रविवार की कविता : गांधी बाबा ! हम तुम्हारे लायक नहीं…


वैभव श्रीवास्तव अवध क्षेत्र के सुलतानपुर ज़िले से हैं। बचपन से ही साहित्य, सिनेमा और सांस्कृतिक अध्ययन में उनकी गहरी रुचि रही है। उन्होंने प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय से मानविकी की पढ़ाई की है। महात्मा गाँधी, जिद्दू कृष्णमूर्ति, अल्बेयर काम्यू और निर्मल वर्मा के विचारों का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव रहा है। फिलहाल वे दिल्ली में दिव्यांगों के लिए कार्यरत ‘वितान फाउंडेशन’, विश्वविद्यालयी विद्यार्थियों को सामाजिक सरोकारों की ओर उन्मुख करने के लिए कार्यरत ‘परस्पर’ और विरोधी विचारधाराओं के बीच संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित ‘संवाद-उत्सव’ संस्थाओं का संचालन कर रहे हैं।



इंसानी वजूद :
यातनाओं के ब्रह्मांड में प्रेम की पृथ्वी सा;
सदियों से संचित यातनाएं
और उनका भार ढोती
वही सुकुमार, निहत्थी, कोमल अस्मिता

तुम आए
इस वजूद के सूरजमुखी को
इसका सूरज दिखा दिया
ब्रह्मांड के बिखरते पिंडों को
गुरुत्वाकर्षण का स्थायित्व दिला दिया
इस अस्मिता के हल्के-भोले बालपन को
उसका साक्षात्कार करा दिया
अरे, तुमने तो इंसानी वजूद की गरिमा को ही
पूज्यनीय बना दिया

तुमने सोच भी कैसे लिया
कि हम हार मान जाएंगे और चुप बैठ जाएंगे

लो हमारी यातनाओं से उपजी कुंठाओं ने
प्रतिघात किया
तुम्हें और तुम्हारे समय को
विस्थापन और त्रासदी के अभूतपूर्व तोहफ़ों से नवाज़ दिया

गांधी बाबा!
हम तुम्हारे लायक नहीं
इसीलिए हमने तुम्हें मार दिया !

हां तुम्हारी हत्या का जश्न ढंग से नहीं मना पाए थे
सो अब मना लेंगे ! …



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