भूमंडलीकरण के दुष्प्रभाव को सबसे ज़्यादा छोटी भाषाओं ने रोका : अरुण कमल


लेखिका ममंग दई ने कहा कि महिलाएँ हमेशा परिवर्तन की अनुगामी रही हैं और दुनिया में जो भय फैला है, उससे लड़ने के लिए उनकी सजगता हमेशा एक हथियार रही हैं।


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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित छह दिवसीय साहित्योत्सव 2022 का समापन हुआ। साहित्य एवं स्त्री सशक्तिकरण तथा पूर्वोत्तरी कार्यक्रम अंतिम दिन के मुख्य आकर्षण थे। पूर्वोत्तरी जोकि उत्तर-पूर्वी और उत्तरी लेखकों को एक मंच पर लाने का है, के अंतर्गत 26 लेखकों ने अपनी रचनाएँ और विचार प्रस्तुत किए।

अपने उद्घाटन वक्तव्य में प्रख्यात हिंदी कवि अरुण कमल ने कहा कि भूमंडलीकरण के दौर में इसके दुष्प्रभाव को रोकने में सबसे ज्यादा छोटी भाषाओं ने योगदान दिया है। वर्तमान समय में हम मूल भाषाओं के स्रोत से दूर हो रहे हैं और इसी कारण हमारी भाषाएँ और बोलियाँ दोनों ही प्रभावित हो रही है। दुनिया को एक जैसी बनाने के प्रयास में हम उसकी बहुरंगी विविधता को खोते जा रहे हैं, जो भाषाओं और उसके साहित्य के लिए बहुत ही घातक है।

आगे उन्होंने कहा कि सामूहिकता हमारी निजता को प्रभावित नहीं करती लेकिन सार्वजनिकता हमारी निजता का हनन है। अतः इसकी रक्षा करना हमारा दायित्व है। सत्य के पक्ष में लिखना आवश्यक है। उन्होंने साहित्य अकादेमी को भारतीय भाषाओं और साहित्य का गणतंत्र बताते हुए कहा कि यही हमारी थाती है। विशिष्ट अतिथि के रूप में वक्तव्य देते हुए अभिराज राजेंद्र मिश्र ने कहा कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है और उसमें ऐसा ज्ञान समाहित है जिसने पूरे विश्व को आलोकित किया है। संस्कृत साहित्य अपार है और समूचे ब्रह्मांड के रहस्य खोजने की क्षमता रखता है।

उससे पहले साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने दोनों अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम् और पुस्तकें भेंट करके किया और अपने स्वागत भाषण में कहा कि भारतीय भाषाओं की बहुलता और भव्यता अतुलनीय है और अकादेमी इनके लिए एक पुल का काम कर रही हैं। इन सम्मिलनों से आपसी सद्भाव तो बढ़ता ही है, साथ ही फैली हुई कई भ्रांतियों का समाधान भी होता है।

साहित्य एवं स्त्री सशक्तिकरण विषय पर आयोजित परिसंवाद में उद्घाटन वक्तव्य देते हुए  अंग्रेज़ी लेखिका ममंग दई ने कहा कि महिलाएँ हमेशा परिवर्तन की अनुगामी रही हैं और दुनिया में जो भय फैला है, उससे लड़ने के लिए उनकी सजगता हमेशा एक हथियार रही हैं। उन्होंने कई उदाहरण देकर स्पष्ट किया कि स्त्री की संवेदना दुनिया को नए तरीके से समझती और सँवारती है। बीज वक्तव्य देते हुए प्रख्यात बाङ्ला लेखिका एवं कवयित्री अनीता अग्निहोत्री ने कहा कि केवल बाङ्ला ही नहीं अन्य भाषाओं में भी लेखिकाओं की एक पूरी पीढ़ी ने अपने समय की सच्चाई को लिखा और अन्य लोगो को भी लेखन के लिए प्रोत्साहित किया। इस सृजनात्मक लेखन से महिलाओं की मानसिक सोच को बदलकर आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों को भी बड़ी सफलता मिली है।

सर्वप्रथम साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने दोनों अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम् एवं पुस्तकें भेंट करके किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक विकास की नींव महिलाओं द्वारा ही रखी गई और कला एवं संस्कृति के मूल प्रतीक उन्हीं के द्वारा गढ़े गए हैं। सामाजिक बदलाव की हर सीढ़ी पर उनके पदचिन्ह् अंकित हैं। आजादी के 75वें वर्ष में उनकी इन्हीं उपलब्धियों को रेखांकित करने के लिए यह संगोष्ठी आयोजित की गई है। अगले सत्र में ममता कालिया की अध्यक्षता में विभिन्न भारतीय भाषाओं के सात रचनाकारों ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।

‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर साहित्य’ का प्रभाव विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भी आज समापन हुआ। आज हुए तीन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः उदय नारायण सिंह, संयुक्ता दास गुप्ता एवं अनिल कुमार बर’ ने की। सत्रों के विषय थे – ‘भारतीय कविता और स्वतंत्रता आंदोलन’, ‘स्त्री लेखक और स्वतंत्रता आंदोलन’ एवं ‘हाशिये के स्वर और स्वतंत्रता आंदोलन’।



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