चीन पर सर्वदलीय बैठक

इतिहास में ऐसे इसके असंख्य उदाहरण हैं जब राष्ट्रीय संकट के दौर में हम भारतीय अपने कथित राजनीतिक आवरण को एक किनारे रख कर केवल तिरंगे की शान के लिए ही चिंतित रहते हैं। देश की आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ जितनी भी लड़ाइयां भारत ने अभी तक लड़ी हैं उसमें शहीद होने वाले मुस्लिम भारतीय जवानों का योगदान इसी भारतीयता का प्रतीक है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के साथ चल रहे ताजा सीमा विवाद के सम्बन्ध में राजनीतिक विचार विमर्श के लिए आज शुक्रवार 19 जून 2020 को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। सरकार का यह एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि इस बैठक के माध्यम से चीन के मामले में न केवल देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के विचार जानने का मौका सरकार को मिलेगा बल्कि इस बैठक के माध्यम से सरकार को विपक्षी दलों से इस समस्या का हल निकालने के सम्बन्ध में कुछ जरूरी सुझाव भी मिल सकेंगे। 

यह बैठक पहले ही तब हो जानी चाहिए थी जब चीन की तरफ से करीब एक महीना पहले सीमा पर विवादास्पद हलचल होनी शुरू हो गई थी। बहरहाल तब न सही अब सही, देर आयद- दुरुस्त आयद के फ़ॉर्मूले पर चलते हुए ही सही आज हो रही इस बैठक का भी अभी को स्वागत करना ही चाहिए।

प्रसंगवश भारत के सन्दर्भ में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि संकट की घड़ी में हर भारत वासी आपसी गिले- शिकवे भूल कर संकुचित दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर देशहित में एक ही आवाज से बोलता है। ख़ासतौर पर अगर यह संकट देश की सीमा पर मंडरा रहा हो तो भारत का हर नागरिक न हिन्दू होता है और न मुसलमान, इसाई, सिख, बौद्ध या कोई और वो सिर्फ और सिर्फ भारतवासी होता है। 

इतिहास में ऐसे इसके असंख्य उदाहरण हैं जब राष्ट्रीय संकट के दौर में हम भारतीय अपने कथित राजनीतिक आवरण को एक किनारे रख कर केवल तिरंगे की शान के लिए ही चिंतित रहते हैं। देश की आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ जितनी भी लडाइयां भारत ने अभी तक लड़ी हैं उसमें शहीद होने वाले मुस्लिम भारतीय जवानों का योगदान इसी भारतीयता का प्रतीक है। 

1971 में बांग्ला देश की मुक्ति के लिए पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भारत ने जो शानदार जीत दर्ज की थी तब तत्कालीन विपक्ष के नेता स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधान मंत्री को भारतवासियों की इसी एकता के मद्देनजर ही दुर्गा का अवतार भी कहा था। इसी पृष्ठभूमि में हमको चीन के साथ सीमा पर होने वाली ताजा झडपों के सन्दर्भ में प्रधान मंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक को भी राष्ट्रहित में आशावादिता की नजर से ही देखना होगा।

 गौरतलब है कि चीन की सीमा से लगी भारत के जम्मू-कश्मीर और लेह- लद्दाख की पूर्वी गलवान घाटी में विगत सोमवार 15 जून को चीन के साथ हुई झड़प में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए हैं। 45 साल में यह पहला मौका है जब सीमा पर दोनों देशों के बीच किसी तरह की रक्त- रंजित सैन्य झड़प हुई हो। चीन के सरकारी नियंत्रण वाले मीडिया ने अपनी सेना के हवाले से दावा यह किया कि गलवान घाटी क्षेत्र पर उसकी ‘हमेशा’ संप्रभुता रही है और भारतीय सैनिकों ने ‘जानबूझकर उकसाने वाले हमले किए’, जिस कारण ‘गंभीर संघर्ष हुआ और दोनों ही तरफ के सैनिक हताहत हुए।’

लद्दाख की पूर्वी गलवान घाटी पर प्रभुत्व संबंधी चीन के तमाम आरोपों को भारत सरकार ने एक सिरे से नकारते हुए विश्व समुदाय का ध्यान इस तरफ लगाया है सीमा विवाद को लेकर चीन बेवजह भारत को परेशान कर रहा है। भारत चीन के साथ किसी तरह के विवाद को दो देशों के बीच का आपसी मामला मानता आया है और आज भी भारत का यही मानना है लेकिन भारत दुनिया के अपने एक दर्जन से अधिक मित्र राष्ट्रों को यह जानकारी भी दे देना चाहता है कि सीमा विवाद को भड़काने की कोई भी पहल उसकी तरफ से नहीं हुई है। 

यह चीन ही है जो मामले को उकसा रहा है। चीन को यह भी पता है कि गलती उसके ही तरफ से हुई है इसीलिए वो बार-बार मामले को बातचीत के जरिये निपटाने की बात भी कर रहा है लेकिन अन्दर ही अन्दर चीन खुराफात करता रहता है। चीन की यही हरकत विश्व समुदाय के सामने लाना जरूरी भी है इसीलिए भारत ने रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ़्रांस समेत करीब 12 देशों को अपनी तरफ से स्थिति स्पष्ट करते हुए विस्तृत जानकारी भी उपलब्ध करा दी है।

 भारत सरकार चीन की ताजा गतिविधियों और विश्व के दर्जन भर देशों को भारत द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारियों के सन्दर्भ में ही सर्वदलीय बैठक के माध्यम से चर्चा करना चाहती है और ऐसे कदम का स्वागत ही किया जाना चाहिए। गौर करने बात यह भी है लद्दाख सीमा पर ताजा गड़बड़ियों के सम्बन्ध में चीन ने भारत पर यह आरोप भी लगाया है कि भारतीय सैनिकों ने 15 जून को दो बार अवैध रूप से सीमा रेखा लांघी और चीन के कर्मियों को उकसाया और उन पर हमले किए जिसके कारण दोनों पक्षों के बीच गंभीर मारपीट हुई। 

आमतौर पर 1962 के युद्ध के बाद भारत-चीन के सीमान्त क्षेत्र शांत ही रहे हैं। हां ! 62 के युद्ध के बाद एक बार 1967 और दूसरे बार 1975 में तब दोनों देशों के बीच सीमा पर गोली बारी की घटना हुई थी लेकिन ये दोनों घटनाएं उतनी गंभीर नहीं मानी जातीं। मौजूदा सन्दर्भ में प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक को लेकर एक सकारात्मक रुख अपनाने और सरकार की तरफ से की गई इस तरह की पहल का स्वागत करने के साथ ही हमें एक और महत्वपूर्ण बात को भी ध्यान में रखना होगा कि, कहीं न कहीं कुछ गलतियां तो हमारी सरकारों से हुई हैं। 

विदेश और प्रतिरक्षा मंत्रालयों से जुड़े कुछ पुराने नौकरशाहों और विशेषज्ञों की माने तो विगत एक दशक में भारतीय उप महाद्वीप में चीन ने जिस तरह पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव समेत तमाम देशों में अपना प्रभाव और दबाब बढ़ाया है उससे साफ़ है कि चीन को समझने में हमसे बहुत बड़ी रणनीतिक भूल हुई है। 

First Published on: June 19, 2020 7:14 AM
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