वो भी एक ज़माना था जब गुजरात और कांग्रेस एक दूसरे के पूरक समझे जाते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर देश के प्रथम मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल देश से लेकर देश की संसद के सभापति समेत अनेक प्रमुख और महत्वपूर्ण पदों पर तैनात कांग्रेस के नेता इसी राज्य या फिर इसी राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र से सम्बन्ध रखते थे।
आजादी के काफी साल बाद तक सौराष्ट्र का वजूद तो था लेकिन गुजरात एक राज्य के रूप में वजूद में नहीं था। राज्य के रूप में महाराष्ट्र भी नहीं था अलबत्ता बम्बई राज्य का वजूद जरूर था और गुजरात का अधिकांश हिस्सा इसी राज्य के अंतर्गत आता था। 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के आधार पर भाषाओं के को आधार बना कर नए तरीके से राज्यों का गठन किया गया तब गुजरात एक राज्य के रूप में सामने आया।
बहरहाल आजादी से पहले भी और आजादी के बाद भी गुजरात चाहे अलग राज्य बना हो या न बना हो तब भी इस नाम का एक भौगोलिक क्षेत्र इस देश में हमेशा ही मौजूद रहा है जिसकी हमेशा ही अपनी अलग राजनीतिक पहचान रही है। न केवल पक्ष बल्कि विपक्षी राजनीति का भी गुजरात हमेशा ही प्रमुख केंद्र रहा है और आज भी है।
आज देश के प्रधान मंत्री और गृहमंत्री दोनों ही इसी राज्य के हैं तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के कई प्रमुख नेता भी इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। विपक्ष के एक ऐसे ही प्रभावशाली नेता थे कांग्रेस के पूर्व कोषाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अहमद पटेल जिनका बुधवार 25 नवम्बर 2020 की सुबह निधन हो गया। 71वर्षीय अहमद पटेल कोविद से पीड़ित थे और लम्बी अवधि तक चले इलाज के बाद कोरोना के पराजित होकर हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया से कूच कर गए।
कांग्रेस के लिए अहमद पटेल का जाना 48 घंटे की अवधि में यह दूसरा बड़ा सदमा है। इसके दो दिन पहले ही असम के पूर्व मुख्यमंत्री 81 वर्षीय तरुण गोगोई का विगत सोमवार 23 नवम्बर 2020 को निधन हो गया था। तरुण गोगोई भी कोविद का शिकार थे लेकिन इलाज के बाद ठीक हो गए थे पर बाद में उनका निधन हो गया था।
पिछले लगभग चार दशक से राजनीति में सक्रिय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल को मौजूदा राजनीति का चाणक्य कहा जाता था और वो पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद करीबी माने जाते थे। स्वभाव से शर्मीले अहमद पटेल मीडिया में चेहरा दिखाने और बयानबाजी से दूर रह कर चुपचाप अपना काम करने में यकीन करते थे और अपने इसी गुण के चलते उन्होंने कांग्रेस के कपिल सरीखे बड़बोले नेताओं के स्थान पर अपनी एक स्थायी जगह पार्टी में बना रखी थी।
मजेदार बात यह है कि सोनिया गांधी के वफादार समझे जाने वाले अहमद पटेल राजीव गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहने के समय से ही पार्टी अध्यक्षों के करीबी रहे हैं और इस लिहाज से पीवी नरसिंह राव का कार्यकाल भी अपवाद नहीं कहा जा सकता। उनके राजनीतिक चातुर्य का अहसास पक्ष और प्रतिपक्ष के नेताओं को तब हुआ जब उन्होंने साल 2017 में जब गुजरात में संपन्न राज्यसभा के चुनाव में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी द्वारा उनको हराने के लिए की गई हरचंद कोशिशों को धत्ता बताते हुए वह चुनाव अपने पक्ष में जीत लिया था।
इस चुनाव में उन्हें हराने के लिए अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने उनके खिलाफ जबर्दस्त किलेबंदी की थी। कांग्रेस से ही बीजेपी में आए बलवंत सिंह राजपूत को शाह ने उम्मीदवार बनाया था। इसके अलावा कांग्रेस के छह विधायक पार्टी छोड़ चुके थे। ऐसे में अहमद पटेल का लगातार पांचवीं बार संसद के उच्च सदन में पहुंचना मुश्किल लग रहा था लेकिन अहमद पटेल ने सारी सियासी आशंकाओं को गलत साबित करते हुए न केवल अपनी जीत दोहराई बल्कि सोनिया गांधी को कमतर करने की विपक्षी कोशिशों की भी हवा निकाल दी थी।
21 अगस्त, 1949 को गुजरात के अंकलेश्वर में जन्मे अहमद पटेल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत नगरपालिका चुनाव से की थी। उन्होंने अपना पहला चुनाव ताल्लुका पंचायत के सभापति के रूप में जीता था। अपनी मेहनत और लगन से पटेल कांग्रेस के तेजतर्रार और युवा मेहनती नेता बन गए। इसके बाद वो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के संपर्क में आ गए।
1977 से 1982 तक वो गुजरात युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1977 में जब देशभर में इंदिरा गांधी के खिलाफ हवा थी, खुद इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं, तब अहमद पटेल न सिर्फ खुद पहली बार भरूच से लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे बल्कि गुजरात में कांग्रेस को जीत दिलवाई थी। 1977 से लगातार वो केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने 1977, 1980 और 1984 का लोकसभा चुनाव भरूच से ही जीता।इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तब अहमद पटेल को राजीव गांधी ने अपना संसदीय सचिव बना लिया था।
साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद भी अहमद पटेल गांधी परिवार के विश्वस्त बने रहे। जब सोनिया गांधी ने पॉलिटिक्स में एंट्री की तो वो अहमद पटेल ही थे, जिन्होंने हर मौके पर सोनिया गांधी का साथ दिया और 2004 के चुनावों में जीत के लिए पर्दे के पीछे रहकर रणनीति बनाई थी।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन पर दुख प्रकट करते हुए बुधवार को कहा कि पटेल एक ऐसे स्तंभ थे जो सबसे मुश्किल दौर में भी पार्टी के साथ खड़े रहे। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने दुख जताते हुए कहा कि पटेल की कांग्रेस के प्रति प्रतिबद्धता और सेवा असीमित थी। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘यह दुख का दिन है। श्री अहमद पटेल कांग्रेस पार्टी के स्तंभ थे। उन्होंने कांग्रेस को जिया और सबसे मुश्किल दौरे में पार्टी के साथ खड़े रहे। वह बहुत बड़ी पूंजी थे।’’