नेट-जीरो लक्ष्य को पाने के लिए भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए कई बड़े बदलाव करने होंगे। “भारत की नेट-जीरो बनने की घोषणा चीन या यूरोपीय संघ की तुलना में कहीं अधिक महत्वाकांक्षी है।
सीईईडब्ल्यू उम्मीद करती है कि यह भारतीय और वैश्विक ऊर्जा बाजार को एक स्पष्ट रूपरेखा प्रदान करेगा और कार्बन उत्सर्जन को घटाने व जलवायु परिवर्तन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की दिशा में रफ्तार को बढ़ाएगा। सीईईडब्ल्यू की हालिया रिपोर्ट के अनुरूप आई यह घोषणा भारत के कम कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनने से जुड़े बदलावों का खाका भी उपलब्ध कराएगी।
सीईईडब्ल्यू के विशेषज्ञ डॉ. वैभव चतुर्वेदी कहते हैं कि नेट-जीरो वर्ष की घोषणा करके, प्रधानमंत्री ने उन विदेशी और घरेलू निवेशकों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं, जो भारत में ग्रीन टेक्नोलॉजीज के शोध और विकास, निर्माण और इसे स्थापित करने में निवेश करना चाहते हैं। हालांकि, भारत के प्रयासों को विकसित देशों की ओर से उपलब्ध कराए गए जलवायु वित्त की मदद चाहिए होगी। रियायती दर पर विदेशी पूंजी के बिना यह परिवर्तन मुश्किल साबित होगा।
इसके अलावा, सीईईडब्ल्यू के ‘इंप्लीकेशंस ऑफ अ नेट-जीरो टारगेट फॉर इंडियाज सेक्टोरल एनर्जी ट्रांजिशन’ अध्ययन के अनुसार, 2070 तक नेट-जीरो का लक्ष्य पाने के लिए भारत को अपनी कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता को 5,600 गीगावाट से ज्यादा तक बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
इस लक्ष्य के लिए भारत को बिजली उत्पादन में कोयले का उपयोग 2060 तक 99 प्रतिशत तक घटाने की भी जरूरत होगी। साथ में, सभी क्षेत्रों में कच्चे तेल की खपत में 2050 से कटौती की शुरुआत करने और 2050 से 2070 के बीच 90 प्रतिशत तक घटाने की जरूरत होगी। इसमें ग्रीन हाइड्रोजन उद्योगों की ऊर्जा जरूरतों में 19 प्रतिशत का योगदान कर सकता है।”