जब अनुपम खेर को इब्राहिम अल्काज़ी से जिंदगी की सीख मिली


इब्राहिम अल्काज़ी की शख्शियत कितनी विशाल थी इस बात की तस्दीक वो सभी कलाकार करेंगे जिन्होंने उनकी संगत में अभिनय की बारीकियां सीखी थी। नसीरुद्दीन शाह, ओम पूरी, सुरेखा सीकरी, उत्तरा बावकर, मनोहर सिंह जैसे रंगमंच के दिग्गजों को अभिनय का पाठ पढ़ाने वाले अल्काज़ी साहब ही थे। अनुपम खेर ने अपनी किताब में उनकी शख्शियत को बड़े ही शानदार तरीके से बयान किया है।


नागरिक न्यूज admin
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अनुपम खेर ने अपनी किताब लेसंस लाइफ टाट् मी अननोइंगली में अपने जिंदगी के कई किस्सों को बयां किया है। अनुपम खेर ने भी अभिनय की बारीकियां दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अल्काज़ी साहब के सानिध्य में सीखी थी। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है की अभिनय का स्कूल वो भी मुंबई में चलाते है और वो काफी सफल भी है, लेकिन इसका ये मतलब कत्तई नहीं है की उनका भी ओहदा अल्काज़ी साहब के बराबर है। अल्काज़ी जैसे दिग्गज जिंदगी में सिर्फ एक बार आते है और उनको इस बात का बेहद गुमान है की अभिनय के गुर उन्होंने अल्काज़ी साहब से सीखे है।  

अनुपम खेर ने अपनी इस किताब में एक किस्से का भी वर्णन किया है जिसके मुख्य किरदार अल्काज़ी साहब थे। बात उन दिनों की है जब अनुपम एनएसडी में अपनी पढाई कर रहे थे और नॉर्वे के रंगमंचकार हेनरी इब्सेन के एक फाइव एक्ट प्ले के प्रोजेक्ट को पुरा करना था। अल्काज़ी साहब ने पुरे क्लास को इस बात की चेतावनी दे दी थी की अगर उन्होंने अपना ये प्रोजेक्ट अगले दिन २ बजे तक उनको नहीं दिया तो उनको स्कूल छोड़ना पड़ेगा।

अनुपम को इस बात का पूरा भरोसा था की वो प्रोजेक्ट समय पर पुरा नहीं कर पाएंगे लिहाजा उन्होंने अपने साथियों को अलविदा कहना शुरू कर दिया। लेकिन उनके दोस्त सतीश कौशिक (निर्देशक और अभिनेता) ने उनको आगाह किया की वो क्लास में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाए और खुद इस बात को अल्काज़ी साहब को बताये क्योंकि अब तक वही उनके गुरु रहे है। अनुपम खेर ने सतीश कौशिक की बात मान ली और अगले दिन क्लास में अपनी हाज़िरी दे दी। 

क्लास में अल्काज़ी साहब ने एक नया तरीका अपनाया और सभी छात्रों का नाम लेकर व्यक्तिगत रूप से उनसे पूछना शुरु किया की उन्होंने प्रोजेक्ट पूरा किया या नहीं। अनंग देसाई, कविता चौधरी, सतीश कौशिक सभी ने बताया की उन्होंने प्रोजेक्ट पूरा कर लिया है लेकिन जब अनुपम खेर की बारी आयी तब उन्होंने कहा की आई विल डु सर। अल्काज़ी साहब ने उस वक्त कुछ नहीं बोला और क्साल खत्म होने का बाद उस रात उन्होंने सतीश कौशिक की मदद से अपना प्रोजेक्ट पूरा किया और अगले दिन अल्काज़ी को दे दिया।

इस किस्से के कई सालों के बाद अनुपम खेर जब फिल्म जगत में एक स्थापित कलाकार बन चुके थे तब उनको पहलगाम में शूटिंग पर जाने का मौका मिला। वहां पहुंच कर उनको इस बात की जानकारी हुई की अल्काज़ी साहब भी वही पर अपनी छुट्टियां मना रहे थे।  अपने गुरु से मिलने के लिये वो बेहद आतुर हुए और जब अनुपम उनसे मिले तब उन्होंने बताया की वो अनुपम की सफलता से बेहद खुश है और सारांश फिल्म में उनका काम उनको बेहद पसंद आया था। वही पर अल्काज़ी साहब ने अपने पुराने शिष्य को अगले दिन साथ में बियर पीने का न्योता भी दे दिया। शाम को जब अनुपम उनके होटल पर पहुंचे तब उन्होनें उनको बताया की काफी दिनों से वो उनसे बात करना चाहते थे। उन्होंने अल्काज़ी साहब को याद दिलाया उस प्रोजेक्ट के बारे में और लगे हाथ पुछ लिया की जब उन्होंने डेडलाइन पर अपना प्रोजेक्ट सबमिट नहीं किया तब उन्होने उस वक़्त उनको क्यों कुछ नहीं बोला था।  

तब अलकाज़ी साहब ने उनको बताया की वो वाक्या उनको अच्छी तरह से याद है और उन्होंने आई विल डु इट सर बोला था। अल्काज़ी साहब ने आगे उनको ये भी कहा की क्या उनको इस बात का शक था की वो इस बात को नोटिस नहीं करेंगे। लेकिन इसके बांद अल्काज़ी ने उनको वो बात बताई जिसको सुनकर अनुपम खेर की आंखे भर आई। उन्होनें उनसे आगे यही कहा की अगर वो उस दिन उनके प्रोजेक्ट ना कर पाने की सजा दे देते तो शायद वो आज उनके साथ बैठकर बियर पीने का लुत्फ नहीं उठा पाते। अल्काज़ी साहाब के इन शब्दो मे बेहद गहराई थी।