सुरक्षित नहीं है हाथरस पीड़िता का परिवार…दबंगों और पुलिस का गठजोड़ बरकरार: PUCL

एक सवाल के जवाब में आलोक और फरमान नकवी ने बताया कि इस मामले में पापुलर फ्रंट आफ इंडिया का नाम इसलिए घसीटा गया ताकि हिंदू-मुस्लिम का विभेद कर घटना से ध्‍यान हटाया जा सके।

घटना को लेकर यूपी सरकार की आचोलनो होने के बाद प्रदेश के पुलिस के मुखिया एच सी अवस्थी और अपर प्रमुख सचिव अवनीश अवस्थी ने पीड़ित परिवार से मुलाकात की थी।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती के साथ कथित सामूहिक दुष्‍कर्म और हत्‍या के मामले में पीपुल्‍स यूनियन फॉर सिविल लि‍बर्टीज (पीयूसीएल) ने शनिवार को अपनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की जिसमें कहा गया है कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की तैनाती से पीडि़त परिवार को फौरी राहत जरूर है, लेकिन वे सुरक्षित नहीं हैं ।

पीयूसीएल ने कहा कि ‘केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की तैनाती से पीडि़त परिवार को फौरी राहत जरूर है, लेकिन वे सुरक्षित नहीं हैं। परिवार आतंकित है कि बल के नहीं रहने पर क्‍या होगा, इसलिए परिवार की सुरक्षा के अलावा निर्भया फंड से उनके पुनर्वास की व्‍यवस्‍था की जाए।’ शनिवार को प्रेस क्‍लब के सभागार में पीयूसीएल टीम के कमल सिंह एडवोकेट, आलोक, शशिकांत, केबी मौर्य और फरमान नकवी ने पत्रकारों को जांच के निष्‍कर्ष बिंदुओं से अवगत कराया।

पीयूसीएल के सदस्‍यों ने कहा, ‘केंद्रीय जांच ब्यूरो इलाहाबाद उच्च न्यायालय की देख-रेख में हाथरस की घटना की स्‍वतंत्र एवं निष्‍पक्ष जांच कर रहा है लेकिन सीबीआई जांच के बावजूद पीडि़त पक्ष आश्‍वस्‍त नहीं है। सुरक्षा का खतरा बना हुआ है क्‍योंकि सीआरपीएफ के जाने के बाद परिवार के सदस्‍यों की जान सुरक्षित नहीं रहेगी।’

सदस्‍यों ने कहा कि स्‍थानीय पुलिस और गांव के दबंगों का गठजोड़ बरकरार है इसलिए परिवार आतंकित है कि बल के हटने पर उनके जीवन का क्‍या होगा। जांच रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मृतका का चरित्र हनन दंडनीय अपराध है और ऐसा करने वालों और पीडि़त परिवार के खिलाफ दुष्‍प्रचार करने वालों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई जरूरी है।

पीयूसीएल के सदस्‍यों ने कहा कि इस मामले में कुछ अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की गई है, लेकिन जिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामले बनते हैं उसका संज्ञान नहीं लिया गया। सदस्‍यों के मुताबिक सामूहिक दुष्‍कर्म और हत्‍या के मामले में कार्रवाई हुई लेकिन जिस तरह जबरिया शव जलवाया गया और परिवार के सदस्‍यों को आखिरी बार देखने भी नहीं दिया गया, उन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्‍यों नहीं की गई।

सदस्‍यों ने निलंबित किये गये पुलिस अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने के साथ ही जिलाधिकारी के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई की मांग की।

सदस्‍यों ने कहा कि जबरन शव जलाये जाने के मामले की भी सीबीआई जांच करे, इसके साथ ही हाथरस कांड के नाम पर दंगा भड़काने और साजिशों से संबंधित मुकदमे जिसमें एसटीएफ के अन्‍तर्गत जांच चल रही है, उन्‍हें भी न्‍यायालय के पर्यवेक्षण में जारी सीबीआई जांच के दायरे में लिया जाना चाहिए।

एक सवाल के जवाब में आलोक और फरमान नकवी ने बताया कि इस मामले में पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) का नाम इसलिए घसीटा गया ताकि हिंदू-मुस्लिम का विभेद कर घटना से ध्‍यान हटाया जा सके।

उन्‍होंने मांग की कि पीएफआई को भी सीबीआई की जांच में शामिल किया जाए। कमल सिंह ने कहा कि प्रतिबंधित सूची के संगठनों में पीएफआई का कहीं नाम नहीं है और मुख्‍यमंत्री कहते हैं कि यह उग्रवादी संगठन है तो इस पर प्रतिबंध क्‍यों नहीं लगाया गया।

उल्‍लेखनीय है कि पुलिस ने पीएफआई के चार सदस्‍यों को गिरफ़्तार कर यह आरोप लगाया कि वे वहां माहौल खराब करने जा रहे थे। फरमान नकवी ने कहा कि इन सदस्‍यों को हिरासत में लिया जाना गलत है।

हाथरस जिले के एक गांव में बीते 14 सितंबर को एक दलित युवती के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्‍कार और मौत के मामले ने पूरे देश का ध्‍यान आकर्षित किया है। नागरिक अधिकारों के लिए कार्यरत पीयूसीएल ने मनीष सिन्‍हा, सीमा आजाद, आलोक, विदुषी, सिद्धांत राज, शशिकांत, केबी मौर्य, तौहीद, केएम भाई और कमल सिंह की एक टीम गठित कर जांच रिपोर्ट तैयार कराई। शनिवार को पीयूसीएल ने इस जांच रिपोर्ट की एक पुस्तिका भी वितरित की जिसमें उत्‍तर प्रदेश सरकार पर गंभीर आरोप लगाए गये हैं।

First Published on: November 21, 2020 4:16 PM
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