
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जारी मराठी-हिंदी विवाद में बड़ बयान दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि त्रिभाषा सूत्र को लेकर अंतिम निर्णय सभी संबंधित पक्षों से चर्चा के बाद ही लिया जाएगा।
सोमवार (23 जून) रात मुख्यमंत्री निवास ‘वर्षा’ पर आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में यह बात सामने आई। बैठक में उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, शालेय शिक्षण मंत्री दादा भुसे, राज्य मंत्री डॉ। पंकज भोयर और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए।
बैठक में इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की गई। इसमें यह निर्णय लिया गया कि विभिन्न राज्यों की स्थिति को सबके समक्ष रखा जाए, नई शैक्षणिक नीति के तहत मराठी छात्रों को अकॅडेमिक बैंक ऑफ क्रेडिट के संदर्भ में कोई नुकसान न हो, इस पर विचार किया जाए और सभी संभावित विकल्पों को सामने लाया जाए।
मुख्यमंत्री ने बैठक में यह भी स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर मराठी भाषा के विशेषज्ञों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों और राजनेताओं से व्यापक स्तर पर संवाद किया जाएगा। इसके लिए एक समग्र प्रस्तुति तैयार की जाएगी, जिससे सभी पक्षों को नीति का वास्तविक स्वरूप समझाया जा सके। अंतिम निर्णय इस परामर्श प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद ही लिया जाएगा। शालेय शिक्षण मंत्री दादा भुसे इस संवाद प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत करेंगे।
बैठक में मुख्यमंत्री के सचिव श्रीकर परदेशी, उपमुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव असीमकुमार गुप्ता, प्रधान सचिव नवीन सोना, शालेय शिक्षण विभाग के प्रमुख रणजितसिंह देओल, शिक्षण आयुक्त सचिंद्र प्रतापसिंह और शैक्षणिक संशोधन परिषद के निदेशक राहुल रेखावार भी उपस्थित थे।
बता दें कि राज्य के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार ने भाषा विवाद पर अपना रुख स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में केवल मराठी भाषा को अनिवार्य किया गया है, हिंदी को नहीं। उन्होंने कहा कि स्कूलों में तीसरी भाषा को लेकर उठे विवाद ‘‘अनुचित और अतार्किक’’ हैं। शेलार ने बताया कि पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया गया है और पांचवीं से आठवीं तक इसे वैकल्पिक रखा गया है।