नई दिल्ली। कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं, पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों और कांग्रेस की विभिन्न इकाइयों के लगभग 300 पदाधिकारियों की सहमति वाले पत्र ने पार्टी के अंदर आमूल-चूल परिवर्तन की मांग की है। संसदीय राजनीति में विषम परिस्थितियों का सामना कर रही कांग्रेस और गांधी-नेहरू परिवार के सामने एक और संकट आ गया है। कांग्रेस के उक्त नेताओं ने संगठन को चुस्त दुरूस्त करने की मांग की है। पत्र के बाद कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों से पार्टी का नया मुखिया ढूंढ लेने की बात कही है। और खुद अध्यक्ष पद से हट जाने की इच्छा जाहिर की है। कल यानी सोमवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की अहम बैठक होनी है। माना जा रहा है कि इसी बैठक में नए अध्यक्ष पर फैसला संभव है। मीटिंग सुबह 11 बजे होगी।
हालांकि पार्टी नेताओं ने सोनिया को जो पत्र लिखा है, उसके भीतर क्या है पता नहीं चला है। लेकिन इस पहल ने पार्टी के अंदर सत्ता संघर्ष को तेज कर दिया है। कल तक पार्टी के अंदर सोनिया गांधी से दूरी बनाए कई नेता उनके समर्थन में खड़े हो गए हैं। कल कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है। जिसमें पार्टी के बदलाव करने के बारे में चर्चा होगी। ‘द हिंदू’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने इस मुद्दे पर बात करने के लिए एक आपातकालीन बैठक की है। इस बात ज्यादातर राज्यों की इकाइयों के गांधी के समर्थन में होने की उम्मीद है।
संगठन में बदलाव नहीं अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंता
सोनिया गांधी को पत्र लिख कर नेतृत्व और कार्यशैली में बदलाव की मांग करने वाले नेताओं का इरादा क्या है? यह समझना ज्यादा महत्वपूर्ण है। लोकसभा चुनाव-2019 में पार्टी की करारी शिकस्त की जिम्मेवारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था। और गांधी-नेहरू परिवार के बाहर के किसी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष चुनने की सलाह ही थी। लेकिन सवाल यह है कि तब हर किसी ने अध्यक्ष पद सोनिया गांधी पार्टी से स्वीकार करने का आग्रह किया था।
दरअसल, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को संगठन की नहीं अपने भविष्य को लेकर चिंता है। ऐसे नेता यह नहीं चाहते कि पार्टी के अंदर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नेतृत्व में जमीनी कार्यकर्ता संघर्ष कर कांग्रेस को पुनर्जीवित करें। राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस के उक्त नेताओं को लगा था कि सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद उत्तर प्रदेश,बिहार और अन्य राज्यों में भाजपा सरकार से संघर्ष कर रही युवाओं की टोली दरकिनार हो जायेगी और एक बार पार्टी में ड्राइंग रूम पॉलिट्क्स शुरू होगा। लेकिन सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद भी प्रियंका के नेतृत्व में कार्यकर्ता संघर्ष करते रहे।
पार्टी के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार- “पत्र लिखने वाले अधिकांश नेता 75 के पार या उसके करीब हैं। उनको डर है कि यदि पार्टी के अंदर संघर्ष करने वाले युवा नेता एक बार स्थापित हो गये तो फिर उन्हें क्या उनके वंशजों को भी पार्टी में कुछ नहीं मिलेगा। ऐसे में इस विषम परिस्थितियों में सोनिया गांधी पर दबाव की राजनीति बना कर अपना राज्यसभा सीट और पद सुरक्षित रखने की चाल चली गई है।”
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने एक बयान में कहा है कि-
“मौजूदा समय में कांग्रेस में कोई दूसरा नेता पार्टी को एक मजबूत नेतृत्व नहीं दे सकता है”। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी को बांटने या फिर अपदस्थ करने की कोई भी कोशिश तानाशाह ताकतों को फायदा पहुंचाएगी। दूसरे जो नेता गांधी का समर्थन कर रहे हैं उनका पत्र के बारे में कहना है कि निजी हित पार्टी के हितों पर भारी पड़ रहे हैं। और इसी बात ने इस पत्र को लिखने की उन्हें प्रेरणा दी।
गांधी के प्रति समर्पित एक नेता ने कहा कि “आजाद का राज्यसभा कार्यकाल अगले साल की शुरुआत में खत्म हो रहा है। और वह अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उसी तरह से लोकसभा के सांसद इस बात को लेकर नाराज हैं कि उनको बाई पास कर पार्टी नेताओं के पदों को तवज्जो दिया जाता है। ”
पत्र में उठाए गए कुछ बिंदुओं को मनीष तिवारी और शशि थरूर सार्वजनिक तरीके से जाहिर कर चुके हैं। 2 अगस्त को दि हिंदू को दिए एक साक्षात्कार में तिवारी से जब पूछा गया कि क्या चीज पार्टी को पुनर्जीवित कर सकती है तो उन्होंने कहा कि “एक पूर्णकालिक अध्यक्ष जिसे संविधान (पार्टी) के आर्टिकिल 18 (एच) के हिसाब से एआईसीसी द्वारा चुना गया हो।”
आगे उन्होंने कहा कि “विकल्प हैं: (ए) राहुल गांधी अपना इस्तीफा वापस ले सकते हैं। (बी) अगर वह किन्हीं कारणों से हिचकते हैं तो उसके बाद श्रीमती सोनिया गांधी को जारी रहने के लिए मनाया जाना चाहिए उनके इस काम को न करने की ज्ञात इच्छा के बावजूद। (सी) अगर दोनों चीजें नहीं हो पातीं तो फिर अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होना चाहिए।”
तिवारी ने कहा कि “सीडब्ल्यूसी में चुने जाने वाले पदों को चुनाव के जरिये ही भरा जाना चाहिए। कांग्रेस संसदीय समिति को फिर से जिंदा किया जाना चाहिए। पिछले सालों की तरह एआईसीसी का सत्र दो साल में एक बार होना ही चाहिए। और आंतरिक चुनावों को बाहर से सुवरवाइज किया जाना चाहिए जैसा कि आईवाईसी में हुआ। हालांकि जो चीज सबसे महत्वपूर्ण है वह यह कि आगे बढ़ने के लिए वैचारिक और रणनीतिक स्पष्टता बहुत जरूरी है।”
इस बीच कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा- सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की खबरें गलत हैं।
सोनिया गांधी को लिखे चिट्ठी में क्या है?
इस बात का जिक्र है कि भाजपा लगातार आगे बढ़ रही है, पिछले चुनावों में युवाओं ने डटकर नरेंद्र मोदी को वोट दिए। कांग्रेस का बेस कम होने और युवाओं का आत्मविश्वास टूटने को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है। बताया जा रहा है कि करीब 15 दिन पहले भेजी गई इस चिट्ठी में बदलाव का ऐसा एजेंडा दिया गया है, जिसकी बातें मौजूदा लीडरशिप को चुभ सकती हैं। पत्न में इन 3 मांगों का जिक्र है।
1. लीडरशिप फुल टाइम (पूर्णकालिक) और प्रभावी हो, जो कि फील्ड में एक्टिव रहे। उसका असर भी दिखे।
2. कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव करवाए जाएं।
3. इंस्टीट्यूशनल लीडरशिप मैकेनिज्म तुरंत बने, ताकि पार्टी में फिर से जोश भरने के लिए गाइडेंस मिल सके।
राहुल को अध्यक्ष बनाने के लिए उठी आवाज
बताया जा रहा है कि पार्टी का एक गुट राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाना चाहता है। पार्टी ने भी 2 दिन पहले मीडिया ब्रीफिंग में कहा था कि देशभर के कार्यकर्ता राहुल को अध्यक्ष के तौर पर देखना चाहते हैं। इस बीच छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने भी राहुल गांधी को पत्र लिखा है। उन्होंने पत्र में राहुल से पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने की अपील की है। महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष बाला साहेब थ्रोट ने भी राहुल गांधी को दोबारा अध्यक्ष बनाए जाने की मांग की। असम कांग्रेस के अध्यक्ष रिपून बोरा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस की कमान सौंपने की मांग की है। उन्होंने पत्र में लिखा कि राहुल के नेतृत्व में ही कांग्रेस भाजपा और संघ के विचारों के खिलाफ अच्छी लड़ाई लड़ सकती है।
कांग्रेस नेताओं का पत्र दुर्भाग्यपूर्ण : अशोक गहलोत
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को कहा कि, “गांधी परिवार ने पार्टी को एकजुट रखा है और पार्टी नेतृत्व को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिखा गया पत्र एक दुर्भाग्यपूर्ण कदम है। उन नेताओं ने पार्टी के साथ लंबे समय तक काम किया है और उनसे यह उम्मीद नहीं थी जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने ऐसा पत्र लिखा है।”
‘‘वह 1998 में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में पार्टी अध्यक्ष बनीं और पार्टी की रक्षक बनी रही हैं। आज स्वास्थ्य ठीक नहीं होने बावजूद उन्होंने ‘कांग्रेस कुनबा’ (पार्टी) को एक जुट बनाये रखा है। क्या यह कम बात है? लोकतंत्र अभी खतरे में है और लोकतंत्र को बचाना एक चुनौती है इसलिये हमलोगों को पीछे नहीं हटना चाहिए। गांधी परिवार ने पार्टी को एकजुट रखा है और इस संकट की घड़ी में हमें उनकी जरूरत है।’’
कांग्रेस नेताओं का पत्र भाजपा की ‘संगठित चाल’ : केके तिवारी
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केके तिवारी ने रविवार को कहा कि नेतृत्व परिवर्तन और संगठन में ऊपर से नीचे तक बदलाव करने की मांग करते हुए पार्टी के कुछ नेताओं की ओर से लिखा गया पत्र भाजपा की ‘‘संगठित चाल’’ है। साथ ही, यह भगवा पार्टी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के एजेंडा को आगे बढ़ाता है।
राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे तिवारी ने कहा कि पार्टी के नेताओं द्वारा उठाये गये इस मुद्दे की गंभीर छानबीन किये जाने की जरूरत है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि गांधी परिवार को पार्टी की बागडोर अपने पास रखनी चाहिए, अन्यथा यह बिखर जाएगी। पूर्व मंत्री ने कहा कि-
जिन कांग्रेस नेताओं ने यह पत्र लिखा है वे कभी चुनाव नहीं लड़े हैं और वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बिछाये जाल में फंस गये हैं। जिन नेताओं ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं उन्होंने दशकों तक नेहरू-गांधी परिवार के संरक्षण का लाभ उठाया है और वे लोग वर्षों तक फले फूले हैं क्योंकि उन्होंने पार्टी से बाहर अपना खुद का साम्राज्य बना लिया।
उन्होंने कहा, ‘‘वे लोग भाजपा के जाल में फंस गये और भाजपा-आरएसएस के इस दुष्प्रचार में सहयोग कर रहे हैं कि कांग्रेस खत्म हो गई है। वे भाजपा के सहयोगी हैं। वे उस खतरे को महसूस नहीं कर रहे हैं, जो भाजपा-आरएसएस ने देश में लोकतंत्र बने रहने के लिये और इसकी एकता एवं अखंडता के समक्ष पेश किये हैं।’’