रविवार की कविता : उन्मादी चावल…

दिनेश कुशभुवनपुरी (दिनेश कुमार पाण्डेय) का जन्म चाँदपुर-बरौंसा, सुल्तानपुर (उ.प्र.) में हुआ। बी.एस. सी.(कृषि), एम.बी.ए.(मार्केटिंग) करने के बाद मैसर्स कवच हाइब्रिड सीड्स में स्व बीज व्यवसायी के रूप में वाराणसी में कार्यरत हैं और साहित्य साधना में भी रत हैं। प्रकाशित रचनाएँ- उत्कर्ष काव्य संग्रह, (साझा कविता संकलन), गीतिकालोक-2 (साझा गीतिका संकलन), कुंडलिनी लोक (साझा कुंडलिनी छंद संकलन) विहग प्रीति के (साझा मुक्तक संकलन), नेह के महावर( साझा गीत/नवगीत संकलन), शब्दों के इंद्रधनुष(साझा गीत संकलन), शब्द साधना(साझा गीत संकलन -हिंदुस्तान भाषा अकादमी), करुणावती साहित्य धारा त्रैमासिक पत्रिका में नियमित लेखन एवं कई प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। सम्मान- युवा उत्कर्ष साहित्य मंच दिल्ली द्वारा “साहित्य श्री” सम्मान, कवितलोक मंच लखनऊ द्वारा “गीतिका श्री” सम्मान, करुणावती साहित्य धारा इलाहाबाद द्वारा “करुणावती साहित्य धारा सम्मान”, साहित्य प्रोत्साहन संस्थान मनकापुर, गोंडा द्वारा “काव्य किरीट” सम्मान, शुभांजलि प्रकाशन कानपुर द्वारा “ रचना सम्मान” कवितलोक मंच लखनऊ द्वारा "कुण्डलिनी रत्न" सम्मान, कवितालोक मंच लखनऊ द्वारा "काव्य गंगोत्री" सम्मान, साहित्य समीर दस्तक मंच द्वारा "साहित्य गौरव सम्मान", कवितालोक संस्थान द्वारा "साहित्य-सुधाकर"" सम्मान, कवितालोक त्रिशतकीय महाकुम्भ विजनौर द्वारा "कवितालोक आदित्य सम्मान" कवितालोक द्वारा "गीतिकादित्य सम्मान एवं हिंदुस्तानी भाषा अकादमी नई दिल्ली द्वारा " हिदुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान"।

मन का जुगनू अंधियारे में,
ढूंढ रहा काजल।
अंगारों पर बैठी बूंदे,
चाह रहीं बादल॥

मँहगाई नित नर्तन करके,
अंग अंग तोड़े।
भ्रष्टाचार निरंकुश होकर,
बरसाये कोड़े॥

दरवाजे पर खड़ी समस्या,
खड़काये सांकल।

बिना ताल बज रही व्यथाएँ,
उजड़े आँगन में।
निर्विकार भोली आशाएँ,
डूबीं क्रंदन में॥

तड़प तड़पकर कहे कहानी,
फटा हुआ आँचल।

थाली और कटोरी भागे,
नग्न पाँव घर से॥
लाचारी का तवा आजकल,
रोटी को तरसे।

नया पतीला ढूँढ़ रहा है,
उन्मादी चावल।

First Published on: June 6, 2021 9:58 AM
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