उत्तरी अटलांटिक में पर्यावरण गड़बड़ी से आधे भारत में पड़ा सूखा : रिपोर्ट

भारत में पिछली सदी में भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून सत्र के दौरान सूखा पड़ने की लगभग आधी घटनाएं संभवत: उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की पर्यावरणीय गड़बड़ियों की वजह से हुईं।

बेंगलुरु। भारत में पिछली सदी में भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून सत्र के दौरान सूखा पड़ने की लगभग आधी घटनाएं संभवत: उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की पर्यावरणीय गड़बड़ियों की वजह से हुईं।

यह बात भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के पर्यावरणीय एवं समुद्री विज्ञान केंद्र द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में कही गई है जिसकी रिपोर्ट ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

वार्षिक भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून पर एक अरब से अधिक आबादी निर्भर है जिसमें देश में जून से सितंबर के बीच अच्छी-खासी बारिश होती है।

यह मानसून जब विफल होता है तो देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा पड़ता है जिसकी सामान्य वजह बार-बार होने वाले जलवायु घटनाक्रम ‘अल नीनो’ को बताया जाता है जिसमें भूमध्यवर्ती प्रशांत महासागरीय जल नमी से लैस बादलों को भारतीय उपमहाद्वीप से दूर खींच लेता है।

लेकिन नए अध्ययन में कहा गया है कि भारत में पिछली सदी में सूखा पड़ने की 23 घटनाओं में से 10 तब हुईं जब ‘अल नीनो’ मौजूद नहीं था। तब सूखा पड़ने की इन घटनाओं का कारण क्या हो सकता है?

आईआईएससी के अध्ययन में कहा गया है कि सूखा पड़ने की ये घटनाएं अगस्त के अंत में बारिश में अचानक अत्यधिक कमी आने की वजह से हुईं।

संस्थान ने कहा कि बारिश में कमी की ये घटनाएं उत्तरी अटलांटिक हिन्द महासागर के ऊपर मध्य अक्षांश पर पर्यावरणीय प्रवाह बनने से जुड़ी थीं जो उपमहाद्वीप के ऊपर फैल गया और मानसून को पटरी से उतार दिया।

First Published on: December 11, 2020 4:38 PM
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