दलित साहित्य ने वांछित गहराई, ऊंचाई और व्यापकता प्राप्त कर ली है: जय प्रकाश कर्दम


जयप्रकाश कर्दम ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि आज इन सब रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से यह सिद्ध कर दिया है कि दलित साहित्य ने वांछित गहराई, ऊँचाई और व्यापकता प्राप्त कर ली है।


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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा आज डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर दलित चेतना कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात हिंदी कवि एवं लेखक जयप्रकाश कर्दम ने की और इसमें जगदीश पंकज, श्रीधरम, अनिता भारती, रजनी अनुरागी, हीरालाल ‘राजस्थानी’ और राजकुमारी ने अपनी-अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।

सबसे पहले राजकुमारी ने अपनी कहानी “फिर यहीं आएँगे वे” प्रस्तुत की, जिस का विषय दलित समाज के भीतर भी जातिगत विभेद पर केंद्रित था। हीरालाल ‘राजस्थानी’ ने अपनी कविताएँ ‘संविधान’, ‘दिल्ली का रघुवीर नगर’, ‘हम स्वीकारते हैं’, ‘कविवर’ और ‘हे नास्तिको’ प्रस्तुत कीं, जिसमें उन्होंने बाबासाहेब अम्बेडकर की विचारधारा और उनके योगदान को व्यक्त किया था। रजनी अनुरागी ने स्त्री को दोहरा दलित मानते हुए उनकी विभिन्न परिस्थितियों को चित्रित करते हुए कई कविताएँ प्रस्तुत कीं। कविताओं के शीर्षक थे ‘गुरु दक्षिणा’, ‘कोटा’, ‘हमारी कविता’, ‘बुद्ध तुम अगर औरत होते’।

अनिता भारती ने भी डॉ. अम्बेडकर पर केंद्रित अपनी कविताएँ सुनाईं, जिनके शीर्षक थे ‘तेरा यश’, ‘बाबा तुम रो रहे हो’, ‘किताब’, ‘उजाले’ आदि। श्रीधरम ने ‘गिरगिट’ शीर्षक से अपनी रोचक कहानी प्रस्तुत की, जोकि सवर्ण और दलितों के बदलते संबंधों पर कटाक्ष करते हुए व्यंगात्मक तरीके से प्रस्तुत की गई थी। अपनी विषय-वस्तु, कहन के अंदाज, और सुंदर पाठ की वजह से कहानी को सभी श्रोताओं ने बेहद पसंद किया। इसके बाद जगदीश पंकज ने अपने बेबाक नवगीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने अपना अंतिम नवगीत ‘निषिद्धों की गली का नागरिक हूँ’ सस्वर गाकर प्रस्तुत किया।

जयप्रकाश कर्दम ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि आज इन सब रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से यह सिद्ध कर दिया है कि दलित साहित्य ने वांछित गहराई, ऊँचाई और व्यापकता प्राप्त कर ली है। आगे उन्होंने कहा कि साहित्य मानवता की पाठशाला है और दलित रचनाकार अपनी अपनी रचनाओं में समता, बंधुता और न्याय के भाव को बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं। कोई भी साहित्य तभी जीवंत रहता है जब वह अपनी आलोचना स्वयं करने की क्षमता भी रखता है और दलित साहित्य ऐसा कर रहा है। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर को इस दौर का सबसे बड़ा मानववादी चिंतक मानते हुए कहा कि हमें उनके चिंतन और उनकी समझ को व्यापक रूप से लोगों को समझाने की ज़रूरत है। उन्होंने अंत में अपनी छोटी-छोटी कविताएं प्रस्तुत कीं।



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