स्मरण : भविष्य दृष्टा नेता थे राजीव गांधी

राजीव गांधी को यह देश इसलिए भी याद रखेगा कि उन्होंने तकनीकी और कंप्यूटर के क्षेत्र में दुनिया के विकसित देशों के साथ बराबरी करने का सपना देखा था। और इस सपने को पूरा भी करके दिखा दिया था अपने प्रधानमंत्री काल में कंप्यूटर क्षेत्र में क्रान्ति करने के साथ ही राजीव गांधी ने पांच तकनीकी मिशन पर भी काम किया था। प्रौद्योगिकी विकास के साथ ही दलहन और तिलहन का विकास उनकी प्राथमिकता के क्षेत्र थे।

साल 1991 वो एक मनहूस तारीख थी 21 मई जब एक आत्मघाती आतंकी हमले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिल आतंकवादियों ने तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बुदूर में बम बिस्फोट से हत्या कर दी थी। राजीव गांधी प्रोफेशनल राजनीतिज्ञ नहीं थे। वो तो एक सफल पायलट थे और राजनीति से दूर ही रहना चाहते थे लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।1980 में जब एक विमान हादसे में उनके छोटे भाई संजय गांधी का असमय निधन हो गया था तब उन्हें अपनी मां और तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी का हाथ बटाने के लिए राजनीति में उतरना पड़ा था। एक तरह से यह उनकी मजबूरी ही थी और उनकी यही मजबूरी 11 साल बाद उनके लिए काल का ग्रास भी बन गई थी।

अजीब विडम्बना यह कि जो व्यक्ति छोटे भाई के असामयिक निधन के बाद राजनीति में कदम रखता है, सांसद के रूप में अपने छोटे भाई का राजनीतिक उत्तराधिकार हासिल करता है वही व्यक्ति उसके ठीक चार साल बाद इस देश का प्रधानमंत्री बन जाता है जब उसकी प्रधानमंत्री मां की उनके ही सुरक्षा कर्मियों द्वारा हत्या कर दी जाती है। वही व्यक्ति एक दिन खुद भी इसी तरह के हादसे का शिकार होकर दुनिया छोड़ कर चल देता है।

राजीव गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अमेठी के सांसद और कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में की थी। पार्टी का संगठनात्मक काम और संसदीय जिम्मेदारी के काम को उन्होंने एक नया रूप देने की कोशिश की थी। उन्होंने दोनों ही जगह एक साफ़-सुथरी, पारदर्शी, ईमानदार और सबको साथ लेकर चलने वाली विकेन्द्रित व्यवस्था की शुरुआत की थी और इसी वजह से उन्होंने जहां एक तरफ अपने संसदीय क्षेत्र का काम पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं को सौंप रखा था ताकि वो राष्ट्रीय परिदृश्य की गतिविधियों पर ज्यादा ध्यान दे सकें। इसी तरह पार्टी में संगठनात्मक स्तर पर भी उन्होंने विधान सभाओं और लोकसभा के लिए योग्य उम्मीदवारों के चयन की एक तरह की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी। 

राजीव गांधी एक सांसद और पार्टी महासचिव के रूप में जमीन से जुड़े नेताओं से मिलना पसंद करते थे इसके साथ ही उन्हें यह भी लगता था कि पार्टी को ऐसे ही लोगों को चुनाव में टिकट देना चाहिए जो अपने क्षेत्रों की बारीक से बारीक जानकारियां रखने के साथ ही शैक्षिक रूप से भी योग्य हों और स्थानीय सन्दर्भ के साथ ही राष्ट्रीय और वैश्विक सन्दर्भों से भी परिचित तो अवश्य हों। इसी सोच के चलते 1985 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उन्होंने तीन- चार साल पहले से ही चयन प्रक्रिया की शुरुआत भी कर दी थी। यह प्रक्रिया पूरी हो पाती इससे पहले ही 31अक्टूबर की वह मनहूस घड़ी आ गई जब इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी। और राजीव गांधी को न चाहते हुए भी देश के प्रधानमंत्री पद की कमान संभालनी पड़ गई थी।

राजीव गांधी को यह देश इसलिए भी याद रखेगा कि उन्होंने तकनीकी और कंप्यूटर के क्षेत्र में दुनिया के विकसित देशों के साथ बराबरी करने का सपना देखा था। और इस सपने को पूरा भी करके दिखा दिया था अपने प्रधानमंत्री काल में कंप्यूटर क्षेत्र में क्रान्ति करने के साथ ही राजीव गांधी ने पांच तकनीकी मिशन पर भी काम किया था। प्रौद्योगिकी विकास के साथ ही दलहन और तिलहन का विकास उनकी प्राथमिकता के क्षेत्र थे और इन सभी क्षेत्रों में देश ने कार्यकाल में बहुत प्रगति भी की थी। अजीब बात है कि इस देश की जो पार्टियां आज कंप्यूटर, इन्टरनेट और डिजिटल विकास के नाम पर सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी प्रतिपक्षी पार्टियों को हरदम निशाने पर लिए रहती हैं। वही पार्टियां किसी समय राजीव गांधी के कंप्यूटर क्रान्ति के कदम की सबसे बड़ी विरोधी हुआ करती थी।

राजीव गांधी ने पूरी निष्ठा और इमानदारी के साथ देश हित में काम किया लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में काम करते हुए उनसे कुछ गलतियां भी हुईं जिनका खामियाजा उन्हें 1989 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार और खुद सत्ता से बाहर होने के रूप में भुगतना भी पड़ा था। उनकी इन गलतियों में बोफोर्स सौदे की खरीद में हुई कथित अनियमितताएं, श्रीलंका में तमिल विद्रोहियों का प्रतिरोध करने के लिए भेजी गई भारतीय शांति सेना जैसे अनेक मसले शामिल हैं जिनकी वजह से अंत में उनको भी शहीद ही होना पड़ गया था।

राजीव गांधी एक राजनेता के रूप में शुरुआती दौर में तो थोड़े अपरिपक्व किस्म के जरूर लगते थे लेकिन बाद के दौर में उन्होंने अपने अनुभव से बहुत कुछ सीखा भी था। वो सबको साथ लेकर चलने वालों में थे इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार चीन के साथ सम्बन्ध सामान्य बनाने के प्रयास भी किये थे। वैश्विक स्तर पर अमेरिका के साथ ही सोवियत संघ के साथ भी आपसी सम्बन्ध मजबूत बनाना उनकी प्राथमिकताओं में था। यही सम्बन्ध राजीव गांधी घरेलू राजनीति के सन्दर्भ में भी बना कर रखना चाहते थे लेकिन उनके आस्तीन में भी कुछ सांप दोस्त के रूप में आसन जमाये हुए थे जिन्होंने उनको कदम- कदम पर धोखा ही दिया था।

जिस बोफोर्स सौदे को उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में चुनाव में इस्तेमाल किया गया था उस मुहिम की कमान भी उनके एक ऐसे ही कथित विश्वासपात्र राजनीतिक सखा के हाथों में थी जो उन्हें दगा देकर विपक्ष की राजनीति का हीरो भी बना और एक साल की अवधि के लिए देश का प्रधानमंत्री भी। राजीव गांधी एक इमानदार राजनीतिज्ञ थे और जनादेश का सम्मान करने वाले नेता भी। इसकी मिसाल इसी रूप में देखी जा सकती है कि जब कांग्रेस पार्टी 1989 में लोकसभा का चुनाव हार गई थी तब त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति बन गई थी। किसी भी पार्टी के पास सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं था और कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई थी इसके बावजूद राजीव गांधी ने यह कहते हुए सरकार बनाने से साफ़ इनकार कर दिया था कि इस चुनाव में जनादेश कांग्रेस के खिलाफ है इसलिए वो सरकार बनाने का दावा ही पेश नहीं करेगी। आज इसके विपरीत हालात ऐसे बन गए हैं कि सदन में सबसे छोटी पार्टी भी तोड़- फोड़ कर सरकार बनाने में सफल हो जाती है।

 

First Published on: May 20, 2020 5:43 AM
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