रविवार की कविता : छोड़ी हुई प्रेयसियां…


एसएस पंवार का जन्म 19 अप्रैल, 1990 को फतेहाबाद के पीली मंदोरी गांव में हुआ था। चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय से जनसंचार में स्नातकोतर। प्रिंट और टीवी पत्रकारिता में तीन साल काम करने के उपरांत फिलहाल हिसार के दयानंद पी जी कॉलेज में बतौर सहायक प्रोफेसर (जनसंचार) कार्यरत।

कथा-समय, आजकल, कथेसर, दोआबा एवं दस्तक सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं और लेख प्रकाशित। पहली कहानी ‘अधुरी कहानी’ नाम से साल 2013 में हरियाणा ग्रंथ अकादमी की पत्रिका ‘कथा समय’ में प्रकाशित व पहली कविता 2009 में हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘दस्तक’ में प्रकाशित।



छोड़ी हुई प्रेयसियों!
जाओ अपने पहले प्रेमी से मुहब्बत की मांग करो
वो जिसने ट्रायल बॉल की तरह खेला तुम्हें
और विख्यात हो गया…

मैं नहीं कहता इस ‘विख्यात’ शब्द से कोई बड़ा अर्थ निकालो तुम
अपने-अपने परिवेश में
हर जगह प्रतिस्पर्धा है
घर का बाप, पति और देश के पति

एक जैसी व्यवस्था में एक ही मीटर है सबका,

क्या सच में तुम्हें ऐसा लगता है प्रेयसियों!

वो सिरफिरा प्रेमी; कई बसन्त तुमने जिसके प्रेम में गज़ल बुनीं
और सावन-भादों कागजों पर तुम्हारे
नमीं रही उसके नाम की,
जाओ एनकाउंटर की तरह घेरो उसे
और कहो
‘वो जो मुहब्बत हमसे सीखी थी;अब किस पर आजमा रहे हो’

क्या तुम भूल चुकी हो अपने पहले प्रेमियों की शक्लें!
या जब तुम सातवीं क्लास में थीं और ठीक से
कुर्ता समेटकर तुम्हें बैठना भी नहीं आता था, तब प्रेम हुआ था तुम्हें

क्या जब तुमने गांव छोड़े
और महानगरों या शहरों का रुख किया,
और तब एक विख्यात से आदमी से मिली थी तुम
क्या वो तुम्हारा प्रेमी था…
मुझे तुम्हारे प्रेमियों से कुछ नहीं लेना देवियों…

लेकिन कुछ बेवफा जो औरतों-लड़कियों को छोड़कर राजा हुए;
वे देश को बेच रहे हैं
जाओ तुम हिस्सा मांगों उनसे अपना…

तुम इत्तिला करो कि
वो जो तुमसे पहले प्रेम का ढोंग करता था
क्या वो किसी रैकेट का सरगना तो नहीं?
क्या वो खेल तो नहीं रहा किसी बड़े तबके की भावनाओं के साथ!



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