पुण्यतिथि : भारत की आंखों में सपना देने वाले रत्न राजीव गांधी

पहले देश में वोट करने की आयु सीमा 21 वर्ष थी, जो युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की नजर में गलत थी। उन्होंने 18 वर्ष की उम्र के युवाओं को मताधिकार देकर उन्हें देश के प्रति और जिम्मेदार व सशक्त बनाने की पहल की। 1989 में संविधान के 61वें संशोधन के जरिए वोट देने की आयु सीमा 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। इस प्रकार अब 18 वर्ष के करोड़ों युवा भी अपना सांसद, विधायक से लेकर अन्य निकायों के जनप्रतिनिधियों को चुन सकते हैं। आज के युवा भारत कोयह अधिकार उन्हें राजीव गांधी ने ही दिलाया था।

पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न राजीव गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। आज ही के दिन यानी 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक सभा में आत्मघाती बम धमाके में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी। 21 मई का दिन इतिहास में एक दर्दनाक घटना के लिए याद किया जाता है। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। उनका जन्म 20 अगस्त 1944 को हुआ था। भारत जब अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ तब उनकी आयु केवल तीन वर्ष थी। उनका बचपन तीन मूर्ति भवन में बीता। अपने राजनीतिक कार्यकाल में देश को तकनीक और वैश्विक बुलंदियों तक पहुंचाने वाले राजीव गांधी के जीवन के कई दिलचस्प तथ्य हैं जिनसे आप अनजान होंगे। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम आपको ऐसी ही अनसुनी बातें और कुछ दुर्लभ तस्वीरों के बारे में बताएंगे।

राजीव गांधी का बचपन तीन मूर्ति भवन में बीता। उनकी शिक्षा की बात करें तो वे कुछ समय के लिए देहरादून के वेल्हम स्कूल गए लेकिन जल्द ही उन्हें हिमालय की तलहटी में स्थित आवासीय दून स्कूल में भेज दिया गया। वहां उनके कई मित्र बने जिनके साथ उनकी आजीवन दोस्ती बनी रही। बाद में उनके छोटे भाई संजय गांधी को भी इसी स्कूल में भेजा गया जहां दोनों साथ पढ़े। स्कूली शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद राजीव गांधी आगे की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए। जल्द ही उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज को अलविदा कह दिया और लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज चले गए जहां से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।

राजीव गांधी कैम्ब्रिज में पढ़ाई कर रहे थे उसी वक्त उनकी मुलाकात सोनिया गांधी से हुई। सोनिया गांधी इटली की रहने वाली थीं और उस वक्त कैम्ब्रिज में अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही थीं। दोनों ने एक दूसरे को पसंद किया और फिर बात परिवार तक पहुंची और 1968 में दोनों की शादी हुई। दोनों के बच्चों का नाम राहुल गांधी और प्रियंका गांधी है।

राजीव गांधी की रुचि राजनीति में कभी नहीं रही। वह पेशेवर पायलट थे। लेकिन,1980 में संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मृत्यु हुई तो राजीव गांधी के लिए भी परिस्थियां बदल गई। उन्हें राजनीति में आना पड़ा और संजय गांधी की मृत्यु से खाली हुए उत्तर प्रदेश के अमेठी संसदीय क्षेत्र से राजीव गांधी ने पहली बार उपचुनाव लड़ा। वह इस सीट से जीत गए और पहली बार संसद पहुंचे।

31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके निजी सुरक्षा कर्मियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ घंटो बाद ही राजीव को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक दो महीने बाद यानि दिसंबर 1984 में लोकसभा चुनाव हुए और इस चुनाव में कांग्रेस ने 524 सीटों में से 415 सीटों पर जीत दर्ज की। राजीव गांधी 1984 से 1989 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। 21 मई 1991 की रात वह तमिलनाडु में चुनावी रैली को संबोधित करने पहुंचे तो मंच की ओर आती एक महिला आत्मघाती हमलावर ने उन्हें माला पहनाने की कोशिश की। जैसे ही महिला हमलावर ने उन्हें माला पहनाई और पैर छूने के लिए झुकी उसने अपने कमर पर बंधे बम का बटन दबा दिया। इस धमाके में राजीव गांधी की दर्दनाक मौत हो गई।

देश में वयस्क मताधिकार की आयु सीमा 21 वर्ष थी, जो युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की नजर में गलत थी। उन्होंने 18 वर्ष की उम्र के युवाओं को मताधिकार देकर उन्हें देश के प्रति और जिम्मेदार व सशक्त बनाने की पहल की। 1989 में संविधान के 61वें संशोधन के जरिए वोट देने की आयु सीमा 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। इस प्रकार अब 18 वर्ष के करोड़ों युवा भी अपना सांसद, विधायक से लेकर अन्य निकायों के जनप्रतिनिधियों को चुन सकते हैं। आज के युवा भारत को यह अधिकार उन्हें राजीव गांधी ने ही दिलाया था।

राजीव गांधी का मानना था कि विज्ञान और तकनीक की मदद के बिना उद्योगों का विकास नहीं हो सकता। राजीव गांधी को भारत में कंप्यूटर क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने ना सिर्फ कंप्यूटर को भारत के घरों तक पहुंचाने का काम किया बल्कि भारत में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी को आगे ले जाने में अहम रोल निभाया। उन्होंने कुछ ऐसा किया कि कंप्यूटर आम लोगों तक पहुंच गया। उस दौर में कंप्यूटर लाना इतना आसान नहीं था। तब कंप्यूटर महंगे होते थे, इसलिए सरकार ने कंप्यूटर को अपने कंट्रोल से हटाकर पूरी तरह ऐसेंबल किए हुए कंप्यूटर्स का आयात शुरू किया जिसमें मदरबोर्ड और प्रोसेसर थे। उन्होंने कंप्यूटर तक आम जन की पहुंच को आसान बनाने के लिए कंप्यूटर उपकरणों पर आयात शुल्क घटाने की भी पहल की। इसी का परिणाम हुआ कि साफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत दुनिया का सबसे अग्रणी देश बना हुआ है।

देश में पंचायतीराज व्यवस्था यानी ग्रामीण पर होने वाले चुनाव की नींव रखने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। दरअसल, राजीव गांधी का मानना था कि जब तक पंचायती राज व्यवस्था मजबूत नहीं होगी, तब तक निचले स्तर तक लोकतंत्र नहीं पहुंच सकता। उन्होंने अपने कार्यकाल में पंचायतीराज व्यवस्था का पूरा प्रस्ताव तैयार कराया। 21 मई 1991 को हुई हत्या के एक साल बाद राजीव गांधी की सोच को तब साकार किया गया, जब 1992 में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के जरिए पंचायतीराज व्यवस्था का उदय हुआ। राजीव गांधी की सरकार की ओर से तैयार 64वें संविधान संशोधन विधेयक के आधार पर नरसिम्हा राव सरकार ने 73वां संविधान संशोधन विधेयक पारित करा 24 अप्रैल 1993 से पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू करवाई। इस व्यवस्था का मकसद सत्ता का विकेंद्रीकरण था।

ग्रामीण और शहरी वर्गों में नवोदय विद्यालयों की नींव भी राजीव गांधी ने ही रखी थी। उनके कार्यकाल में ही आवासीय विद्यालय जवाहर नवोदय विद्यालयों की नींव डाली गई। प्रवेश परीक्षा में सफल मेधावी बच्चों को इन स्कूलों में प्रवेश मिलता है। बच्चों को छह से 12वीं तक की मुफ्त शिक्षा और हॉस्टल में रहने की सुविधा मिलती है। इन विद्यालयों से आज भी प्रतिवर्ष देश के लाखों मेधावी छात्र निकलते हैं और देश की सेवा करते हैं। उसके अलावा राजीव गांधी की सरकार ने 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE) की घोषणा की गई। इसके तहत पूरे देश में उच्च शिक्षा व्यवस्था का आधुनिकीकरण और विस्तार हुआ।

कम्प्यूटर क्रांति की तरह ही दूरसंचार क्रांति का श्रेय भी राजीव गांधी को जाता है। उन्हीं की पहल पर ही अगस्त 1984 में भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की स्थापना के लिए सेंटर फॉर डिवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (C-DOT) की स्थापना हुई। इस पहल से शहर से लेकर गांवों तक दूरसंचार का जाल बिछना शुरू हुआ। जगह-जगह पीसीओ खुलने लगे। जिससे गांव की जनता भी संचार के मामले में देश-दुनिया से जुड़ सकी। इसके बाद 1986 में राजीव की पहल से ही एमटीएनएल की स्थापना हुई, जिससे दूरसंचार क्षेत्र में और प्रगति हुई।

राजीव गांधी की हत्या के बाद देश और कांग्रेस पार्टी की बागडोर गांधी परिवार से हटकर कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं को सौंपा गया, लेकिन पार्टी को यथोचित सफलता नहीं मिली, जिसके बाद कांग्रेस पार्टी की बागडोर को सोनिया गांधी को सौंपा गया। इनके नेतृत्व में पार्टी ने 2004 का चुनाव जीती और राजनीतिक विरोध के बाद सोनिया ने भारत के प्रधानमंत्री का पद को ठुकरा दिया। उन्होंनें एका भाषण के दौरान कहा था,मैं कई बार सोचती हूं कि मैने ऐसा क्यों किया तो अंतर्रात्मा से आवाज़ आती है कि यही सही था । “क्योंकि मैं सत्ता के लिये कभी भी प्रयासरत नहीं रही। मेरे ऊपर कोई दबाव नहीं था। पर मैंने सत्ता कभी नहीं चाही।”

First Published on: May 21, 2020 8:53 AM
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