न्यायालय ने मप्र में विधायकों के खिलाफ अयोग्यता कार्यवाही को लेकर याचिका का निबटारा किया


सिब्बल ने अयोग्यता के मामले की सुनवाई में विलंब पर अपनी नाराजगी जाहिर की और कहा, ‘‘मार्च से लेकर नवंबर तक विलंब ने इस मामले को निरर्थक बना दिया है।’’


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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने और फिर मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान नीत सरकार में मंत्री बनने वाले कुछ विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही लंबित होने का मुद्दा उठाकर दायर याचिका का निबटारा कर दिया, जब उसे बताया गया कि मामला निरर्थक हो गया है क्योंकि राज्य में उपचुनाव हो गए हैं।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ को याचिकाकर्ता कांग्रेस के विधायक विनय सक्सेना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने विधानसभा की 28 सीटों के लिये मंगलवार को हुये उपचुनाव के बारे में बताया।

सिब्बल ने अयोग्यता के मामले की सुनवाई में विलंब पर अपनी नाराजगी जाहिर की और कहा, ‘‘मार्च से लेकर नवंबर तक विलंब ने इस मामले को निरर्थक बना दिया है।’’

उन्होंने पीठ से कहा कि इस तरह के मामलों की सुनवाई स्थगित होती है और अंतत: ये निरर्थक हो जाते हैं। तमिलनाडु और गोवा के भी इसी तरह के मामलों की महीनों सुनवाई नहीं हुयी थी।

सिब्बल ने कहा कि तमिलनाडु का मामला करीब साढ़े तीन साल से लटका हुआ है और अंतत: यह भी निरर्थक हो जायेगा।

पीठ ने कहा, ‘‘लेकिन जवाब दाखिल करने या ऐसे ही दूसरी वजहों से अनुरोध पर सुनवाई स्थगित होती है। हम भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे।’’

न्यायालय ने 22 सितंबर को मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष से कहा था कि वह बतायें कि सत्तारूढ़ भाजपा के खेमे में शामिल होने वाले कांग्रेस के 22 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता के लिये दायर याचिकाओं पर कब तक फैसला लिया जायेगा।

पीठ ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष को सिर्फ यह वक्तव्य देना है कि इन आवेदनों पर कब फैसला लिया जायेगा।

इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने कहा कि इन सदस्यों को अयोग्य घोषित करने के लिये अध्यक्ष के पास 12 मार्च से ये याचिकायें लंबित हैं।

शीर्ष अदालत ने 17 अगस्त को सक्सेना की याचिका पर विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय से जवाब मांगा था। सक्सेना की दलील थी कि भाजपा में शामिल होने के लिये इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के विधायकों को उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिये दायर याचिकायें लंबित होने के दौरान शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता है।

याचिका में मणिपुर मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया गया जिसमें कहा गया था कि अयोग्यता संबंधी कार्यवाही पर अध्यक्ष को तीन महीने के भीतर निर्णय करना होगा।

ये याचिकायें लंबित होने के दौरान ही भाजपा में शामिल होने वाले कांग्रेस के 22 में से 12 विधायको को राज्य सरकार में मंत्री बना दिया गया था।