रविवार की कविता : मन हार रे मत हार…


वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शकील अख्तर भारत के शीर्ष समाचार चैनल इंडिया टीवी के पूर्व वरिष्ठ संपादक हैं। नईदुनिया, दैनिक भास्कर, फ्री प्रेस जनरल जैसे उत्तर भारत के 6 प्रमुख समाचार पत्रों में काम किया है। कविता संग्रह- ‘दिल ही तो है’ के साथ ही आपने 5 नाटकों को लेखन किया है।

महात्मा गांधी के बचपन पर आधारित नाटक – ‘मोनिया द ग्रेट’ और ‘ब्लू व्हेल: ए डेंजरस गेम’ का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली में मंचन हुआ है। आपके लिये दो नये नाटकों के नाम हैं -‘जंगल सिटी’ और ‘हैलो शेक्सपियर’। फिल्म -’13 दिसंबर’और शॉर्ट फ़िल्म-‘व्हेन मेल गॉट रेप्ड’ में अभिनय किया है। इसी तरह कुछ हिंदी डॉक्युमेंट्रीज़ और नाट्य रूपांतरणों में भी अभिनय किया। आपके लिखे कई गीत संगीतबद्ध हुए हैं।

भारतीय स्वतंत्रता की गाथा पर आधारित गीत -‘वंदे मातरम’ को काफ़ी सराहा गया है। आप पिछले 2 वर्षों से निरंतर भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की पूर्वावलोकन समिति के सदस्य हैं। आपको पत्रकारिता और रचनात्मक लेखन के लिए 4 अवार्ड प्रदान किये गये हैं।  



मन हार रे मत हार

बुझ रहे सांसों के दीये

फिर भी दीप जलाता हूँ

झूठी मेरी आस सही

झूठी आस जगाता हूँ

मन हार रे मत हार, सन्ताप को धिक्कार

चारों तरफ जलती चिताएँ

किस किसका मैं ध्यान करूँ

कितने शोक वेदना कितनी

किस किसका शम्शान वरूँ

काल की विपदा हां हत्यारी

ख़ून के आंसू बहाता हूँ

मन हार रे मत हार, सन्ताप को धिक्कार

प्रेत समय में प्रार्थना का

आह कोई अब अर्थ नहीं

जीवित कौन शेष है कौन

राह नहीं कोई दर्स नहीं

हर बिछड़ने वाले की

याद से लिपटा जाता हूँ

मन हार रे मत हार, सन्ताप को धिक्कार।

किसे याद रखूं

किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं

मां भारत के चरणों में कितने शीष नवाऊं

भजुं मीरा को या कबीर के गुन गाऊं

राम का बनु अनुज की बुद्ध की गाथा गाऊं

किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं

महावीर को कहूं अपना गांधी की अलख जगाऊं

चंदन चंदन नानक का और दोहे रहीम के गाऊं

किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं

गंगा का स्वप्न धरूं या पावन गीता गाऊं

टैगोर की मनीषा या कृष्ण के गीत सुनाऊं

किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं

कितनी पावन ये धरती कितने कर्ज़ चुकाऊं

जन्मा इस माटी में प्रभु का उपकार मनाऊं

किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं

मां भारत के चरणों में कितने शीष नवाऊं।

जयहिन्द भारत

जयहिन्द भारत,जयहिन्द भारत

भक्ति तुम ऐसी करो ना जन्म हो जाये अकारथ

जयहिन्द भारत,जयहिन्द भारत

मर्म को समझो, धर्म को समझो

रे साधो सच्चे , कर्म को समझो

अब तो संभलो, ज्ञान का पथ लो

चलाओ सत्य का रथ

जयहिन्द भारत, जयहिन्द भारत

काल तुझको बैरी पुकारे

स्वार्थ से क्यों बन्धु हारे

मझधार में तू, ऊंची लहरें

ना हो कश्ती ये गारत

जयहिन्द भारत, जयहिन्द भारत

हम ही समय है हम ही प्रहरी

हम ही उजाला रातें गहरी

अंधे गूंगे कैसे लिखेंगे

सुनहरे कल की इबारत।

जयहिन्द भारत, जयहिन्द भारत।