मिलन
प्रेम के गोत्र का मध्यवर्ती शब्द है
चाहने और पाने के बीच
केतकी के पीले-उजले फूल की तरह
स्थूल के खिलाफ सूक्ष्म की तरह
बांस के कच्चे पुल की तरह
पांव के नीचे से
शिखरयात्रा पर निकली धूल की तरह
गोत्र मिलन का
नकार से बाहर
दुनिया के लिए सबसे जरूरी
अजान में
शंख में रखे प्राण में हो शामिल
ख्वाहिश ये मेहरबानी के मेघ से नहीं
अपील है पुरजोर
शब्द और समाज के मध्यवर्ग से
शोर के अंतिम छोर से
जंग के दो दो निचोड़ से।
जिम कॉर्बेट बंद है
जिम कॉर्बेट बंद है इन दिनों
मोहनदास और वाशिंग्टन साब की
तस्वीरों पर फिदा
घुमक्कड़ों को सूचना ये
कितनी दूर तक साल गया होगा
झील पहाड़ जंगल
चीता और चीतल के बीच
उतार लेना खुद को
फ्रेम दर फ्रेम
कुदरत की मंजूरी का
हो ना हो
उस जुलाहे को
धिक्कार जरूर है
जिसने हमें आज से पहले
समाज होना सिखाया
पड़ोस को भरोसे
और प्रेम को
झरोखे जैसा सजाया
जिन दिनों
बंद होता है जिम कॉर्बेट
उन दिनों जंगल का हाल
मनुष्य के सभ्यता द्वार होने से
बचा रहता है
हिरन के सींग में आकाश
और चीते के पदचाप में
जंगल फिर से अवतार लेता है
बनावट और साहस में
भरापूरा जिम कॉर्बेट
अपनी आत्मकथा में
बार बार कहता है
इंसान के दूरबीन होने से
वह सबसे ज्यादा डरता है।
भाषा
मुझे वो अंग्रेजी नहीं आती
जो बोलता है सिक्का
जो बोलता था सिकंदर
मुझे वो हिंदी नहीं आती
जो बोलती है सत्ता
जिसे नहीं पसंद कपड़ा लत्ता
मुझे वैसी कोई भाषा नहीं आती
जिसे बोलते हुए हम बदल जाते हैं
सुविधा के हॉर्स पावर में
मुझे बस वो भाषा आती है
जो जंगल की तरह है सघन
जिसमें महात्मा लिखते थे हरिजन
भाषा का एकवचन होना
शब्दों के बहुवचन के खिलाफ
तख्तापलट की कार्रवाई है।
अंगुलियां
उन अंगुलियों को भी
होती है तकलीफ
जो चाक की गोलाई
पूरी करती हैं
जो मिट्टी को बना देती हैं बर्तन
श्रम की दुनिया ने सीखा जिनसे
स्वेद कीर्तन
कहां ढलती है शाम कोई
उन अंगुलियों के लिए
जो प्रेम के लिए
बुनती हैं स्वेटर
लिखती हैं चांद
जो रोज करती हैं वर्जिनिया
और सीमोन के शब्दों से
भीतरी स्नान
उन अंगुलियों का
समारोह तो कोई
लोकतंत्र भी नहीं मनाता
जिन्होंने दुनिया भर के किवाड़ों
खिड़कियों को दी है
खुलने बंद होने की तमीज
ताकि बची रहे सभ्यता
घड़ी की छोटी बड़ी सुइयों को
अंगुलियों ने बांधी है ताबीज।