रहा था लेकिन जब उनको ये पता चला की उनका किरदार एक छोटी बच्ची की माँ है तब उन्होंने फिल्म से अपने को अलग कर लिया था। 

फिल्म के फ्लॉप होने के बाद जब सलीम-जावेद से पूछा गया की उन्होंने इतनी घटिया कहानी कैसे लिख दी तब उनका यही जवाब था की उनकी हर स्क्रिप्ट में नमक होता है लेकिन इस बार उन्होंने पुरा खाना बिना नमक के बना दिया। संजीव कुमार को भी जब कहानी कहानी सुनाई गयी थी तब वो कबीर के किरदार से संतुष्ट नहीं थे। इस बात को लेकर वो उलझन में थे की कबीर के जीवन में हर तरफ गीता, क़ुरान और बाइबिल हावी रहता है। लेकिन जब सलीम जावेद ने उनको ये बताया की दर्शक इस तरह के किरदार को बेहद पसंद करता है तब उन्होंने उनकी बात मान ली थी। 

जब इस फिल्म का लांच हुआ था तब निर्माता टीटो-टोनी ने देश मुखर्जी को अपनी अगली फिल्म के लिए साइन करने की सोची और साइनिंग अमाउंट के तौर पर उनको एक कार तोहफे के रुप मे दिया। लेकिन फिल्म की रिलीज़ के बाद उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। दोनों ने चालाकी से देश मुखर्जी को अपने फांसे में लिया और जब टीटो उनसे बात कर रहे थे तब चुपके से टोनी देश मुखर्जी को दी हुई कार को लेकर चंपत हो गये।  

  इस फिल्म के बारे में एक और कहानी मशहूर है। निर्देशक मनमोहन देसाई, सलीम-जावेद की जोड़ी को कुछ ख़ास पसंद नहीं करते थे और ईमान धरम के फ्लॉप होने के बाद ये दूरी और भी बढ़ गई थी।  ईमान धरम की कहानी को बेचने के लिए सलीम-जावेद सबसे पहले मनमोहन देसाई के पास गए थे और उसके बाद देसाई ने निर्माता ए जी नाडियादवाला को अनुरोध किया की वो कहानी खरीद ले। इसके बदले में सलीम जावेद को नाडियादवाला की ओर से एक मोटी रकम मिली थी। लेकिन उसके तुरंत बाद उनको निर्माता प्रेमजी की ओर से कहानी खरीदने के लिए एक और बड़ी रकम का ऑफर मिला। सलीम-जावेद, मनमोहन देसाई से एक बार फिर मिले और बताया की उनकी लिखी हुई स्क्रिप्ट में कुछ खामियां है और उसको वो ठीक नहीं कर पाएंगे। उन्होंने आग्रह किया की वो नाडियादवाला को उसके ऊपर फिल्म बनाने की बात का आईडिया ड्राप करने का सुझाव दे दे। लेकिन इसके तुरंत बाद सलीम-जावेद ने देश मुखर्जी के साथ मिलकर अपनी कहानी को फिल्म के रुप मे उसकी पुरी रूपरेखा तैयार कर दी। जब मनमोहन देसाई को इस बात की जानकारी हुई तब उन्होंने निश्चय किया की वो उसी आईडिया के उपर एक फिल्म बनाएंगे जिसमे सभी धर्मो की बात कही जाएगी। आगे चल कर वो फिल्म अमर अकबर एन्थोनी के नाम से बाॅक्स आॅफिस पर रिलीज हुई। बहरहाल ईमान धरम का नाम फ़िल्मी इतिहास में अपनी बुरी स्क्रिप्ट के लिए हमेशा दर्ज़ हो चुका है।