तुलसीदास की रामचरितमानस ने गांधी को भारत को समझने में विशेष सहायता की-श्रीभगवान सिंह

हम गांधी पर विदेशी लोगों जैसे टॉलस्टाय आदि का उल्लेख तो अवश्य करते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि उनकी प्रेरणा के सबसे बड़े दो सूत्र गीता और रामचरितमानस हैं। गांधी ने अपना पूरा आचरण यहीं से लिया और इन्हीं के ज़रिए भारतीय समाज और संस्कृति को पहचाना।

नई दिल्ली।  साहित्य अकादेमी द्वारा आज आयोजित एक शाम आलोचक के साथ कार्यक्रम के अंतर्गत प्रख्यात आलोचक श्रीभगवान सिंह ने महात्मा गांधी पर तुलसीदास का प्रभाव विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने गांधी द्वारा लिखे गए विभिन्न लेखों, भाषणों के आधार पर बताया कि महात्मा गांधी ने जगह-जगह अपने ऊपर तुलसीदास की रामचरितमानस से प्रभावित होने की चर्चा की है। उनके सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन और रामराज की कल्पना भी तुलसीदास की रामचरितमानस ही है।

आगे स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी प्रख्यात पुस्तक हिंद ‘स्वराज’ में सत्याग्रह पर लिखे गए खंड की शुरुआत तुलसीदास के एक दोहे से ही होती है। जिसमें वह दया को आत्मबल मानते हैं और वहीं से सत्याग्रह की शुरुआत होती है। तुलसीदास द्वारा संतों को असंतों से दूर रहने की सलाह भी वे शैतानी लोगों के प्रति असहयोग और विद्रोह मानते हैं।

शांतिनिकेतन में भाषण के दौरान उन्होंने हिंदू भाइयों को संबोधित करते हुए कहा था कि शैतानी राज के विरोध के लिए रामचरितमानस में स्पष्ट निर्देश दिए हैं। उन्होंने महात्मा गांधी के यंगइंडिया में प्रकाशित एक लेख का उल्लेख करते हुए बताया कि वे गीता और रामचरितमानस को भारतीय समाज को समझने के लिए सबसे उपयुक्त मानते हैं। उनके लिए सभी धर्म समान हैं और वह अपने धर्मों का सम्मान करते हुए दूसरों के धर्म का सम्मान करवाना चाहते हैं।

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के समय कुछ राज्यों द्वारा हिंदी की दरिद्रता पर सवाल उठाए जाने पर भी वे रामचरितमानस का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि यह अकेली पुस्तक ही सारे संसार और भारतीय भाषाओं में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है और वह स्पष्ट करते हैं कि तुलसीदास की भाषा ही हमारी भाषा होगी। अंत में उन्होंने कहा कि हम गांधी पर विदेशी लोगों जैसे टॉलस्टाय आदि का उल्लेख तो अवश्य करते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि उनकी प्रेरणा के सबसे बड़े दो सूत्र गीता और रामचरितमानस हैं। गांधी ने अपना पूरा आचरण यहीं से लिया और इन्हीं के ज़रिए भारतीय समाज और संस्कृति को पहचाना।

कार्यक्रम में रणजीत साहा, रीतारानी पालीवाल, सुरेश ऋतुपर्ण, हरिसुमन बिष्ट, संजय मिश्र, श्याम सुशील, मनोज कुमार झा, महेश भारद्वाज सहित कई प्रख्यात लेखक, आलोचक एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।

First Published on: August 18, 2022 9:26 AM
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