मुस्लिम संगठन क्यों कर रहे हैं UCC का विरोध, इससे कैसे उनकी शादी और तलाक पर पड़ेगा असर?

शरियत के मुताबिक मुस्लिम कई शादियां कर सकते हैं, लेकिन उत्तराखंड में पेश किए गए यूसीसी बिल के अनुसार मुस्लिम भी बिना तलाक दिए एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकेंगे। तलाक के लिए सबके लिए समान कानून होगा।

नई दिल्ली। समान नागरिक संहिता (UCC) का मुद्दा देश में एक बार फिर से गरमा गया है। उत्तराखंड की बीजेपी सरकार इसे अपने राज्य में लागू करना चाहती है। इस मामले में पहला कदम उठाते हुए उसने यूसीसी से संबंधित बिल अपने यहां पेश कर दिया है। अगर सब कुछ ठीक रहता है तो ये बिल उत्तराखंड में कानून बन जाएगा। बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार भी इसे लेकर अपने इरादे जाहिर कर चुकी है। विधि आयोग ने पिछले साल यूसीसी पर विभिन्न पक्षों से 30 दिनों के अंदर राय देने को कहा था। अगर उत्तराखंड में यूसीसी लागू हो जाता है तो बीजेपी शासित कई राज्य इसे लागू कर सकते हैं।

शरियत के मुताबिक मुस्लिम कई शादियां कर सकते हैं, लेकिन उत्तराखंड में पेश किए गए यूसीसी बिल के अनुसार मुस्लिम भी बिना तलाक दिए एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकेंगे। तलाक के लिए सबके लिए समान कानून होगा। शरियत के मुताबिक लड़की की शादी की उम्र माहवारी की शुरुआत को माना जाता है। लेकिन यूसीसी में लड़की की शादी की उम्र 18 साल है। अभी तक कोई भी मुस्लिम शख्स बच्चे को गोद ले सकता था, लेकिन यूसीसी में इसे लेकर भी बदलाव किया गया है। यूसीसी बिल में तलाक को लेकर स्थिति साफ की गई है। तलाक के लिए पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार दिया गया है। मुस्लिमों में तीन तलाक, हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं पर इस कानून के लागू होने के बाद पूरी तरह से रोक लग जाएगी।

मुस्लिम संगठनों ने आलोचना की
द क्विंट की एक रिपोर्ट के अनुसार जैसे जैसे यूसीसी को लेकर सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं, विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने इस प्रस्ताव की आलोचना की है। मुस्लिम संगठनों ने इसे अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन माना है। हालांकि हर संगठन यूसीसी का विरोध करने के लिए अलग-अलग तर्कों का सहारा ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों एक रैली में अपने भाषण में यूसीसी का मुद्दा उठाकर इसे ताजा हवा दे दी। उन्होंने सवाल किया, “हमारे देश में अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कानून कैसे हो सकते हैं?”

कहा- हिंदू- मुस्लिम एकता को नुकसान
विधि आयोग ने पिछले महीने एक प्रेस विज्ञप्ति में यूसीसी के कार्यान्वयन के बारे में राजनीतिक दलों के साथ-साथ धार्मिक और सामाजिक समूहों की राय आमंत्रित की थी, जिसे लेकर तूफान खड़ा हो गया था। ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड (IAMPLB) ने तर्क दिया है कि यूसीसी भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन होगा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद (JIH) ने कहा है कि यूसीसी हिंदू- मुस्लिम एकता को नुकसान पहुंचाएगा। देश में मुस्लिम संबंधों और केरल में मुस्लिम संगठनों ने इस कदम के पीछे राजनीतिक पूर्वाग्रहों पर सवाल उठाया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जेआईएच), जो अतीत में यूसीसी के खिलाफ मुखर रहा है, अब तक इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाने को तैयार नहीं दिख रहा है।

 एआईएमपीएलबी ने व्यक्त की अपनी राय
एआईएमपीएलबी ने पिछले साल विधि आयोग को अपनी राय से अवगत करा दिया था। शुरुआत में एआईएमपीएलबी ने विधि आयोग के नोटिस को, ‘अस्पष्ट और बहुत सामान्य’ बताया। एआईएमपीएलबी ने कहा था, आमंत्रिंत किए जाने वाले सुझाव की शर्ते गायब हैं। ऐसा लगता है कि जनमत संग्रह के लिए इतना बड़ा मुद्दा पब्लिक डोमेन में लाया गया है कि क्या आम जनता की प्रतिक्रिया भी समान रूप से अस्पष्ट शब्दों में या हां या नहीं में आयोग तक पहुंचती है। अनुच्छेद 25 (धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास और प्रसार का अधिकार) और अनुच्छेद 26 (धर्म के मामलों में स्वयं के मामलों को प्रबंधन करने का अधिकार) के अलावा,  एआईएमपीएलबी ने यह भी कहा है कि यह अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा) के भी खिलाफ है।

‘यूसीसी गलत… लेकिन सड़कों पर ना उतरें’
इस बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जेआईएच) अध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा है कि यूसीसी मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है। अरशद मदनी ने कहा, “यह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने के लिए किया जा रहा है। वे यह मैसेज देना चाहते हैं कि हम मुसलमानों के लिए वह करने में सक्षम हैं जो आजादी के बाद से कोई सरकार नहीं कर पाई।” उऩ्होंने कहा, “मुसलमानों को इसका विरोध करने के लिए सड़कों पर नहीं उतरना चाहिए।” मदनी ने पिछले कानून आयोग की रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसने यूसीसी को इस स्तर पर ना तो जरूरी और ना ही वांछनीय कहकर साफ तौर पर खारिज कर दिया था।
इसके विपरीत, जेआईएच ने इस मुद्दे पर अपेक्षाकृत चुप्पी साध रखी है।

 2018 की रिपोर्ट का किया था स्वागत
2018 में, जेआईएच ने कानून आयोग की रिपोर्ट का स्वागत किया था  उस समय जेआईएच के महासचिव मुहम्मद सलीम इंजीनियर ने था, “हम विधि आयोग के इस दावे का स्वागत करते हैं कि समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है। हालांकि, हम पैनल द्वारा सुझाए गए पर्सनल लॉ में किसी भी बदलाव और सुधार के पक्ष में नहीं हैं।” सूत्रों ने कहा कि संस्था इस मुद्दे पर आगे बढ़ने से पहले इंतजार करना चाहती है, क्योंकि अभी तक कोई ब्लूप्रिंट या ड्राफ्ट प्रस्तावित नहीं किया गया है। इसके अलावा, यह देखते हुए कि कई आदिवासी संगठनों ने भी यूसीसी को किसी भी रूप में स्वीकार करने से मना कर दिया है। इससे मुस्लिम संगठनों को उम्मीद है कि यह संभवतः प्रस्ताव को पटरी से उतारने का काम भी कर सकता है।

राजनीतिक दलों ने भी की मुखालफत
इस बीच, राजनीतिक दलों ने भी हमले की अधिक राजनीतिक लाइन अपनाते हुए यूसीसी के प्रति अपना विरोध शुरू कर दिया है। उन्होंने सवाल उठाया है, ‘हिंदू अविभाजित परिवार’ अधिनियम के बारे में क्या?” इस पर पीएम मोदी पर हमला करते हुए एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने लिखा, “क्या पीएम “हिंदू अविभाजित परिवार” को खत्म कर देंगे? एचयूएफ की वजह से देश को हर साल 3064 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।’

केरल में भी विरोध के सुर
द प्रिंट के अनुसार केरल में, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने पिछले दिनों विभिन्न गैर-राजनीतिक मुस्लिम समूहों की एक बैठक का नेतृत्व किया, जिसमें यूसीसी पर राय व्यक्त की गई। बैठक में शामिल मुस्लिम निकायों में समस्त केरल जमियथुल उलमा, केरल नदवथुल मुजाहिदीन, मुस्लिम एजुकेशन सोसाइटी और मुस्लिम सर्विस सोसाइटी शामिल थे। आईयूएमएल के प्रदेश अध्यक्ष पनक्कड़ सैय्यद सादिक अली शिहाब थंगल ने कहा, “यूसीसी मुसलमानों का मुद्दा नहीं है, यह सभी लोगों का मुद्दा है। हम इसके खिलाफ सभी लोगों को एकजुट करेंगे और कानूनी और राजनीतिक रूप से लड़ेंगे।”

First Published on: February 7, 2024 11:34 AM
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