नई दिल्ली। स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की आज पुण्य तिथि है। 1966 में आज ही के दिन उनका निधन हुआ था। सावरकर 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी रहे। विनायक दामोदर सावरकर को बचपन से ही हिन्दू शब्द से बेहद लगाव था। सावरकर ने जीवन भर हिन्दुस्तान के लिए ही काम किया। सावरकर को 6 बार अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। 1937 में उन्हें हिंदू महासभा का अध्यक्ष चुना गया, जिसके बाद 1938 में हिंदू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया।
हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। उनकी इस विचारधारा के कारण आजादी के बाद की सरकारों ने उन्हें वह महत्त्व नहीं दिया जिसके वे वास्तविक हकदार थे।
उन्हें वीर सावरकर के नाम से संबोधित किया जाता है। सावरकर क्रान्तिकारी, चिन्तक, लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता थे। विनायक सावरकर का जन्म नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई और पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। उनका बचपन आर्थिक तंगी में बीता। सावरकर को लेकर देश के लोग दो वर्गों में विभाजित हैं। कई लोग उन्हें देश भक्त मानते हैं तो कई लोगों में उनकी छवि इसके बिल्कुल विपरीत है।
वीर सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ था। जब उनका निधन हुआ, उस समय वह 82 साल के थे। आम तौर पर माना जाता है कि उन्होंने खुद अपने लिए इच्छामृत्यु चुनी थी। कहा जाता है कि काला पानी की सजा ने उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डाला था। जिसके बाद उन्होंने खुद के लिए इच्छामृत्यु का रास्ता चुना। दरअसल वह इसे स्व बलिदान बताते थे।
ऐसा माना जाता है कि वीर सावरकर ने खुद अपने लिए इच्छा मृत्यु जैसी स्थिति चुनी थी। अपनी मृत्यु से करीब एक महीने पहले से उन्होंने उपवास करना शुरू कर दिया था। माना जाता है कि इसी उपवास के कारण उनका शरीर कमजोर होता गया और फिर 82 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया।
सावरकर एक महान समाज सुधारक भी थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। उनके समय में समाज बहुत सी कुरीतियों और बेड़ियों के बंधनों में जकड़ा हुआ था। इस कारण हिन्दू समाज बहुत ही दुर्बल हो गया था। अपने भाषणों, लेखों व कृत्यों से इन्होंने समाज सुधार के निरंतर प्रयास किए। हालांकि यह भी सत्य है, कि सावरकर ने सामाजिक कार्यों में तब ध्यान लगाया, जब उन्हें राजनीतिक कलापों से निषेध कर दिया गया था। किन्तु उनका समाज सुधार जीवन पर्यन्त चला।