आखिरी दिनों में भगत सिंह की ख्वाहिश…


भगत सिंह के प्रेरणा स्रोत उनके चाचा सुप्रसिद्ध देशभक्त और क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह थे, जिन्हे राजनीतिक “विद्रोही” घोषित किए जाने के बाद देश निकाला की सजा मिली। 40 साल तक गुमनामी की जिंदगी जीते हुए उन्होंने ब्राजील, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी जाने कितने ही मुल्कों की खाक छानी।


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अपने आखिरी दिनों में भगत सिंह की ख्वाहिश थी ” काश, कोई मुझे मरने से पहले मेरे महबूब चाचा से मिला दे जिनको बिना देखे मैं उनका आशिक बना, जिनके नक्शे कदम पर चल कर मैंने इस अश्क की वादी में कदम रखा…।”

भगत सिंह के प्रेरणा स्रोत उनके चाचा सुप्रसिद्ध देशभक्त और क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह थे, जिन्हे राजनीतिक “विद्रोही” घोषित किए जाने के बाद देश निकाला की सजा मिली। 40 साल तक गुमनामी की जिंदगी जीते हुए उन्होंने ब्राजील, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी जाने कितने ही मुल्कों की खाक छानी। विडंबना देखिए 15 अगस्त 1947 को सुबह चार बजे उन्होंने अपने परिवार को जगाया और बोले- “मेरी जिंदगी का मकसद पूरा हो गया अब मैं जा रहा हूं।”

पत्नी हरनाम कौर से बोले- “मैंने तुमसे शादी की, पर तुम्हारी सेवा नहीं कर सका, भारत माता की सेवा में लगा रहा, सरदारनी! मुझे माफ कर देना…” कहकर पत्नी के पैर छू लिए, वह चौंक कर पीछे हट गई। उसी सुबह सरदार दुनिया छोड़ गए। उन्होंने पहले ही घोषणा कर रखी थी दोनों तरफ खून की नदियां बहेंगी, मैं यह सब देख नहीं पाऊंगा मैं चला जाऊंगा…और वे चले गए। इनके बारे में कभी बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं।

ऐसे शेरदिल चाचा का शागिर्द भगत सिंह एक खुशदिल और खिलंदड़ा नौजवान था। मौत से पंजा लड़ाते हुए भी उस की शरारतें और चुहलबाजी कम नहीं हुई। “उसे रसगुल्ले बहुत पसंद थे। 9 अप्रैल 1930 को लाहौर षड्यंत्र केस में गवाही चल रही थी, रसगुल्ले का एक पार्सल बंगाल से आया था पर जेल अधिकारी उसे लेने नहीं दे रहे थे।

गवाही के दौरान ही भगत सिंह न्यायाधीश महोदय की ओर रुख करते हुए बोले– “द रसगुल्लाज आर लाइंग आउटसाइड, विल यू टेक द ट्रबल ऑफ एग्जामिनिंग दैम? इट इज अ ब्यूटीफुल सीन, यू मे जस्ट लुक ऐट दैम। रसगुल्लाज आर मोर इंपॉर्टेंट फॉर अस दैन दीज विटनेसेज- भगत सिंह के इस अंदाज पर पूरी अदालत जोर से ठहाका मारकर हंस पड़ी।”

“भगत सिंह दिखने में जितने खूबसूरत नौजवान थे, राजगुरु उतने ही साधारण और आकर्षण रहित इसीलिए जब सांडर्स को मारकर वे दोनों लाहौर से निकले थे तो भगत सिंह पहली श्रेणी में सफर करने वाले बड़े अधिकारी बने थे और राजगुरु उनके नौकर।”

“फांसी से पहले जेलर ने भगत सिंह से उनकी खास इच्छा पूछी। भगत सिंह बोले -“मैं बेबे के हाथ की रोटी खाना चाहता हूं।” जेलर ने इसे भगत सिंह का मातृप्रेम समझा, लेकिन भगत सिंह की मंशा अपनी कोठरी और मल मूत्र की सफाई करने वाले भंगी से थी। वे उसे बेबे कहकर पुकारते थे।

जेलर ने जमादार को बुलाया, वो हाथ जोड़कर बोला- ” सरदार जी, मेरे हाथ ऐसे नहीं हैं कि उनसे बनी रोटी आप खाएं।” भगत सिंह ने प्यार से उसके दोनों कंधे थपथपाते हुए कहा- “मां जिन हाथों से बच्चे का मल साफ करती है उन्हीं से खाना बनाती है, बेबे! मैं तुम्हारे ही हाथ की रोटी खाऊंगा।”

भगत सिंह के जीवन को पढ़ते  हुए पाठक का सीना कभी गर्व से फूल जाता है कभी आंखें भीग जाती हैं। आज की कुत्सित राजनीति को देखकर कभी-कभी लगता है-ऐ तेईस साल के बांके नौजवान! क्यों तूने आजादी के लिए अपनी जवानी होम कर दी, अपने प्राणों की समिधा बनाकर फूंक दी। हम तेरी शहादत डिजर्व नहीं करते।