बहुत कुछ ख़ास और पहली बार हुआ संसद में…


इंसान के जीवन में बहुत कुछ ऐसा भी होता है, जो होता तो पहली बार है लेकिन होता कुछ ख़ास है। बात अगर संसद के 2020 में संपन्न मौजूदा मानसून सत्र की करें तो यह बात अक्षरशः लागू होती है। कहना गलत नहीं होगा कि संसद का यह विशेष सत्र अपने आप में वैसे ही ख़ास इसलिए हो गया था कि जब कोरोना महामारी के चलते दुनिया भर के साठ साल से ऊपर के सभी उम्रदराज और 10 -15 साल से कम उम्र के नागरिकों को घर के अन्दर दुबक कर बैठे रहने की सलाह दी जा रही हो तब हमारे माननीयों को हमारे लिए नीतियाँ और क़ानून बनाने का कल्याणकारी काम करने के लिए संसद भवन तक आने और सत्र की कार्यवाही में भाग लेकर अपनी जान को जोखिम में डालने का काम ख़ास तो हो ही जाता है।

इस एक खासियत के अलावा भी हिंदी दिवस के दिन 14 सितम्बर से शुरू हुआ संसद का यह विशेष सत्र ख़ास सत्र बन गया था। ऐसी कुछ खासियतों पर गौर करना इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि ये सब इस देश के संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ है और जरूरी नहीं है कि इनकी भविष्य में कभी पुनरावृत्ति हो। ख़ास बात यह कि इस बार एक सदन लोकसभा की बैठकें लोकसभा कक्ष में ही नहीं हुई बल्कि राज्य सभा कक्ष के साथ ही संसदीय गलियारों में भी लोकसभा के सांसदों के बैठने और सत्र की कार्रवाई का हिस्सा बनाने की व्यवस्था इस बार की गई थी।

ऐसा इसलिए करना पड़ा था क्योंकि कोरोना के चलते सार्वजनिक समारोहों और कार्यक्रमों में सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करना जरूरी था। सिर्फ लोकसभा कक्ष में बैठक का आयोजन करने से यह संभव नहीं होता इसलिए सांसदों को फैला कर बैठाने के लिए यह सब करना जरूरी हो गया था। सामाजिक दूरी बनाए रखने के साथ ही सदन में सांसदों के बैठने की दो पंक्तियों के बीच प्लास्टिक की शीट भी लगाईं गई थी और जिन सांसदों को कक्ष में बैठने की जगह नहीं मिल सकी थी उन्हें सदन की कारवाई की जानकारी का अहसास कराने की गरज से उनके बैठने के स्थान पर बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीन भी लगाए गए गए थे।

राज्यसभा की बैठक के लिए भी ऐसी ही व्यस्था की गई थी। सतह के अभाव में यह भी तय हो गया था कि दोनों सदनों की बैठकें हर रोज एक ही समय पर नहीं कराई जाएँ। इसलिए पूरे दिन को दो चरणों में बांटा गया एक चरण सुबह से दोपहर तक और दूसरा दोपहर से देर शाम तक दोनों चरणों में चार-चार घंटे संसद के दोनों सदनों की बैठकों का आयोजन करने पर सहमति भी बनी। इसी सहमति के आधार पर पहले दिन 14 सितम्बर 2020 को सुबह नौ बजे से दोपहर 1 बजे तक लोकसभा की कार्रवाई का संचालन हुआ और दो घंटे के ब्रेक के बाद अपराह्न 3 बजे से 7 बजे तक राज्य सभा की कारवाई संपन्न हुई। बाद के दिनों में राज्य सभा की कार्रवाई पहले चरण में और लोकसभा की कार्रवाई दोपहर बाद दूसरे पहर में संपन्न हुई।

इस परिवर्तन की एक बड़ी वजह यह बताई गई कि राज्यसभा की तुलना में लोकसभा के सदस्यों की संख्या दोगुनी है और कई बार इस सदन की कारवाई निर्धारित समयावधि से इसलिए भी आगे बढ़ जाती है क्योंकि चर्चा में भाग लेने वाले अथवा सवाल पूछने वाले सांसदों की संख्या अधिक हो जाती है। सामान्य दिनों में ऐसे मौकों पर सदन की कार्रवाई के समय को आसानी आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन जब दो चरण में सदन की कार्रवाई होनी हो तब यह संभव नहीं हो सकता। इसलिए कम सदयों वाले सदन (राज्यसभा) की कार्रवाई पहले चरण में और अधिक सदस्यों वाले सदन लोकसभा की कार्रवाई दूसरे चरण में संपन्न कराने पर सहमति बनी थी। संसद के विशेष सत्र में कम समय में अधिक से अधिक कामकाज निपटाने की गरज से प्रश्न काल और शून्य काल का न होना इस सत्र की एक अतिरिक्त विशेषता भी मानी जा सकती है। एक बात और महत्वपूर्ण है वो यह कि संसद के इस विशेष सत्र में कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं था। जितने दिन भी संसद की कार्रवाई हुई उतने दिन शनिवार और रविवार को भी सदन का कामकाज हुआ।

इसके अलावा भी इस बार बहुत कुछ ऐसा भी हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था। लोकसभा ही नहीं राज्यसभा ने भी सत्र के अंतिम दिनों में बहुत कुछ ख़ास करके दिखा दिया। 20 सितम्बर रविवार के दिन राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने नियम कायदों की अवहेलना करते हुए विपक्षी सांसदों के हंगामे के बीच किसान बिल को ध्वनिमत से पारित भी करा दिया और इस आपत्ति के साथ हंगामा करने वाले विपक्ष के आठ सांसद सत्र की शेष अवधि के लिए अगले ही दिन निलंबित भी कर दिए गए। सांसदों के निलंबन के बाद विपक्षी सांसद संसद भवन के लान में धरने पर बैठ गए।

नाराज सांसदों को मनाने के लिए राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश मंगलवार 22 सितम्बर को अपने निवास से चाय लेकर भी गए लेकिन नाराज सांसदों ने उनकी चाय तक पीने से इनकार कर दिया। इससे दुखी उपसभापति ने देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को एक भावुक पत्र लिख कर सूचित किया कि वो इस पूरे घटना क्रम से इतने दुखी हैं कि प्रायश्चित्त करने के लिए एक दिन के उपवास पर जा रहे हैं, इस बीच विपक्ष ने विरोध स्वरूप सदन की कार्रवाई का बहिष्कार जारी रखा।

सरकार ने नाराज विपक्ष को मनाने के बजाय विपक्ष की संसद के दोनों सदनों से अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए विवादास्पद किसान बिल के बाद मजदूर विरोधी ऐसे कई बिल भी संसद के दोनों सदनों से पारित करा लिए। जिनमें यह व्यवस्था है कि अब कोई भी कारखाना या कंपनी जिसमें तीन सौ कर्मचारी काम करते हों, उसके मालिक को अपने किसी भी कर्मचारी को हटाने का अधिकार है। पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार संसद का यह सत्र 18 दिन चलना था लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए इसे समय से पहले अनिश्चित काल के लिए स्तःगित करना जरूरी हो गया था लेकिन इस बीच सरकार ने अपनी जरूरत का हर काम निपटा लिया इसलिए भी यह सत्र विशेष हो गया।

भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा ने भी विगत रविवार 20 सितम्बर 2020 को तब अपना नाम इतिहास में दर्ज कर दिया जब इस सदन ने संविधान प्रदत्त संसदीय विधान और नियमावली का अनुपालन न करते हुए कृषि से जुड़े दो विधेयकों को सदन की इच्छा और भावना के खिलाफ ध्वनिमत से पारित कर दिया था। संविधान प्रदत्त संसदीय प्रावधान के पारा 27 में यह व्यवस्था है कि संसद के जिस सदन में सत्तारूढ़ दल / गठबंधन का स्पष्ट बहुमत न हो वहाँ कोई भी विधेयक सदन के सभी सांसदों की शत-प्रतिशत रजामंदी के बगैर ध्वनिमत से पास नहीं कराया जा सकता। इस संवैधानिक विधान के मुताबिक़ अगर सदन का एक भी सदस्य ध्वनिमत से विधेयक पारित कराने को सहमत न हो तो मत विभाजन के जरिये ही विधेयक पारित किया जा सकता है।

20 सितम्बर को राज्य सभा ने अपने ही संवैधानिक प्रावधान की खिल्ली उड़ाते हुए किसान विधेयक और एक अन्य विधेयक ध्वनिमत से पारित करा कर इतिहास में नाम दर्ज करा लिया। इस ऐतिहासिक काम को अंजाम देने के लिए उच्च सदन के मौजूदा उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह देश के संसदीय इतिहास में हमेशा-हमेशा याद किये जायेंगे। कहा यह भी जा रहा है कि जिस समय संसद के उच्च सदन में लोकसभा से पहले ही पारित हो चुके इन विधेयकों को पास करने की प्रक्रिया चल रही थी तब विपक्ष के आठ सांसदों ने अभूतपूर्व हंगामा खड़ा किया था।

इसके चलते अगले दिन उन सभी सांसदों को सदन के सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया और इस निलंबन के विरोध में विपक्ष ने संसद भवन परिसर के लान में ही अनिश्चितकालीन धरना दे दिया। विपक्ष ओने धरने पर कायम है सरकार की तरफ से विपक्ष को मनाने की कोई कोशिश भी दो दिन तक नहीं की गई उलटे निलंबन के अगले ही दिन सदन के सभापति वेंकैया नायडू ने विपक्ष के उस प्रस्ताव को भी अमान्य घोषित कर दिया जिसमें विपक्ष ने उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास व्यक्त करते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई थी।