बेटियाँ
तपती धरती पर बरखा
की फुहारों सी बेटियाँ
सर्दियों की गुनगुनी
धूप सी बेटियाँ
मन के मौसम में
बहारों का मौसम बेटियाँ
जीवन की बगिया महकाये
वो फूल हैं बेटियाँ
भोर की पहली
किरण सी बेटियाँ
सरगम की मीठी
तान सी बेटियाँ
मकानों को घर
बनातीं बेटियाँ
रिश्तों को जीतीं
और जिलाती बेटियाँ
सहनशीलता और त्याग
का पाठ पढ़ाती बेटियाँ
भावनाओं-संवेदनाओं को
पुख्ता बनातीं बेटियाँ
सौंदर्य और तेज
का मेल बेटियाँ
सृष्टि की पताका
फहरातीं बेटियाँ।
बेटी की माँ
बेटी के जन्म पर
अपनों की उपेक्षा को
परे कर अपने प्रतिरूप को
ममत्व से निहारती
बेटी की माँ
बेटी के बचपन में
अपने बचपन को जीती
बेटी की माँ
किशोर होती पुत्री को
सजाती-संवारती
निहाल होती
बेटी की माँ
लाड़ो के माध्यम से
अपनी इच्छाओं-महत्वक्षाओं
को साकार करती
बेटी की माँ
देहरी पार करे जो बेटी
तो शंकाओं-दुश्चिंताओं
की शिकन माथे पे ले
पंथ निहारती
बेटी की माँ
बिटिया की सेवा, दुलार पा
कभी खुद बेटी बन जाती
बेटी की माँ
जागती आँखों में
लाड़ली के लिए
स्वर्णिम सपने सजाती
बेटी की माँ
दु;स्वप्न देख सोते से
चौंक कर उठ जाती
बेटी की माँ
बिट्टों की विदाई के
ख्याल मात्र से
आँखें भर-भर लाती
बेटी की माँ।
बिखरते जो बेटी के स्वप्न
जीते जी मर जाती
बेटी की माँ।
एक नदी की मौत
एक नदी थी
पानी से लबालब
इतराती, इठलाती
लोगों की प्यास बुझाती।
फिर वो सूखने लगी
पानी न दे सकी
तो लोगों ने उसका
दामन कचरे से भर दिया।
नाले का रुख भी उस पर मोड़ दिया।
बदबू मारती वो तिल तिल मरने लगी।
इंसान ने उसकी दुबली काया
को पाट कर उसका
अस्तित्व ही मिटा डाला।
अस्तित्व में आई एक भव्य अट्टालिका।
जिसकी नींव में थी नदी की मृत देह।
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