पणजी। कांग्रेस की गोवा इकाई ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी पादरी स्टेन स्वामी के निधन को ‘हिरासत में हुई हत्या’ करार देते हुए सोमवार को कहा कि वह इसके खिलाफ पणजी के आजाद मैदान में मंगलवार को विरोध प्रदर्शन करेगी।
गोवा प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष गिरीश चोडांकर ने ट्वीट कर कहा, “ गोवा कांग्रेस स्टेन स्वामी की हिरासत में हुई हत्या की कड़ी निंदा करती है। वह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता थे, जिन्होंने समाज के वंचित तबकों के उत्थान के लिए कार्य किए। 84 वर्षीय पादरी को जेल में बंद कर उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया। यह इस दमनकारी सरकार की बर्बरता का एक ठोस उदाहरण है। हम इसके खिलाफ आजाद मैदान में सुबह 11 बजे विरोध प्रदर्शन करेंगे।“
. @INCGoa strongly condemns d custodial killing of Fr #StanSwamy the HR activist who worked for d rights of indigenous Ppl. 84y old Fr was imprisoned & deprived of basic amenities.This is a concrete eg of d brutality of this repressive govt. Will protest @11am @AzadMaidan pic.twitter.com/EtPrHRmmh2
— Girish Chodankar (@girishgoa) July 5, 2021
Congress claims death of Fr Swamy as custodial killing, to protest in Goa – Goa News Hub @INCGoa @INCIndia @INCGoaSM @digambarkamat @dineshgrao #StanSwamy https://t.co/kbVmWPZLKr
— Girish Chodankar (@girishgoa) July 5, 2021
स्वामी का सोमवार को मुंबई में बांद्रा के एक अस्पताल में निधन हो गया। अस्पताल के अनुसार हृदयघात होने के बाद स्वामी को वेंटिलेटर पर रखा गया था, लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं आया। उन्हें सोमवार को अपराह्न करीब एक बजकर 25 मिनट पर मृत घोषित कर दिया गया।
गैर कानूनी गतिविधियां नियंत्रक अधिनियम (यूएपीए) के तहत स्वामी को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में हिरासत में लिया गया था।
भीमा कोरेगांव मामले में हुई थी गिरफ्तारी
एनआईए ने उन पर 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में शामिल होने के साथ नक्सलियों के साथ संबंध होने के आरोप लगाए थे. उन पर ग़ैर क़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की भी धाराएं लगाईं गईं थीं.
90 के दशक से झारखंड में काम कर रहे थे
फ़ादर स्टेन स्वामी दरअसल कुछ समय से जांच एजेंसियों के निशाने पर थे. उनके घर में गिरफ्तारी से पहले दो बार छापे भी मारे गए थे. जानने वाले लोगों के अनुसार वो मृदुभाषी और चुपचाप अपना काम करने वाले थे. झारखंड में वो 1991 से आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम कर रहे थे.
आदिवासी अधिकारों के लिए आवाज बने
वो आदिवासियों के अधिकारों के लिए कई बार कोर्ट की शरण में भी गए. खासकर उन 3000 से ज्यादा वो आदिवासी, जिन्हें नक्सलवादी के तौर पर जेल में बंद किया हुआ है. वो आदिवासियों की जमीनों और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के खिलाफ भी लगातार संघर्ष करने वाले शख्स थे. वो आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिए जागृत करने का काम भी करते रहे थे.
तमिलनाडु में साधारण घर में पैदाइश
तमिलनाडु में जन्मे फ़ादर स्टेन स्वामी के पिता किसान थे और उनकी मां गृहिणी थीं. उन्होंने पहले बेंगलुरु में वंचित समुदाय में लीडरशिप विकसित करने के लिए एक स्कूल चलाया. उनका जन्म 26 अप्रैल 1937 को हुआ था.
तब वो आंदोलनों की ओर प्रेरित हुए
उनके दोस्त बताते हैं कि फ़ादर स्टेन स्वामी का ऐसे आंदोलनों की तरफ़ रुझान मनीला यूनिवर्सिटी में हुआ था. वो वहां समाजशास्त्र की पढाई के दौरान वो आंदोलनों से जुड़े. वो अपने दोस्तों को बताया करते थे कि वो फिलिपींस के राष्ट्रपति मार्कोस के भ्रष्ट और क्रूर शासन को उखाड़ फेंकने वाले जनांदोलनों से प्रभावित हुए थे. भारत लौटने के बाद भी वो लैटिन अमेरिका में जन आंदोलनों के संपर्क में रहे. उनके बारे में लगातार पढ़ा करते थे.
बेल्जियम में डॉक्टरेट की पढाई छोड़ दी
पहली बार वो पादरी के तौर पर 28 साल की उम्र में झारखंड आए, तब वो अविभाजित बिहार का हिस्सा था. तब उन्होंने चाईबासा में रहकर हो आदिवासियों की जिंदगी को देखा, शायद इसने उन्हें वंचितों की आवाज बनने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद वो बेल्जियम एक साल का एकेडमिक कोर्स करने चले गए. वहां उनका चयन एक डॉक्टरेट प्रोग्राम में हो गया लेकिन उन्होंने वहां रहने की बजाए चाईबासा लौटने का फैसला किया.
आदिवासी अधिकारों की पैरवी करते थे
हालांकि फिर उनका झारखंड आना जाना लगा रहता था. लेकिन 90 के दशक में उन्होंने झारखंड में ही रहने का तय किया. वो यहां आ गए. वो लगातार आदिवासियों की आवाज बनकर उनके अधिकारों की पैरवी करने लगे. वो पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज से जुड़े. उन्होंने आदिवासियों को जेल भेजने की केस स्टडी पर किताब भी लिखी.