जलवायु परिवर्तन से दक्षिण भारत में बदल सकता के वर्षा का स्वरूप, बढ़ सकती हैं बाढ़: REPORT

इसके तहत 27 अत्याधुनिक जलवायु मॉडल का अध्ययन किया गया और भविष्य के उस परिदृश्य को लेकर उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी की प्रतिक्रिया को मापा गया, जिसमें मौजूदा सदी के अंत तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है।

नई दिल्ली। भविष्य में जलवायु परिवर्तन से उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी (पृथ्वी की भूमध्य रेखा के पास भारी वर्षा की एक संकीर्ण पट्टी) के असमान स्थानांतरण से भारत के कई हिस्सों में बाढ़ आने का सिलसिला बढ़ने की आशंका है।

पत्रिका ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ में प्रकाशित एक अध्ययन में इस बात को लेकर सचेत किया गया है।

इसके तहत 27 अत्याधुनिक जलवायु मॉडल का अध्ययन किया गया और भविष्य के उस परिदृश्य को लेकर उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी की प्रतिक्रिया को मापा गया, जिसमें मौजूदा सदी के अंत तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है।

इस अध्ययन के अनुसार, पूर्वी अफ्रीका और हिंद महासागर के ऊपर उष्णकटिबंधीय वर्षा पट्टी के उत्तर की ओर स्थानांतरित होने से ‘‘दक्षिण भारत में बाढ़ की तीव्रता बढ़ सकती है’’ और इससे 2100 तक वैश्विक जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

अमेरिका स्थित युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (यूसी) के वैज्ञानिक इस अध्ययन में शामिल थे। उन्होंने कहा कि वर्षा पट्टी में यह ‘‘बड़ा बदलाव’’ जलवायु परिवर्तन के वैश्विक असर संबंधी पहले के अध्ययनों में सामने नहीं आया था।

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण एशिया और उत्तरी अटलांटिक महासागर में तापमान बढ़ा है। इस ताजा अध्ययन के तहत पूर्वी और पश्चिमी गोलार्ध क्षेत्र में प्रतिक्रिया को अलग-अलग करके भारत में आगामी दशकों में आने वाले बड़े बदलावों को रेखांकित किया गया है।

अध्ययन के सह लेखक एवं यूसी इरविन के वैज्ञानिक जेम्स रैंडरसन ने कहा, ‘‘एरोसोल उत्सर्जन में अनुमानित कमी, हिमालयी क्षेत्र में हिमनदी के पिघलने और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी क्षेत्रों में बर्फ का आवरण हटने से एशिया में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक तेजी से तापमान बढ़ेगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि इस गर्मी के कारण वर्षा पट्टी का स्थानांतरण और पूर्वी गोलार्ध में उत्तर की ओर इसकी गतिविधि जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों के अनुरूप है।’’

 

 

First Published on: January 19, 2021 4:56 PM
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