पुस्तकें मनुष्य बने रहने का नज़रिया और साहस देती हैं-आशुतोष अग्निहोत्री


कुमुद शर्मा ने कहा कि गीता और रामचरितमानस भारत की सामूहिक चेतना का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन भी एक किताब होता है जिसको पढ़कर भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। किताबें हमें रास्ता दिखाती हैं क्योंकि हमारे यहाँ ज्ञान को तीसरी आँख कहा गया है। कार्यक्रम का संचालन संपादक (हिंदी) अनुपम तिवारी ने किया।


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साहित्य Updated On :

नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी ने विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर एक परिसंवाद का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न क्षेत्रों और अनुशासनों में कार्यरत प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया था। परिसंवाद का शीर्षक था, पुस्तक, जिसने बदल दिया मेरा जीवन । इस परिसंवाद की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने की। इसके प्रतिभागी थे- लेखक एवं प्रशासक आशुतोष अग्निहोत्री, दार्शनिक एवं नाट्यशास्त्रविद भरत गुप्त, चित्रकार हेमराज, ओडिसी नृत्यांगना एवं कवयित्री जया मेहता, लेखक एवं कार्टूनिस्ट माधव जोशी, लेखक एवं शिक्षाविद सुधीश पचौरी, ध्रुपद गायक उदय कुमार मल्लिक और चिकित्सक एवं कवि विनोद खेतान।

सर्वप्रथम आशुतोष अग्निहोत्री ने कहा कि मनुष्य बने रहने की जो चुनौती है उसके लिए पुस्तकें नज़रिया और साहस देती हैं। उन्होंने सबसे पहले प्रभावित करने वाली पुस्तक के बारे में बताते हुए कहा कि वह एक अंग्रेजी कविता-संग्रह था जिसमें कई विदेशी कवियों की कविताएँ थीं और उनके युवा मन को इन कविताओं ने अलग दृष्टि दी। किताबें हमारे एकाकी जीवन को व्यापक बनाती हैं।

भरत गुप्त ने बताया कि किताबें एक खास तरह के पाठ की माँग करती हैं। उनका कहना था कि किसी ग्रंथ में जब आपकी श्रद्धा होती है तभी आपको उससे नए अर्थ प्राप्त होते हैं। उन्होंने नाट्यशास्त्र पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि मैं जैसे-जैसे इस किताब को पढ़ता गया वैसे-वैसे नए-नए अर्थ मेरे सामने खुलते गए ।

विनोद खेतान ने किताबों को लेकर अपने रोचक संस्मरण श्रोताओं के सामने साझा करते हुए कहा कि हमारा समय वह था जब पुस्तक के साथ साथ पत्रिकाएँ भी हमें बहुत कुछ सिखा रही थीं। आगे उन्होंने कहा कि कोई एक किताब हमारा जीवन नहीं बदलती है बल्कि कई किताबों के समझने से हमारा जीवन बदलता है और हम संवेदना के अलग-अलग तंतुओं से परिचित होते हैं। उन्होंने “पुस्तक मेले से लौटकर’ शीर्षक की अपनी कविता भी सुनाई।

प्रख्यात चित्रकार हेमराज ने कहा कि उनका पढ़ाई से या किताबों से बहुत वास्ता नहीं रहा लेकिन जब वह अपनी चित्रकारी की पढ़ाई कर रहे थे तब किताबों से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। उनका मानना था कि एक गुरु की तुलना में किताबें ज्यादा बेहतर होती हैं क्योंकि उनसे हम जैसा, जब और जितना सीखना चाहें वह संभव है।

जया मेहता ने कहा कि किताबों के साथ हम कहीं की भी यात्रा कर सकते हैं। कल्पना की दुनिया में हम किताबों के सहारे ही जा सकते हैं। बचपन में हमारी कल्पना बिल्कुल निष्कलंक होती है लेकिन जैसे-जैसे हम ज्ञानी होते जाते हैं हमारी कल्पना भी सीमित होती जाती है।

माधव जोशी ने कहा कि बचपन से मैं कार्टून की दुनिया में था और किताबों की तुलना में उसमें कम से कम शब्दों में अपनी बात कहनी होती है। उन्होंने एक पिता बनने की पूरी कहानी पर लिखी अपनी किताब की भी चर्चा की।

सुधीश पचौरी ने हनुमान चालीसा और रामचरित मानस का जिक्र करते हुए कहा कि ये ऐसी रचनाएँ हैं जिन्होंने भारतीय जनमानस को हर मुश्किल में शक्ति और सहारा दिया है। उन्होंने महात्मा गाँधी की जीवनी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह पुस्तक हमें अहिंसा और सत्य के व्यापक असर और प्रभाव को दर्शाती है।

उदय कुमार मल्लिक ने गुरु- शिष्य परंपरा का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमारे लिए लिखना बिल्कुल असंगत होता था क्योंकि हमें याद करके ही चीज़ें समझनी होती थीं।

अंत में कार्यक्रम की अध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि गीता और रामचरितमानस भारत की सामूहिक चेतना का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन भी एक किताब होता है जिसको पढ़कर भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। किताबें हमें रास्ता दिखाती हैं क्योंकि हमारे यहाँ ज्ञान को तीसरी आँख कहा गया है। कार्यक्रम का संचालन संपादक (हिंदी) अनुपम तिवारी ने किया।



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