मन हार रे मत हार
बुझ रहे सांसों के दीये
फिर भी दीप जलाता हूँ
झूठी मेरी आस सही
झूठी आस जगाता हूँ
मन हार रे मत हार, सन्ताप को धिक्कार
चारों तरफ जलती चिताएँ
किस किसका मैं ध्यान करूँ
कितने शोक वेदना कितनी
किस किसका शम्शान वरूँ
काल की विपदा हां हत्यारी
ख़ून के आंसू बहाता हूँ
मन हार रे मत हार, सन्ताप को धिक्कार
प्रेत समय में प्रार्थना का
आह कोई अब अर्थ नहीं
जीवित कौन शेष है कौन
राह नहीं कोई दर्स नहीं
हर बिछड़ने वाले की
याद से लिपटा जाता हूँ
मन हार रे मत हार, सन्ताप को धिक्कार।
किसे याद रखूं
किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं
मां भारत के चरणों में कितने शीष नवाऊं
भजुं मीरा को या कबीर के गुन गाऊं
राम का बनु अनुज की बुद्ध की गाथा गाऊं
किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं
महावीर को कहूं अपना गांधी की अलख जगाऊं
चंदन चंदन नानक का और दोहे रहीम के गाऊं
किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं
गंगा का स्वप्न धरूं या पावन गीता गाऊं
टैगोर की मनीषा या कृष्ण के गीत सुनाऊं
किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं
कितनी पावन ये धरती कितने कर्ज़ चुकाऊं
जन्मा इस माटी में प्रभु का उपकार मनाऊं
किसे याद रखूं , किसे भूल जाऊं
मां भारत के चरणों में कितने शीष नवाऊं।
जयहिन्द भारत
जयहिन्द भारत,जयहिन्द भारत
भक्ति तुम ऐसी करो ना जन्म हो जाये अकारथ
जयहिन्द भारत,जयहिन्द भारत
मर्म को समझो, धर्म को समझो
रे साधो सच्चे , कर्म को समझो
अब तो संभलो, ज्ञान का पथ लो
चलाओ सत्य का रथ
जयहिन्द भारत, जयहिन्द भारत
काल तुझको बैरी पुकारे
स्वार्थ से क्यों बन्धु हारे
मझधार में तू, ऊंची लहरें
ना हो कश्ती ये गारत
जयहिन्द भारत, जयहिन्द भारत
हम ही समय है हम ही प्रहरी
हम ही उजाला रातें गहरी
अंधे गूंगे कैसे लिखेंगे
सुनहरे कल की इबारत।
जयहिन्द भारत, जयहिन्द भारत।