जनपथ नहीं फैशन पथ


न्यू देल्ही म्यूनिसिपल
कार्पोरेशन के तहत पहले 1-18 और 44-96
नंबर की दुकाने बनाई गई। 18 और 44 बीच
में पहले से ओल्ड मार्केट मौजूद थी । बाद में 55 और दुकाने बनाई गई। इससे भी जब कमी को नहीं पूरा किया
जा सका तो व्यापारियों के मांग पर तहबजारी के तहत उतने ही दुकानों को और परमीशन
दिया गया।



जनपथ नहीं यह
फैशन पथ है। दिल्ली ही नहीं पूरे भारत का फैशन यहां से तय होता है। देश के किसी
कोने में शुरू हुआ हस्तशिल्प का काम यही के मार्केट से पहचान पाता है। जीन्स,
शर्ट, और वह सबकुछ जो आप खरीदना चाहते है। इस मार्केट में बाहर से ही आपको दिखई देने
लगेगा। हस्तशिल्प की ऐसी कलाकृतियां की देखने वाला अंदाजा ही नहीं लगा पाए कि इतनी
महंगी और सड़क पर इस तरह से रख कर बेचा जा रहा है। जनपथ के सारे व्यवसायी अपने यहां
आने वाले हर ग्राहक को संतुष्ट कर देते है। सस्ता,टिकाऊ और फैशनेबुल कपड़े, वैग,बेल्ट, ज्वैलरी और हर सामान, क्या लेगे आप! जनपथ पर सब
उपलब्ध है। जनपथ मार्केट कनाट प्लेस, सिंधिया हाउस से शुरू होकर तिब्बती मार्केट तक
जाती है। आजादी के बाद से लेकर आज तक जनपथ मार्केट का रूतबा कायम है।

जनपथ सड़क कनाट
प्लेस से लोदी गार्डेन को जोड़ती है। इस सड़क के दो मशहूर जगह है। 10 जनपथ और जनपथ मार्केट। फिलहाल हम जनपथ मार्केट
की बात कर रहे है। फैशन के अनुसार,फैशन के साथ और
नए फैशन को आगे बढ़ाते हुए यह मार्केट चलता है। दिल्ली का फैशन जनपथ मार्केट तय
करता है। यहां पर सिर्फ स्थानीय भीड़ ही नहीं विदेशी पर्यटकों की संख्या भी कम नहीं
होती है। विदेशी जहां भड़कीले और चटक रंग के समानों को पसंद करते है। वही अपने यहां
के लोग हल्के रंग के हस्तशिल्प को पसंद करते है। हस्तशिल्प के व्यवसायी संजीव भसीन
का कहना है कि सिर्फ दिल्ली का बाजार का कहना जनपथ के साथ किसी अन्याय से कम नहीं
है।

यहां से पूरे
भारत के साथ-साथ विदेशों से भी व्यापार होता है। जनपथ का विश्व के हस्तशिल्प बाजार
में अच्छा योगदान है। न्यू देलही म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के तहत पहले 1-18 और 44-96 नंबर की दुकाने बनाई गई। 18 और 44 बीच में पहले से
ओल्ड मार्केट मौजूद थी । बाद में 55 और दुकाने बनाई गई। इससे भी जब कमी को नहीं पूरा किया जा सका तो व्यापारियों
के मांग पर तहबजारी के तहत उतने ही दुकानों को और परमीशन दिया गया। शाम के चार बजे
से रात के नौ दस बजे तक मार्केट अपने सबाब पर रहता है। भीड़ के हर व्यक्ति के
मनपसंद का समान मौजूद रहता है। बशर्ते आप की खोजी निगाह वहां तक पहुंच पाए। बुटीक
चलाने वाले जितेंद्र कहते है कि जनपथ के पास चार होटल,मैट्रों और कनाट प्लेस होने के कारण सारी भीड़ यहां खिची चली
आती है। ली मेरेडियन, जनपथ,पार्क और संगरीला होटल जनपथ के मार्केट को और महत्वपूर्ण बना देते हैं।
मेट्रों के आ जाने के कारण दूर से भी लोग चले आते है।

ऐसा नहीं है कि
इस बाजार में सब कुछ अच्छा ही है। यदि आप वारगेनिंग नहीं करना जानते तो होशियार!
आप जो कपड़े ,वैग और सामान
लेकर आ रहे हैं संभव है कि कीमत से ज्यादा पैसा अदा कर दिए हो। वारगेनिंग इस
मार्केट की मुख्य समस्या है। पर जितेंद्र इसके लिए फेरी वालों को जिम्मेंदार मानते
है। फेरीवालों ने चार गुना दाम बता कर मार्केट की साख को नुकसान पहुंचाया है। इसके
साथ होटल के गाइड और ड्राइबर विदेशी पर्यटकों को मार्केट के बारे में गलत धारणा
बना कर काफी समस्या पैदा की  है। जितेंद्र
का कहना है कि कालेज गोइंग लड़कियां जब दुकान में आती है तो सबसे ज्यादा परेशानी
भरा समय होता है। क्योंकि एक साथ कई लड़कियां आती है। कपड़े य समान सिर्फ एक को लेना
होता हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक घंटे के झकझक के बाद बिना कुछ लिएं वे सब
चली जाती है। लड़कियां खरीदारी कम मनोरंजन करने ज्यादा आती है। फिलहाल धंधा है सब
सहना पड़ता है।

जनपथ के बारे में
एक आम धारणा यह भी है कि यहां पर पुराने कपड़े मिलते है। दुकानदारों ने इसे कोरी
बकवास कहा। रेडीमेड गारमेंट्स के लिए छोटे शहरों के व्यापारी यहां से थोक ले जाते
है। मुख्यतः स्पोर्ट क्वालिटी और ब्राडेंड कंपनियों के रिजेक्ट माल इस मार्केट से
ज्यादा खरीदे जाते है। दूर से आने वाले खरीददारों के लिए पार्किंग भी एक समस्या के
रूप में आती है। लेकिन मनपसंद वस्त्र, लेदर वैग,हस्तशिल्प,
जूते, चप्पल के साथ-साथ कोई भी फैशनेबुल समान यहां पर उपलब्ध है। यहां के इत्र की
ख्याति बाहर तक प्रसिद्ध है। खास कर मिट्टी की सोंधी खुसबू वाली इत्र। जैन सुपर
स्टोर्स के आस-पास इत्र की कई दुकाने हैं। जो बाहर तक कारोबार करती हैं। विदेश से
आया कोई भी पर्यटक पहले मिट्टी का इत्र खोजता है। नकली आभूषण के व्यवसायी प्रेम का
कहना है कि साहब आज के महंगाई में कौन सोना चांदी पहन रहा है। हमारे आभूषण किस
सोना चादी से कम है। सारे वर्ग,सारे उम्र और हर
पसंद के ज्वैलरी यहां है। सड़क ठीक किनारे किताबों की एक दुकान भी है। वी एस वायपाल
से लेकर हिंदी अंग्रेजी की चर्चित किताबे आप को यहा मिल जाएगी। रेस्टोरेंट भी है।
खरीदारी के बाद आप बर्गर,चाउमिन,इडली, डोसा और पानी पूड़ी का स्वाद भी ले सकते है।

फुटकर के साथ इन
दुकानों का बाहर सप्लाई होने वाले समान से ज्यादा फायदा होता है। अमेरिका और
ब्रिटेन को सप्लाई ज्यादा होती है। रमा विहार में रहने वाले नितिन जो दिल्ली
विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई कर रहे है, कहते है कि इतनी दूर आने का मकसद सिर्फ सस्ता ही नहीं बल्कि वरायटी भी है।
कृतिम आभूषण के दुकान पर खड़ी मानसी का कहना है कि “कोई बात है जो
मुझे ही नहीं सब को जनपथ आकर्षित करती है। कभी- कभी में घर से अकेले चलती हूं यहां
पर आकर दोस्तों की पूरी फौज मिल जाती है।” फिलहाल जनपथ अभी
तक सबका मार्केट बना हुआ है। इसके वर्चस्व को तोड़ने का दुस्साहस किसी में नहीं
है।