
महाराष्ट्र में न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक के 122 करोड़ रुपये के घोटाले में चल रही जांच में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने कई अहम खुलासे किए हैं। जांच के दौरान पता चला है कि झारखंड से गिरफ्तार आरोपी राजीव रंजन पांडेय ने फर्जी नाम का इस्तेमाल कर मुख्य आरोपी हितेश मेहता से 15 करोड़ रुपये उधार लिए थे। पांडेय ने इस धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए धारावी के निवासी और मेहता के यहां काम करने वाले समीर शेख का सहारा लिया।
ईओडब्ल्यू के मुताबिक, समीर शेख ने मेहता को पांडेय का नाम ‘पवन गुप्ता’ बताया और यही नाम इस्तेमाल कर पांडेय ने 15 करोड़ रुपये मेहता से लिए थे। समीर शेख ने मेहता से पैसे लेते समय बताया कि पवन गुप्ता उसी ट्रस्ट का मालिक है, जिसमें 15 करोड़ रुपये डाले जाएंगे और इसका सर्टिफिकेट भी वही जारी करेगा।
इस दौरान, समीर शेख ने मेहता से पैसे लेने के बाद पांडेय को फोन किया और उसे जानकारी दी। पांडेय ने शेख को घर लौटने का निर्देश दिया। ईओडब्ल्यू ने समीर शेख का बयान दर्ज किया, जिसमें उसने सभी घटनाओं की पुष्टि की है।
जांच में यह भी पता चला कि मेहता से 15 करोड़ रुपये सांताक्रुज इलाके में किराए पर लिए गए एक दफ्तर में लिए गए थे। यह दफ्तर पांडेय के एक गुर्गे ने तीन महीने के लिए किराए पर लिया था और हर महीने 25,000 रुपये किराया चुका रहा था।
सूत्रों के अनुसार, मेहता और पांडेय के बीच यह डील एक बाबा के माध्यम से हुई थी, जो मेहता के घर में पूजा पाठ का काम करता था। बाबा ने मेहता से कहा कि उसके पास 15 करोड़ रुपये हैं, जिन्हें वह सफेद करना चाहता है और इसके बाद बाबा ने पांडेय के गुर्गों से मेहता को मिलवाया।
सांताक्रुज ऑफिस में हुई बैठकों के दौरान मेहता और पांडेय के बीच डील पक्की हुई। बातचीत के दौरान पांडेय ने अपना नाम पवन गुप्ता बताया। ईओडब्ल्यू के अनुसार, इससे पहले बाबा ने मेहता को सातारा में स्थित एक अन्य पार्टी से पुणे में मिलने का समय दिया था, लेकिन बात न बन पाने के कारण वह डील पूरी नहीं हो पाई थी।