
केन्द्रीय हिंदी संस्थान, वैश्विक हिंदी परिवार, विश्व हिंदी सचिवालय एवं सहयोगी संस्थाओं के तत्तवावधान में हिंदी की राष्ट्रीय संस्थाएं – भूमिका और संभावनाएं विषय पर अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी आयोजित हुई जिसका उद्देश्य सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाओं के प्रमुखों एवं प्रतिनिधियों के पारस्परिक विचार-विमर्श करना था। कार्यक्रम प्रारम्भ करते हुए साहित्यकार राजेश कुमार जी ने कहा कि हिंदी से जुड़ी हुई सभी संस्थाएं यदि साथ मिलकर काम करें एवं एक दूसरे के क्रिया कलापों की जानकारी साझा करें तो एक ही काम बार-बार न करना पड़े। कार्यक्रम में सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों का स्वागत मैसूर केन्द्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ परनाम सिंह जी ने एवं संचालन राष्ट्र निर्माण में युवाओं के सतत् प्रेरक प्रो. विजय मिश्र ने किया। प्रो. विजय मिश्र ने कहा कि हिंदी के व्यापक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हिंदी की प्रमुख संस्थाओं को बदलती दुनिया में अपनी भूमिकाओं को पुनः तलाशना होगा जिससे हिंदी के समक्ष चुनौतियों, कठिनाइयों के समाधान तलाश किए जा सकें।
प्रसिद्ध साहित्यकार, पूर्व कुलपति एवं अनेक संस्थाओं से संलग्न रहे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के अध्यक्ष डॉ सदानंद प्रसाद गुप्त ने संस्थान से जुड़े दीनदयाल सम्मान, अवंती बाई, साहित्य भूषण जैसे अनेक सम्मानों की चर्चा की। संस्थान की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका संस्थान हिंदी भाषी और गैर हिंदी भाषी लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित कर उन्हें सम्मानित एवं प्रोत्साहित करता है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अर्थशास्त्र, विज्ञान, चिकित्सा, तकनीकी विषयों पर पुस्तकें कम आती हैं । इससे हमारी भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा, शिक्षण एवं प्रशिक्षण का संकल्प को कमजोर होगा।
अनेक सम्मानों से सम्मानित, भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ कुसुम खेमानी ने परिषद के देश एवं विदेश में कार्यकलापों, पुरस्कारों आदि की जानकारी देते हुए कहा कि विदेशों में हिंदी एवं भारत के तीर्थों के प्रति लोगों में विशेष स्नेह एवं श्रृद्धा है और यह बहुत बड़ी समन्वयन शक्ति है जो हिंदी को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठित करने में सहायक होगी। हिंदी भवन भोपाल के निदेशक डॉ जवाहर कर्नावट ने अपने संस्थान की गतिविधियों तथा जन सहयोग से उपलब्धियों के विषय में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप, एक ही विचार के अनुयायियों के जमा होने या साधनों के अभाव से असफल सिद्ध होती हैं और यह हिंदी से संबंधित संस्थाओं के लिए भी सत्य है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलपतिषोडशी मोहन दां ने कहा कि हिंदी भारत सरकार की राजभाषा, राष्ट्रभाषा एवं संपर्क भाषा तो है किंतु अभी हिंदी को उचित स्थान ही प्राप्त नहीं हुआ है इसलिए अभी गाँधी जी का स्वराज स्वप्न भी अधूरा है।
केन्द्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने हिंदी साहित्यकारों के जन्मस्थलों का पुनरोद्धार संबंधी संस्थान की अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं, गतिविधियों एवं कार्यकलापों की जानकारी दीऔर कहा कि इस समय अंग्रेजी की आँधी है किंतु संस्थान पूरे देश में अपने कार्यों में पूरी गंभीरता से लगा हुआ है तथा पूर्वोत्तर हमारी प्राथमिकता का क्षेत्र है। हमें यदि बड़े लक्ष्य हासिल करने हैं तो सभी संस्थाओं के बीच सामूहिक समन्वय, संवाद एवं संयोजन विकसित करना होगा जिसकी पहल हमने आज की है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालयप्रो रमेश कुमार पांडेय ने कहा कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में उनका निदेशालय संस्थाओं को प्रोत्साहित करता है साथ ही शब्दकोशों का प्रकाशन जैसा महत्वपूर्ण कार्य भी किया जाता है। हिंदी व्यवहार की भाषा होते हुए भी भाषा के प्रति गौरव का भाव बहुत कम लोगों में होता है- यह आत्मघाती प्रवृत्ति समाप्त होनी चाहिए और यह संकल्प हमें लेना होगा कि हिंदी मात्र हिंदी दिवसों के समारोहों की भाषा न रहे बल्कि भारत की राजभाषा सही अर्थों में बने। प्रख्यात भाषा चिंतक राहुल देव ने कहा कि हमें हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के विकास और जीवंतता के लिए अनुकूल एवं आवश्यक पर्यावरणीयपारस्थितिकी का अभाव है और सभी संस्थाओं और व्यक्तियों को अब कुछ अभियानात्मक एवं आंदोलनात्मक मार्ग अपनाना होगा- इस आग और ऊर्जा के अभाव में हिंदी के प्रचार-प्रसार में नई सक्रियता नहीं आएगी। कार्यक्रम में सभी वक्ताओं, सहभागियों एवं संस्थाओं के प्रति डॉ संध्या सिंह जी ने आभार व्यक्त किया।