अदालत में दाखिल हुई मुस्लिम विवाह विघटन कानून में महिलाओं से भेदभाव के दावे वाली याचिका

नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल कर मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम के एक प्रावधान को चुनौती दी गयी है और दावा किया गया है कि यह मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ भेदभाव वाला है क्योंकि यह कथित तौर पर इस्लाम छोड़ने या धर्मांतरण करने पर पति को तो शादी तोड़ने की इजाजत देता है, लेकिन पत्नी ऐसा करे तो अनुमति नहीं देता।

दिल्ली निवासी तूबा कामिल और हरी मुद्गल ने याचिका दाखिल कर कानून की धारा 4 को चुनौती दी है और दलील दी है कि पत्नी धर्म बदलने के आधार पर तलाक का दावा नहीं कर सकती बल्कि उसे पहले कानून की धारा 2 के तहत दिये गये नौ आधार में से किसी एक को साबित करना होगा। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष बुधवार को याचिका सुनवाई के लिए आई जिसने कहा कि मामले के गुण-दोषों को देखने से पहले वह दूसरे याचिकाकर्ता हरी मुद्गल की नीयत को समझना चाहेगी क्योंकि इसी पीठ के समक्ष उनकी एक अन्य याचिका में नाम हरी किशन है।

दूसरी याचिका पर सुनवाई के दौरान दूसरे याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया था कि वह सशस्त्र बल कर्मी हैं। मौजूदा याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने दो नाम, सैन्यबल के परिचय पत्र और वर्तमान में अवकाश पर होने जैसे कई सवाल उठाए। सुनवाई के दौरान व्यक्ति ने अपना सैन्य परिचय पत्र दिखाया और कहा कि वह 27 जुलाई से 26 अगस्त तक अवकाश पर है। याचिकाकर्ता ने बताया कि उनका आधिकारिक नाम हरी किशन है और हरि मुद्गल का उल्लेख एक ‘लिपकीय त्रुटि’ है।

हालांकि पीठ ने मौखिक जानकारियों को स्वीकार नहीं किया और याचिकाकर्ता को एक हलफनामे के साथ सबकुछ रिकार्ड पर लाने को कहा। इनमें परिचय पत्र भी शामिल हैं। साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई 15 सितंबर के लिए तय की। अदालत ने कहा कि वह उनकी नीयत का पता चलने के बाद ही मामले में सुनवाई करेगी।

First Published on: August 19, 2020 8:12 PM
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