अयोध्या-काशी-मथुरा : नहीं रुकेगा धर्म के नाम पर राजनीति करने का सिलसिला


अदालत में दायर एक सिविल मुकदमे के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक मांगा गया था। इसके साथ ही मंदिर स्थल से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की अपील की गई। इससे पहले 28 सितंबर को हुई संक्षिप्त सुनवाई में एडीजी छाया शर्मा ने मामले को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया था।



पहले सुप्रीम कोर्ट और उसके बाद सीबीआई की लखनऊ स्थित विशेष अदालत द्वारा अयोध्या के राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद मामले में अंतिम फैसला आने के बाद मंदिर समर्थकों ने देश की सरकार और सुप्रीम अदालत से मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्म भूमि और काशी स्थित ज्ञान वापी मस्जिद मामले में इसी तरह का फैसला सुनाने की मांग एक बार फिर तेज कर दी है। इससे साफ़ लगता है कि देश में बहुसंख्यकों की राजनीति करने वाला एक बड़ा तबका धर्म की राजनीति को अंतिम समय तक छोड़ने के पक्ष में बिलकुल नहीं है। पिछले साल नवम्बर के महीने (नवम्बर 2019) को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एक तरह से इस धार्मिक भूमि विवाद का निपटारा कर दिया था।

इसी अदालती फैसले के अनुपालन में अयोध्या में दूसरी बार भूमि पूजन के साथ राम के भव्य मंदिर निर्माण का सिलसिला शुरू भी हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के 10 महीने के बाद लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले का भी निपटारा करते हुए इस काण्ड के सभी कथित आरोपियों को आरोप मुक्त कर बरी करने का फैसला भी सुना दिया। यह फैसला आने के बाद अयोध्या फैजाबाद के पूर्व भाजपा सांसद और विश्व हिन्दू परिषद् के नेता विनय कटियार समेत अनेक हिंदुत्ववादी नेताओं ने मथुरा और काशी मामलों का भी इसी तरह हिन्दुओं के पक्ष में फैसला करने का दबाब बढ़ा दिया है।

विगत 29-30 सितम्बर को दिए अपने फैसले में सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले के सभी आरोपियों को बरी करने का ऐलान किया था। विनय कटियार भी उन 49 आरोपियों में एक थे। इस फैसले पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए विनय कटियार ने कहा है कि ये पूरी तरह से कांग्रेस की साजिश थी। भाजपा नेता ने कहा कि इस मामले में साजिश के तहत ही तत्कालीन सरकारों ने उन्हें और अन्य हिंदूवादी नेताओं को कई बार जेल भेजा और तरह- तरह से परेशान किया था।

सीबीआई की विशेष अदालत का बाबरी मामले पर यह फैसला आने के बाद विनय कटियार ने यह भी साफ़ कर दिया कि अब मथुरा और काशी के लिए संघर्ष किया जाएगा। संघर्ष की रूपरेखा के बारे में उनका यह भी कहना था कि सभी साधु संतों के साथ मिलकर तय करेंगे कि काशी और मथुरा के आंदोलन को कैसे आगे लेकर जाना है। लखनऊ की विशेष अदालत का फैसला आने के बाद अब पूरे देश की निगाहें वाराणसी की उस जिला अदालत पर आकर टिक गईं हैं जहां काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का मामला वर्षों से लंबित है। वाराणसी की जिला अदालत में तो सिर्फ यह तय होना था कि इस मामले की सुनवाई वाराणसी कोर्ट में होगी या फिर लखनऊ ट्रिब्यूनल कोर्ट में।

इस अदालती विवाद के मुताबिक 1669 में औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ा गया था। इसी सन्दर्भ में विहिप और भाजपा के एक और बड़े नेता तथा केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का भी यह कहना है कि उनके लिए मथुरा भी अयोध्या जैसा ही मामला है। इसके साथ ही काशी विश्वनाथ का मसला भी राजनीतिके इस तबके के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। इससे यह बात आसानी से समझ में आ जानी चाहिए कि आने वाले वर्षों में अयोध्या के बाद अब मथुरा और काशी को लेकर राजनीतिक संघर्ष और तेज होगा। जब यह साफ़ दिखाई देने लगा है कि काशी और मथुरा के लिए संघर्ष होगा ही तब इन मुद्दों के बारे में भी संक्षेप में ही सही जानकारी लेना जरूरी हो जाता है।

जहां तक काशी मामले का सवाल है, इस बारे में यह कहा जाता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने एक मंदिर तोड़ कर करवाया था। इस बाबत 1991 में पंडित सोमनाथ ने काशी स्थित ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वनाथ के पक्षकार की हैसियत से अदालत में दायर एक मुक़दमे में यह दलील दी थी कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर का ही हिस्सा है इसलिए यहां भी हिंदुओं को दर्शन, पूजापाठ के साथ ही मरम्मत का अधिकार होना चाहिए। उन्होंने दावा किया था कि विवादित परिसर में बाबा विश्वनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है।

इसी तरह मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि को लेकर भी एक विवाद है। इस विवाद की स्थिति यह है कि मथुरा की एक अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि से ईदगाह को हटाने की याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। वादी पक्ष के विष्णु जैन, हरिशंकर जैन और रंजन अग्निहोत्री ने सिविल जज सीनियर डिवीजन न्यायालय में पहुंचकर अपना पक्ष रखा। कोर्ट ने अपने फैसले में याचिका को खारिज कर दिया।

अदालत में दायर एक सिविल मुकदमे के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक मांगा गया था। इसके साथ ही मंदिर स्थल से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की अपील की गई। इससे पहले 28 सितंबर को हुई संक्षिप्त सुनवाई में एडीजी छाया शर्मा ने मामले को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया था। याचिका में जमीन को लेकर 1968 के समझौते को गलत बताया गया। इस याचिका के माध्यम से कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व मांगा गया। याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री ने कहा कि अयोध्या का केस हम लोगों ने लड़ा, उसे जनता को सौंप दिया गया है, अब मथुरा की बारी है।

गौरतलब है कि मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि से सटी हुई है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। लेकिन ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही मथुरा के मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने 1945 में एक रिट दायर कर दी थी जिसका फैसला साल 1953 में आया और उसके बाद ही मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो सका जो फरवरी 1982 में जाकर पूरा हुआ।

इसी दौरान साल 1964 में इस संस्था ने पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। इस समझौते के बाद मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्ज़े की कुछ जगह छोड़ी और इसके बदले में मुस्लिम पक्ष को पास की जगह दे दी गई। यही वो समझौता है जिसके खिलाफ ये याचिका दायर की गई।