यौन हिंसा के मामलों में आरोपी को पीड़ित से ‘राखी’ बंधवाने का आदेश सिर्फ ड्रामा है : अटार्नी जनरल

वेणुगोपाल यौन उत्पीड़न के एक मामले में आरोपी को कथित पीड़िता से ‘राखी’ बांधने का अनुरोध करने की शर्त पर जमानत दिये जाने के मप्र उच्च न्यायालय के 30 जुलाई के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के दौरान दलीलें पेश कर रहे थे।

नई दिल्ली। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि यौन हिंसा के मामलों में आरोपी को पीड़ित से ‘राखी’ बंधवाने का आदेश सिर्फ ड्रामा है। अटार्नी जनरल ने न्यायाधीशों को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाने और जमानत की शर्ते निर्धारित करते समय तथ्यों पर केन्द्रित रहने की आवश्यकता पर जोर दिया।

वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ से कहा कि न्यायाधीशों में लैंगिक संवेदनशीलता होनी चाहिए तो पीठ ने कहा, ‘‘लैंगिक संवेदनशीलता हमारे आदेश का हिस्सा होगी।’’

वेणुगोपाल यौन उत्पीड़न के एक मामले में आरोपी को कथित पीड़िता से ‘राखी’ बांधने का अनुरोध करने की शर्त पर जमानत दिये जाने के मप्र उच्च न्यायालय के 30 जुलाई के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के दौरान दलीलें पेश कर रहे थे।

अटार्नी जनरल ने पीठ से कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और राज्य अकादमियों को इस बारे में शिक्षा देनी चाहिए कि इसकी इजाजत नहीं है। न्यायाधीश भर्ती परीक्षा में भी लैंगिक संवेदनशीलता के बारे में एक हिस्सा होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘यौन हिंसा के मामलों के आदेशों में आरोपी से यह कहना कि वह पीड़ित से राखी बंधवाये ड्रामा है।’’ उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को पेश मामले के तथ्यों पर केन्द्रित रहने की आवश्यकता है।

मप्र उच्च न्यायालय के 30 जुलाई के आदेश के खिलाफ नौ महिला अधिवक्ताओं ने यह अपील दायर कर इस पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। इस अपील में कहा गया है कि देश भर की अदालतों को इस तरह की शर्ते लगाने से रोका जाना चाहिए क्योकि यह कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में आरोपी को जमानत देते हुये यह शर्त लगायी थी कि वह अपनी पत्नी के साथ पीड़ित के घर जायेगा और उससे अपने हाथ पर राखी बंधवानें का अनुरोध करते हुये हमेशा उसकी सुरक्षा करने का वायदा करेगा।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्मय से इस मामले की सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल ने उच्च न्यायालय के आदेश का जिक्र किया और कहा, ‘‘जहां तक पेश मामले का संबंध है तो ऐसा लगता है कि वे भावावेष में आ गये। पहले से ही इस बारे में न्यायालय के फैसले हैं कि न्यायाधीशों को पेश मामले, विशेषकर जमानत की शर्तो के बारे मे, खुद को तथ्यों तक सीमित रखना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘न्यायिक अकादमी में शीर्ष अदालत के फैसले पढ़ाये जाने चाहिएं और उन्हें निचली अदालतों तथा उच्च न्यायालयों के समक्ष रखा जाना चाहिए ताकि न्यायाधीशों को पता रहे कि क्या करने की आवश्कता है।’’

पीठ ने अटार्नी जनरल से कहा कि क्या वह इस बारे में एक संक्षिप्त नोट दे सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘जमानत की शर्तो में विवेकाधिकार में यह देखने की आवश्यकता है कि किस बात की अनुमति है और किसकी नहीं है। यह काम करने का एक तरीका है। फैसले में हम कह सकते हैं कि क्या करने की आवश्यकता है।’’

अधिवक्ता अपर्णा भट सहित याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि अटार्नी जनरल के सुझाव के अनुरूप वे अपना नोट दे सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘एक नोट दीजिये कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं। अटार्नी जनरल, याचिकाकर्ता और हस्तक्षेप के आवेदनकर्ता नोट दाखिल कर सकते हैं। इसे तीन सप्ताह बाद 27 नवंबर को सूचीबद्ध किया जाये।

न्यायालय ने 16 अक्टूबर को अटॉर्नी जनरल से इस मामले में सहयोग करने का अनुरोध किया था जिसमे छेड़छाड़ के एक मामले में आरोपी को शिकायकर्ता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत दिये जाने के मप्र उच्च न्यायालय के 30 जुलाई के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में कहा गया था कि देश भर की अदालतों पर इस प्रकार की शर्तें लगाने पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि यह ‘‘कानून के सिद्धांतों के खिलाफ’’ हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने पीठ को बताया कि याचिका ‘‘अभूतपूर्व परिस्थितियों’’ में दाखिल की गई हैं। पारिख ने पीठ से कहा था,‘‘ इस प्रकार की शर्तों से पीड़ित की परेशानी महत्वहीन बन जाती है।’’

First Published on: November 2, 2020 7:23 PM
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