एक वोट एक रोजगार आंदोलन की मांग, हर हाथ को काम के लिए बने तत्काल रोज़गार कानून


दिल्ली सरकार न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी गारंटी के लिए कोई व्यवस्था नहीं बना रही। किसी भी मज़दूर को न्यूनतम मज़दूरी नहीं मिलती। हम केजरीवाल सरकार से यह कहना चाहते हैं कि आप सभी दिल्ली के नौजवानों के न्यूनतम मज़दूरी को सुनिश्चित करने का कोई व्यवस्था बनाए।


नागरिक न्यूज नागरिक न्यूज
देश Updated On :

नई दिल्ली। “एक वोट एक रोजगार आंदोलन”, जिसमें समाज के संवेदनशील नागरिक शामिल हैं, देश की सरकार द्वारा लंबे समय से जन-बूझकर बडे पैमाने पर बेरोजगारी की समस्या को नजरंदाज किया जा रहा है, जो वर्तमान सरकार में अपनी पराकाष्ठा पर है। भारत युवाओं का देश है, जिन नौजवानों के हाथ में काम होना चाहिए था, वह काम न होने की स्थिति में अवसाद, नशा और अपराध की तरफ बढ़ रहे हैं। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष करीब पच्चीस हज़ार पढ़े लिखे नौजवानों ने नौकरी नहीं मिलने या नौकरी छिन जाने की स्थिति में आत्महत्या कर लिया।

एक वोट एक रोज़गार आंदोलन रोजगार कानून की मांग कर रहा है ताकि रोज़गार नहीं मिलने पर रोज़गार कानून होने की स्थिति में अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सके, अभी हमारे देश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जो काम मिल भी रहे हैं उसमे न्यूनतम मजदूरी की कोई गारंटी नहीं है, नर्सिंग स्टाफ, सफाई कर्मी, तकनीशियन, गार्ड आदि किसी को भी सरकार द्वारा तय की गई मजदूरी नहीं मिलती और इसमें से कोई भी कर्मचारी नौकरी जाने के डर से कहीं शिकायत भी नहीं करता, सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान काम के लिए समान वेतन का दिशा निर्देश देने के बावजूद सभी विभागों को संविदा पर कर दिया गया है, जिसमें योग्य होने के बावजूद कर्मचारियों की नौकरी जाने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है, एक वोट एक रोजगार आंदोलन सभी संविदा कर्मियों को उन्हीं के स्थान पर स्थायी करने की मांग करता है और साथ ही सरकारी विभागों में अन्यायपूर्ण संविदा व्यवस्था को समाप्त करने की भी मांग करता है।

जनसंख्या बढ़ने की वज़ह से शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, सुरक्षा आदि सभी विभागों में बहुत बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों की आवश्यकता है लेकिन नियुक्ति नहीं हो रही है, उन सभी खाली पदों को तत्काल प्रभाव से भरा जाए, साथ ही सभी नियुक्तियों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए तथा पेपर लीक जैसे मामलों पर तत्काल अंकुश लगाया जाए और ऐसी घटना को अंजाम देने वालों पर तत्काल कठोर से कठोर कार्रवाई का प्राविधान हो।

हमारे बुजुर्गों ने राष्ट्र के निर्माण में अपना पूरा जीवन समर्पित किया, सड़क, हॉस्पिटल, बाँध, विश्वविद्यालय, स्कूल, कॉलेज, समेत सभी सरकारी और निजी क्षेत्र के इमारत और आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया है। एक वोट एक रोज़गार आंदोलन हमारे देश के बुजुर्गों के सम्मानजनक गुज़र- बशर के लिए न्यूनतम मजदूरी की आधा राशि को वृद्धा पेंशन के रूप में दिए जाने की मांग करता है।

इन मूलभूत मांग को लेकर 9 जुलाई को जंतर-मंतर पर एक जनसंसद का आयोजन किया गया है, एक वोट एक रोज़गार आंदोलन का मानना है कि नई संसद मे रोज़गार कानून को लेकर हमारे प्रधानमंत्री एक नई शुरुआत करेंगे, जिसके ऊपर चर्चा इस जन-संसद में की जाएगी। इस जनसंसद में संवेदनशील राजनेता, समाजसेवी, बुद्धजीवी आदि शामिल होंगे।

आंदोलन के नेता प्रवीण काशी ने कहा कि पिछले 75 वर्षों से हम रोज़गार पर नेताओं के भाषण व आश्वासन सुन सुन कर थक चुके हैं अब हमें इन पर भरोसा नहीं। मोदी जी से कहना चाहते हैं कि हमें सम्मान जनक जीवन जीने के लिए रोज़गार का क़ानून चाहिए ताकि बेरोज़गार होने की स्थिति में हम नेता जी के घर जाने के बजाय कोर्ट जा सके। दिल्ली सरकार न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी गारंटी के लिए कोई व्यवस्था नहीं बना रही। किसी भी मज़दूर को न्यूनतम मज़दूरी नहीं मिलती। हम केजरीवाल सरकार से यह कहना चाहते हैं कि आप सभी दिल्ली के नौजवानों के न्यूनतम मज़दूरी को सुनिश्चित करने का कोई व्यवस्था बनाए।

इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे डॉक्टर संत प्रकाश ने कहा कि ‘एक वोट एक रोजगार आंदोलन’ इस देश के हर वोट को सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार को सुनिश्चित कराने का आंदोलन है, संविधान के नीति निर्देशक तत्वों, जिसकी बात अनुच्छेद 38 और अनुच्छेद 39 करता है, उसको सुनिश्चत कराने का आन्दोलन है, देश के वास्तविक सम्प्रभु यानी देश की जनता के साथ उनकी चुनी हुई सरकार द्वारा नीति निर्देशक तत्वों में समाहित ‘रोज़गार’ की बात को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने यानी ‘रोज़गार कानून’ बनाकर उनके साथ न्याय करने की बड़ी जिम्मेदारी है।

जमीनी स्तर पर इस आंदोलन से जुड़ी पुष्पा ने कहा कि देश मे फ्री राशन, फ्री पानी आदि केवल राजनीतिक बातें है है l सरकारें ऐसा ऐजेंडा चला कर लोगों से केवल वोट बटोरना चाहती है l इससे देश आगे नही जा रहा बल्कि जनता को भिखारी बनता जा रहा है l हमें फ्री नहीं चाहिए हमें काम चाहिए जिससे हम स्वं अपनी जरूरत का सामान खरीद सके, इसलिए एक वोट एक रोजगार लोगों कि जरूरत है l

आंदोलन का समर्थन कर रहे विकास सैनी का मानना है कि एक वोट एक रोजगार कानून नहीं तो वोट भी नहीं, प्रत्येक मतदाता यह कसम खाएगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व ऐडहॉक प्रोफेसर अशोक कुमार जिन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में चल रहे इंटरव्यू में निकाल दिया गया उनका कहना है कि भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिसका मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में खुद शिकार हुआ हूं, इसलिए भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना बहुत जरूरी है ताकि एक वोट एक रोजगार का सपना साकार हो सके।

सामाजिक सरोकारों से जुड़े और इस आदोलन को समर्थन कर रहे जतिन भल्ला का मानना है कि भारत युवाओं का देश है पर जब तक हम इन सब युवाओं को कोई काम नहीं देंगे, कोई रोजगार नहीं देंगे तब तक यह युवा आबादी हमारे लिए एक वरदान ना बनकर एक बोझ बन कर रह जाएगी।

“एक वोट एक रोजगार आंदोलन” की बेरोजगारी संकट को दूर करने के लिए अधोलिखित पांच सूत्रीय मांग है…..

1- रोज़गार क़ानून ताकि बेरोज़गार होने पर नेता जी के आफिस नहीं बल्कि कोर्ट जाएं।

2- न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी एवं समान काम का समान वेतन।

3- सभी ख़ाली सरकारी पदों को तुरंत भरा जाए, संविदा प्रणाली समाप्त हो, यदि खाली पदों पर कर्मचारियों की संविदा पर नियुक्त हुई हो, तो उन कर्मचारियों को वहीं स्थायी किया जाए।

4- सभी गाँव एवं मोहल्ला में एक रोज़गार कार्यालय।

5- सभी बुजुर्गों को न्यूनतम मज़दूरी का आधा पेंशन।

आंदोलन को समर्थन कर रहे विकास सैनी ने बताया कि देश का अर्थ देश में रहने वाले वाला प्रत्येक नागरिक को सुखी और संपन्न बनाने के लिए यह कानून एक वोट एक रोजगार कानून बनना बहुत जरूरी है। इस कानून को केंद्र सरकार व सभी राज्य की सरकार को स्वयं आगे आकर बिना समय गवाएं इस कानून को बनाना चाहिए।

प्रेस कांफ्रेंस में प्रवीण काशी, डॉ. संत प्रकाश, पुष्पा, माही सिंह, जतिन भल्ला, विकास सैनी, शशांक यादव, मंजीत, अशोक कुमार, हरपाल सिंह आदित्य, मोहित सिंह समेत अनेकों संगठनों के लोगों और बुद्धिजीवी लोगों ने शिरकत किया.



Related