साहित्य अकादेमी द्वारा प्रो. असंग तिलकरत्ने को डॉ. आनंद कुमारस्वामी महत्तर सदस्यता  


अतः इस अवस्था को सार्वभौमिक कहना थोड़ा असंगत होगा। उन्होंने बुद्धिज़्म की सोच को सार्वभौमिक बताते हुए कहा कि यह केवल मनुष्य की ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी और पृथ्वी, सागर, पहाड़़, आकाश की भी चिंता करता है। उन्होंने आनंद कुमारस्वामी के बारे में कहा कि वे एक महान चिंतक थे और उन्होंने बौद्ध धर्म को विश्वव्यापी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।


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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी ने आज अपनी प्रतिष्ठित डॉ. आनंद कुमारस्वामी महत्तर सदस्यता प्रो. असंग तिलकरत्ने को प्रदान की। यह सदस्यता उन्हें साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक के हाथों प्रदान की गई। प्रो. असंग तिलकरत्ने श्रीलंका के बौद्ध अध्ययन के व्यापक अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त विद्वान हैं।

सदस्यता ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपने स्वीकृति वक्तव्य में कहा कि मानव की क्षमताएं असीमित हैं, लेकिन अपने पूर्वजों से प्राप्त परंपराओं जो हम अपने जीवन के लिए चुनते हैं उस पर हमें कभी यह अवश्य सोचना चाहिए कि हमने इसे क्यों और कैसे चुना है। हम एक तरफ तो हर क्षेत्र में विश्वव्यापी हुए हैं लेकिन हम कहीं न कहीं स्वयं में केंद्रित भी हुए हैं।

अतः इस अवस्था को सार्वभौमिक कहना थोड़ा असंगत होगा। उन्होंने बुद्धिज़्म की सोच को सार्वभौमिक बताते हुए कहा कि यह केवल मनुष्य की ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी और पृथ्वी, सागर, पहाड़़, आकाश की भी चिंता करता है। उन्होंने आनंद कुमारस्वामी के बारे में कहा कि वे एक महान चिंतक थे और उन्होंने बौद्ध धर्म को विश्वव्यापी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कार्यक्रम के आरंभ में प्रो. असंग तिलकरत्ने का स्वागत साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक द्वारा अंगवस्त्रम् एवं साहित्य अकादेमी की पुस्तकें भेंट करके किया गया। साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने इस अवसर पर प्रकाशित प्रशस्ति-पत्र का वाचन किया। कार्यक्रम में विभिन्न भारतीय भाषाओं के कई वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे। श्री माधव कौशिक के अध्यक्षीय वक्तव्य के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।



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