राष्ट्रीय अपमान के विरोध में अमेरिका से कूटनीतिक संबंध तोड़ लेना चाहिए : अजय खरे

कोलंबिया जैसा छोटी आबादी वाले देश ने अपने नागरिकों को हथकड़ी लगाकर गुलामो की तरह वहाँ से लाने वाले अमेरिकी सैन्य विमान को लेकर कड़ा एतराज जताते हुए उसे उतरने की अनुमति देने से मना करने के बाद अपने लोगों को बिना हथकड़ी लगाए अमेरिका से वापस लाने का फैसला तत्काल कर लिया।

अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ विद्रोही आतंकवादियों और आपराधिक कैदियों की तरह व्यवहार सरासर गलत है। क्या रिहाई के बाद किसी भी नागरिक की घर वापसी हथकड़ी पहनाकर होती है। वैसे भी अमेरिकन प्रवासी कानून अमेरिका तक सीमित है। लेकिन अमेरिका सरकार ने मानव अधिकार का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन किया है।

अमेरिका में अवैधानिक रूप से रह रहे प्रवासी भारतीयों को निकाले जाने की बात समझ में आती है लेकिन उनके साथ किया गया अमानुषिक व्यवहार माननीय मूल्यों को तार-तार कर देने वाला है। ऐसी स्थिति में अमेरिकन सरकार ने प्रवासी भारतीयों को उनके देश भेजते समय किस हैसियत से उन्हें हथकड़ियां और बेंड़ियां डाल रखी थीं। जबकि रिहाई के बाद प्रवासी भारतीयों को बिना हथकड़ी और बेड़ियों के भारत पहुंचाना चाहिए था। और तो और महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। उन्हें हथकड़ी लगाने के साथ उनकी कमर में जंजीर भी बांधी गई। ऐसी अप्रिय बर्बर स्थिति के लिए अमेरिकी सरकार की ओछी हरकत और इस पर भारत की मोदी सरकार की चुप्पी अत्यंत आपत्तिजनक और निंदनीय है।

सजा मुक्त होने या जमानती रिहाई के बाद किसी को हथकड़ी नहीं लगाई जाती। लेकिन अमेरिकी ट्रम्प सरकार ने तो सारे नियमों को ताक पर रखते हुए प्रवासी भारतीयों को हथकड़ी और पैर में बेड़िया लगी हालत में भारत भेज दिया। दुनिया के किसी भी कानून में किसी भी व्यक्ति को रिहाई के बाद घर जाते समय हथकड़ी लगाने का प्रावधान नहीं है। लानत है मोदी सरकार को कि उसने इसके विरोध में अभी तक मुंह नहीं खोला। ऐसी अप्रिय शर्मनाक स्थिति के खिलाफ अमेरिका से कूटनीतिक संबंध तोड़ लेना चाहिए।

वहीं भारत के विदेश मंत्री का बयान अत्यंत शर्मनाक और कायरता से भरा है। क्या भारत में शासक वर्ग को अपने देश के नागरिकों के साथ अमेरिकी सरकार के द्वारा ‌किया जा रहा गुलामों जैसा दुर्व्यवहार पूरे देश के लिए शर्मनाक और अपमानजनक नहीं लगता है ? जो लोग डिपोर्ट किये जा रहे हैं उनके साथ आतंकवादियों की तरह दुर्व्यवहार की कड़ी निंदा होना चाहिए। विदेश मंत्री एस जयशंकर के द्वारा दिया गया बयान तो बेहद निर्लज्जतापूर्ण और कायराना है जिसमें वह नियमों का हवाला देकर फरमा रहे हैं कि टॉयलेट ब्रेक के दौरान अस्थाई तौर पर हथकड़ियां खोली भी जाती हैं। उन्हें जरा भी शर्म नहीं आ रही है कि देश के नागरिकों को हथकड़ी लगाकर स्वदेश लाया जा रहा है।

बात 56 इंची सीने की करते हैं लेकिन पलटवार करने की जगह मुंह में दही जम गया है। अमेरिकी बर्बर रवैया से पूरे देश के 140 करोड लोगों का अपमान हुआ है। सन 1971 में बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए भारत ने खुला समर्थन दिया था। ऐसे समय अमेरिका का सातवां जंगी जहाज बेड़ा हिंद महासागर में खड़ा था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की ललकार के सामने वह जहाज़ी बेड़ा आगे नहीं बढ़ सका।

आज देखने को मिल रहा है कि अमेरिका से प्रवासी भारतीयों को खूंखार कैदियों से भी बदतर हालत में अपमानित करते हुए भारत भेजा गया और इसके खिलाफ मोदी सरकार की जुबान अभी तक नहीं खुल सकी है। आखिरकार ये किस मुंह से बोलेंगे जिन्होंने अपने देश में नागरिकता कानून को धर्म के आधार अत्यंत भेदभावपूर्ण बना दिया है। वैसे तो संकट काल में विदेश में फंसे अपने नागरिकों को लाने के लिए मोदी सरकार अपनी हवाई सेवाएं शुरू कर देती थी लेकिन इस बार ऐसा क्यों नहीं किया गया जब प्रवासी भारतीयों को अमेरिकी सैन्य विमान से भारत भेजा गया।

प्रवासी भारतीयों को अमेरिका से लाने के लिए मोदी सरकार यदि यहां से विमान भेज देती तो वहां से हथकड़ी लगाकर स्वदेश वापसी की अप्रिय स्थिति से बचा जा सकता था। विभिन्न देशों में भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्या रोजगार की तलाश में भटक रहे शिक्षित बेरोजगारों की है। इसे मोदी सरकार की आर्थिक विफलता कहा जा सकता है। रोजगार की लिए बड़े पैमाने पर हो रहे देश पलायन की स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण एवं शर्मनाक है।

कोलंबिया जैसा छोटी आबादी वाले देश ने अपने नागरिकों को हथकड़ी लगाकर गुलामो की तरह वहाँ से लाने वाले अमेरिकी सैन्य विमान को लेकर कड़ा एतराज जताते हुए उसे उतरने की अनुमति देने से मना करने के बाद अपने लोगों को बिना हथकड़ी लगाए अमेरिका से वापस लाने का फैसला तत्काल कर लिया। कोलंबिया जैसा छोटा देश भी अपने नागरिकों और देश का सम्मान बचाने का साहस कर सकता है लेकिन यहां ऐसा करने का मजबूत संकल्प कहां है?

कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो को सलाम है कि जिन्होंने अमेरिकी सैन्य विमान से कैदियों की हालत में भेजे गए अपने देशवासियों को वापस करने के बाद उन्हें आजाद हालत में सम्मान पूर्वक स्वदेशी विमान से बुलाकर अगवानी की है। क्या मोदी सरकार ऐसा नहीं कर सकती थी? युद्ध बंदियों के लिए भी कानूनी संरक्षण का अधिकार है ऐसी स्थिति में किसी भी देश के नागरिकों के साथ किया जाने वाला अमानवीय व्यवहार कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता है। लानत है मोदी सरकार को कि उसने इसके विरोध में अभी तक मुंह नहीं खोला। जबकि ऐसी अप्रिय शर्मनाक स्थिति और राष्ट्रीय अपमान के खिलाफ भारत सरकार को अमेरिका से कूटनीतिक संबंध तोड़ लेना चाहिए।

(अजय खरे लोकतंत्र सेनानी हैं और समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक हैं)

First Published on: फ़रवरी 7, 2025 7:34 अपराह्न
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